नमूना सर्वेक्षण में भारतीय दवा की गुणवत्ता की पोल खुली
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विश्व बाजार में पिछड़ रहा है देश
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आम इस्तेमाल की दवा भी खराब
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कई चर्चित दवा नकली भी पायी गयी
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः भारत का दवा उद्योग फिर से उल्टी दिशा में चल रहा है। अफ्रीकी देशों में खांसी की दवा से चेतावनी संकेत मिलने के बाद भी दवा निर्माताओं को अपनी गुणवत्ता पर ध्या नहीं दिया है। इसी वजह से पैन-डी, पैरासिटामोल, विटामिन की गोलियां शेल्कल सहित 53 सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाएं भारतीय नियामक द्वारा गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहीं है। इसकी वजह से भारतीय दवा उद्योग को कोरोना वैक्सिन के वक्त जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़त मिली थी, वह फिर से कम होती चली जा रही है।
गुणवत्ता परीक्षण में विफल पाई गई दवाओं में पैरासिटामोल आईपी 500 मिलीग्राम, पैन-डी (एक एंटीएसिड), विटामिन बी कॉम्प्लेक्स और विटामिन सी सॉफ्टजेल, शेल्कल (विटामिन सी और डी 3), मधुमेह विरोधी दवा ग्लिमेपिराइड और रक्तचाप की दवा टेल्मिसर्टन शामिल हैं। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने अपनी नवीनतम मासिक रिपोर्ट में पैरासिटामोल, पैन-डी और कैल्शियम सप्लीमेंट्स सहित 50 से अधिक आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं को मानक गुणवत्ता के नहीं (एनएसक्यू) के रूप में चिह्नित किया है।
यह अलर्ट राज्य के दवा अधिकारियों द्वारा किए गए यादृच्छिक नमूने के बाद गुणवत्ता परीक्षण में विफल पाई गई दवाओं में पैरासिटामोल आईपी 500 मिलीग्राम, पैन-डी (एक एंटीएसिड), विटामिन बी कॉम्प्लेक्स और विटामिन सी सॉफ्टजेल, शेल्कल (विटामिन सी और डी3), मधुमेह विरोधी दवा ग्लिमेपिराइड और रक्तचाप की दवा टेल्मिसर्टन जैसी लोकप्रिय दवाएं शामिल हैं।
घटिया दवाओं का निर्माण कई प्रमुख दवा कंपनियों द्वारा किया गया था, जिनमें एल्केम लैबोरेटरीज, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (एचएएल), हेटेरो ड्रग्स, कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड, प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर और मेग लाइफसाइंसेज शामिल हैं। एनएसक्यू सूची में इन दवाओं की मौजूदगी सावधानी बरतने और रोगी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आगे की नियामक जांच की मांग करती है।
गुणवत्ता जांच में विफल होने वाली दवाओं में मेट्रोनिडाजोल शामिल है, जिसका व्यापक रूप से पेट के संक्रमण के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है, जिसे सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई हिंदुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड (एचएएल) द्वारा उत्पादित किया गया था। प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर द्वारा निर्मित और टोरेंट फार्मास्युटिकल्स द्वारा वितरित एक लोकप्रिय कैल्शियम सप्लीमेंट शेल्कल भी आवश्यक मानकों को पूरा करने में विफल रहा।
उल्लेखनीय रूप से, कोलकाता में एक दवा परीक्षण प्रयोगशाला ने एल्केम हेल्थ साइंस के एंटीबायोटिक्स क्लैवम 625 और पैन डी को नकली घोषित किया। इसके अतिरिक्त, हैदराबाद स्थित हेटेरो द्वारा निर्मित, गंभीर जीवाणु संक्रमण वाले बच्चों के लिए निर्धारित दवा, सेपोडेम एक्सपी 50 ड्राई सस्पेंशन को उसी प्रयोगशाला द्वारा घटिया पाया गया।
कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड की पैरासिटामोल टैबलेट को भी गुणवत्ता संबंधी मुद्दों के लिए चिह्नित किया गया था। दवाइयों में भी यह सारी ऐसी दवाएं हैं, जिनका आम तौर पर अधिक इस्तेमाल होता है। गुणवत्ता जांच से यह साफ हो गया है कि दवा निर्माता लोगों की जान से खेल रहे हैं जबकि मरीजों को फायदा नहीं होने की असली वजह का पता भी नहीं चल पा रहा है।
याद दिला दें कि कोरोना महामारी के वक्त भी एक दवा के बाजार में बहुत अधिक चलने का असली राज बाद में खुल गया था। जांच में पाया गया था कि दवा उत्पादक कंपनी ने डाक्टरों को अत्यधिक कमिशन देकर अथवा विदेश दौरे का लालच देकर नाहक भी मरीजों के बीच इस दवा को प्रचलित किया था। वैसे इस घटना के बाद सरकारी स्तर पर आगे कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई और सारा मामला अंततः शायद रफा दफा कर दिया गया।