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वाटर टेस्ट किट की खरीद में गड़बड़ी

आदर्श आचार संहिता के बहाने कमाई का कारोबार

  • किसे फायदा पहुंचा रहे हैं अफसर

  • निविदा की शर्तों को बदला जा रहा

  • आचार संहिता में क्यों हो रहा है काम

राष्ट्रीय खबर

 

रांचीः झारखंड में चुनाव चल रहा है और इसी वजह से निर्धारित कानूनी प्रक्रिया के तहत आदर्श आचार संहिता भी लागू है। इस आचार संहिता के लागू होने के बीच ही पेयजल एवं स्वच्छता विभाग में गड़बड़झाला की सूचना है। मिली जानकारी के मुताबिक अपनी पसंद की कंपनी को फायदा यानी  काम दिलाने के नाम पर निविदा शर्तों में हेरफेर कर उसे कंप्यूटरीकृत व्यवस्था का नाम दिया जा रहा है।

सूत्र बताते हैं कि इस विभाग में वाटर टेस्टिंग किट का टेंडर निकाला गया था। उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि इस निविदा को गत 9 अक्टूबर को जारी किया गया था जबकि अगले चार दिन की लगातार छुट्टी थी। यानी निविदा जारी करने के पहले ही साजिश को अंजाम तक पहुंचाने की पूरी तैयारी कर ली गयी थी। घोषणा के मुताबिक 15 को प्री बिड और उसके अगले ही दिन टेंडर को खोला गया।

गड़बड़ी का पता इस बात से चल जाता है कि कम कीमत पर इसकी खरीद संभव होने के बाद भी विभागीय अधिकारी इसे अधिक कीमत पर खरीदने की तैयारी कर चुके हैं। दरअसल पानी की जांच की यह विधि बीएआरसी और डीआरडीओ का सम्मिलित प्रयास है। इस तकनीक का विकास करने के बाद इसे चार कंपनियों को दिया गया है।

फिलहाल निविदा में यह शर्त अनिवार्य है कि बीएआरसी और डीआरडीओ तकनीक पर ही वाटर टेस्टिंग किट की खरीद होगी।

एक रासायनिक प्रक्रिया की जांच के तहत नमूने के पानी को इस किट के जरिए 12 किस्म के परीक्षणों से गुजारा जाता है। जिससे पता चलता है कि पानी सही है अथवा नहीं।

निविदा में किसी खास को फायदा पहुंचाने की पुष्टि निविदा की शर्तों से हो जाती है। पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की इस निविदा में शर्त यह जोड़ी गयी है कि आपूर्तिकर्ता कंपनी को पिछले तीन वर्षों में कमसे कम डेढ़ करोड़ का एक कार्यादेश होना चाहिए।

आम तौर पर ऐसी शर्तों में निविदादाता के अनुभव को परखा जाता है और कुल कार्यादेशों के मूल्य देखे जाते हैं।

दलील यह दी जा रही है कि यह कंप्यूटरीकृत विधि है जिसमें पचास प्रतिशत की शर्त अपने आप लागू हो जाती है।

मामले की जांच में पता चला कि दरअसल झारखंड में दो अलग अलग टेंडर हैं, जिनके अनुमानित मूल्य क्रमशः तीन करोड़ और तीन करोड़ पंद्रह लाख हैं। अब तीन करोड़ पंद्रह लाख के टेंडर का पचास प्रतिशत शर्त निविदा में क्यों लागू नहीं हुआ, यह समझना कठिन नहीं है।

मजेदार स्थिति यह है कि पड़ोसी राज्य बिहार में इससे कम कीमत पर इसी वाटर टेस्टिंग किट की आपूर्ति का रिकार्ड उपलब्ध है। इसके बाद भी सरकारी अफसर जनता के पैसे का लाभ किसे पहुंचाना चाह रहे हैं, यह तो किसी जांच से पता चल सकता है।

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