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इंसानी चमड़े को उम्र के असर से बचाने की कवायद

कोषों के अंदर किया जाएगा बदलाव

हावर्ड विश्वविद्यालय में अधिक आंकड़े

साइड एफेक्टों को समझने के बाद इस्तेमाल

राष्ट्रीय खबर

रांचीः जेनेटिक विज्ञान काफी तेजी से तरक्की कर रहा है। जैसे जैसे जेनेटिक कोडों को समझने में कामयाबी मिल रही है, वैसे वैसे इसमें नये नये आयाम भी जुड़ते जा रहे हैं। वैसे इन प्रयासों को लेकर वैज्ञानिक जगत में एक दूसरे किस्म की बहस भी चल रही है। दरअसल अधिसंख्य वैज्ञानिक मानते हैं कि इसके जरिए इंसान को खुद ही भगवान बनकर किसी और जीवन की रचना करने का काम नहीं करना चाहिए।

इसके बीच ही हावर्ड विश्वविद्यालय में उम्र के असर से प्रभावित होने वाली इंसानी त्वचा को पूर्व स्थिति में लाने पर काम चल रहा है। डॉ डेनिस्टा मिलानोवा और उसके सहयोगी इस काम में जुटे हैं। इस परियोजना को मार्बल थेरापुटिक्स का नांम दिया गया है। बुल्गारिया में पैदा हुई यह वैज्ञानिक मानती है कि इस दिशा में सफलता पायी जा सकती है। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा में माइक्रोफ्लूइड में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद इसे जेनेटिक विज्ञान में आजमाया है।इंसानी चमड़े को उम्र के असर से बचाने की कवायद

उनका मानना है कि हावर्ड में इंसानों पर शोध के लिए पहले से ही काफी जेनेटिक आंकड़े उपलब्ध हैं। इसलिए इस काम को यहां आगे बढ़ाना ज्यादा आसान है। वरना इंसानी चेहरे पर उम्र का असर कम करने के काम आने वाली दवाइयों की कीमत बहुत अधिक है और उनमें से कई के साइड एफेक्ट भी हैं।

दूसरी तरफ अगर जेनेटिक तौर पर इंसानी त्वचा में बदलाव कर उसे पूर्व स्थिति में पहुंचाया जाए तो यह बहुत कम खर्चीला और साइड एफेक्ट से मुक्त होगा।

वैसे इस दिशा में दुनिया के कई प्रयोगशालाओं में पहले से ही अनुसंधान चल रहे हैं। इन शोधों का मकसद इंसान की आयु को बढ़ाने से लेकर उम्रजनित परेशानियों से इंसान को मुक्त रखना है। अभी यह शोध दल इंसानी त्वचा में होने वाले बदलावों के कालखंडों को दर्ज कर रही है ताकि यह पता चल सके कि किस उम्र में इंसानी त्वचा में कौन से बदलाव आते हैं।

इस दिशा में जिन थेरापी की मदद से इंसानी त्वचा को पूर्व स्थिति में लौटाने का प्रयोग भी जारी है। जिसके बारे में अब तक औपचारिक तौर पर कोई एलान नहीं किया गया है। इसके लिए इंसानी त्वचा के काम आने वाले सेलों पर जेनेटिक बदलाव के जरिए उनपर उम्र के प्रभाव को खत्म करने का काम चल रहा है।

अनुमान है कि इस बदलाव के सफल होने पर इंसानी उम्र में भी बदलाव होना संभव है। डॉ मिलानोवा कहती हैं कि इंसानी त्वचा का उम्रजनित होने का अर्थ वहां के कोषों का पुराना पड़ना है। यदि इन्हीं कोषों को जेनेटिक बदलाव के जरिए फिर से जवान बना दिया जाए तो सारी स्थितियां ही बदल सकती हैं। उनके मुताबिक यह सारा कुछ जिनोम पर आधारित हैं, जो इंसानी शरीर और कोष के अंदर मौजूद एक अदृश्य घड़ी के निर्देश पर काम करता रहता है। अगर जिनोम में जेनेटिक संशोधन की विधि से बदलाव किये गये तो वह फिर से वही संकेत देने लगेगा जो किसी जवान व्यक्ति की स्थिति होती है। फिर भी इसे अमल में लाने से पहले उसके पाश्व प्रतिक्रियाओँ (साइड एफेक्टों) को भी गहराई से समझ लेना होगा।

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