चाय बगान के कामगारों की परेशानियों की शिकायत ऊपर तक पहुंची
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झारखंड सरकार के फैसले से सीएम नाराज
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वोट के लिए सिर्फ कागज पर काम दिया है
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अधिकांश चाय मजदूर झारखंड के ही हैं
भूपेन गोस्वामी
गुवाहाटी : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने आज अपनी रिपोर्ट में कहा कि असम के चाय बागान श्रमिकों का वेतन बहुत कम है और श्रम कानूनों तथा श्रमिक कल्याण प्रावधानों को लागू करने में कई खामियां और चिंताएं हैं।इसने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (एमडब्ल्यू अधिनियम) के अनुसार मजदूरी तय करने में राज्य सरकार के हस्तक्षेप को अपर्याप्त पाया, यह देखते हुए कि श्रमिकों के जीवन में सुधार के प्रयास कोई भी महत्वपूर्ण बदलाव करने के लिए कम हो गए हैं।
2020-21 से 2021-24 की अवधि के लिए चाय जनजाति के कल्याण के लिए योजनाओं के कार्यान्वयन पर प्रदर्शन लेखा परीक्षा में कहा गया है कि कम आय और शिक्षा की कमी राज्य में श्रमिकों के समग्र विकास में प्रमुख बाधाएं रही हैं।ऑडिट चार जोनों- कछार, डिब्रूगढ़, नागांव और सोनितपुर में किया गया। चार नमूना क्षेत्रों में 390 चाय बागान हैं, जिनमें से 40 बागानों (10%) का चयन बागानों के आकार और नियोजित श्रमिकों की संख्या के आधार पर किया गया था। अभिलेखों की जांच के अलावा, इस अभ्यास में चयनित बागानों में 590 श्रमिकों के साक्षात्कार शामिल थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चाय जनजाति कल्याण विभाग (टीटीडब्ल्यूडी) ने श्रमिकों के मुद्दों को हल करने की कोशिश की, लेकिन बुनियादी सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों के बिना, और उनकी पहल को बेतरतीब ढंग से लागू किया गया।चाय बागानों में श्रमिकों को मिलने वाली मजदूरी बहुत कम थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि असम सरकार ने एमडब्ल्यू अधिनियम, 1948 के अनुसार न्यूनतम वेतन तय नहीं किया है। असम सरकार ने चाय श्रमिकों को केवल वोट के लिए कागजी काम दिया है।यह भी कहा गया है कि श्रमिक राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अनुसूचित रोजगारों का हिस्सा नहीं थे, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें न्यूनतम वेतन मानक और परिवर्तनशील महंगाई भत्ते का लाभ नहीं मिलता है।
इस बीचसुप्रीम कोर्ट ने असम के मुख्य सचिव को राज्य में चाय बागान श्रमिकों को लंबे समय से लंबित बकाया भुगतान करने में प्रयासों की कमी के बारे में 14 नवंबर, 2024 को स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया है। यह आदेश असम टी कॉरपोरेशन लिमिटेड (एटीसीएल) द्वारा नियोजित चाय बागान श्रमिकों के अवैतनिक वेतन और भत्ते के संबंध में 2012 से चल रही अवमानना याचिका के जवाब में आया है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की अगुवाई वाली पीठ ने सरकार की निष्क्रियता पर निराशा व्यक्त की, जिसमें कहा गया कि एटीसीएल ने किराये की आय से 38 करोड़ रुपये कमाए, जबकि श्रमिकों को भुगतान नहीं किया गया। हम असम राज्य के मुख्य सचिव को अगली तारीख यानी 14 नवंबर 2024 को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित रहने का निर्देश देते हैं। राज्य को इस सवाल का गंभीरता से जवाब देना होगा कि असम राज्य के स्वामित्व वाले चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों के बकाया भुगतान के लिए कोई ईमानदार प्रयास क्यों नहीं किया गया।
न्यायमूर्ति ओका ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक राज्य इकाई के रूप में, एटीसीएल की यह जिम्मेदारी है कि वह श्रमिकों को मुआवजा सुनिश्चित करे। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि यदि राज्य चाय बागानों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन नहीं कर सकता है, तो श्रमिकों के बकाये का भुगतान करने के लिए संपत्तियों को बेच दिया जाना चाहिए।
असम सरकार के वकील ने तर्क दिया कि लाभहीन होने के कारण पट्टेदारों द्वारा एटीसीएल को चाय बागान वापस करने से वित्तीय घाटा बढ़ गया है। न्यायालय ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय को भी नोटिस जारी किया, क्योंकि असम के वकील ने कहा कि इस मुद्दे को सुलझाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की भी है।
उधर, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा बिस्वा असम के चाय बागानों में काम करने गए झारखंड के लोगों की सुरक्षा के झारखंड सरकार के फैसले से नाराज हैं। जानकरों के अनुसार असम की अर्थव्यवस्था में वहां के चाय बगान का 5000 करोड़ रुपए का योगदान है, जबकि तीन हजार करोड़ रुपये फॉरेन करेंसी की मिलती है।
इतना ही नहीं वहां चाय बगानों में लगभग सात लाख मजदूर काम करते हैं, जिसमें 70 फीसदी झारखंड संताल परगना और राज्य के अलग-अलग इलाकों के आदिवासी-मूलवासी हैं। अब झारखंड सरकार के इस फैसले से असम की राजनीति पर भी असर पड़ेगा। पहले तो वहां की सरकार पर झारखंड के आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने की मांग के जोर पकड़ने की संभावना है। वहीं इन चाय मजदूरों को आर्थिक तौर पर उनके योगदान को सम्मान भी मिलने की उम्मीद है।