सेबी प्रमुख के वेतन पर आईसीआईसीआई बैंक के स्पष्टीकरण से और सवाल उठे है। स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस ने इस पर अधिक स्पष्टीकरण की मांग कर दी है।
सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच को किए गए भुगतान के संबंध में आईसीआईसीआई बैंक के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस ने मंगलवार को दावा किया कि बैंक के स्पष्टीकरण से जितने सवालों के जवाब मिले हैं, उससे कहीं अधिक सवाल उठे हैं।
एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने बताया कि पुरी बुच 2013 में आईसीआईसीआई बैंक से सेवानिवृत्त हुईं और उन्हें 5.03 करोड़ रुपये दिए गए।
उन्होंने कहा कि मान लें कि यह उनकी सेवानिवृत्ति देय राशि थी, जिसका 2014-15 में निपटान हो गया था, तो 2016-17 में फिर से पेंशन कैसे शुरू हुई, जब बुच सेबी की पूर्णकालिक सदस्य बन गईं। उन्होंने कहा कि 2015-16 में बैंक ने उन्हें कुछ नहीं दिया।
पुरी-बुच की पेंशन को चमत्कारी पेंशन करार देते हुए खेड़ा ने बताया कि उन्हें उनके वेतन से दोगुने से अधिक पेंशन दी गई।
उन्होंने बताया कि पुरी बुच का औसत वार्षिक वेतन 1.3 करोड़ रुपये था, जबकि उनकी औसत वार्षिक पेंशन 2.77 करोड़ रुपये थी। खेड़ा ने आईसीआईसीआई और पुरी बुच से यह बताने की मांग की कि 2017 में उनकी पेंशन फिर से क्यों शुरू हुई, जो संयोग से उनके सेबी की पूर्णकालिक सदस्य बनने के साथ ही शुरू हुई।
आईसीआईसीआई बैंक ने स्टॉक एक्सचेंज को एक नोटिस के माध्यम से स्पष्टीकरण जारी किया, जिसमें कहा गया कि बैंक से बाहर निकलने के बाद बुच को किए गए भुगतान विशुद्ध रूप से सेवानिवृत्ति लाभ थे, न कि वेतन या कर्मचारी स्टॉक विकल्प।
कांग्रेस नेता ने आईसीआईसीआई के स्पष्टीकरण का विरोध किया कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों सहित कर्मचारियों के पास निहित होने के दस साल बाद तक ईसॉप्स का उपयोग करने का विकल्प था।
आईसीआईसीआई की सार्वजनिक रूप से प्रकट की गई ईसॉप्स नीति का हवाला देते हुए, जो पूर्व कर्मचारियों को समाप्ति के बाद अधिकतम तीन महीने के भीतर अपने विकल्पों का प्रयोग करने की अनुमति देती है, खेड़ा ने पूछा, यह संशोधित नीति कहाँ है जिसके तहत माधबी पुरी बुच अपनी स्वैच्छिक समाप्ति के आठ साल बाद ईसॉप्स का प्रयोग करने में सक्षम थीं?
खेड़ा ने आईसीआईसीआई बैंक द्वारा बुच की ओर से ईसॉप्स पर टीडीएस का भुगतान करने के बारे में भी चिंता जताई। उन्होंने सवाल किया कि क्या इस प्रोटोकॉल का पालन सभी कर्मचारियों के लिए किया जाता है या बुच को तरजीही व्यवहार प्राप्त हुआ है।
इससे पहले एक सार्वजनिक मंच पर पूंजी बाजार नियामक सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच ने कहा कि यदि वह भारतीय उद्योग परिसंघ के किसी कार्यक्रम में रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (आरईआईटी) पर चर्चा में भाग लेंगी तो उनके खिलाफ आरोप लग सकते हैं।
उन्होंने कहा, आज, अगर मैं इसके बारे में कुछ भी बोलती हूं, तो मुझ पर हितों के टकराव का आरोप लगाया जाता है। यह तब हुआ जब सेबी प्रमुख को अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद जांच का सामना करना पड़ा कि माधवी पुरी बुच का ब्लैकस्टोन के साथ हितों का टकराव था क्योंकि उनके पति धवल बुच को वैश्विक परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी- रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट में एक प्रमुख निवेशक के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था।
सेबी अध्यक्ष ने REITs की भविष्य के लिए अपने पसंदीदा उत्पादों के रूप में प्रशंसा की और निवेशकों से परिसंपत्ति वर्ग पर सकारात्मक रूप से देखने का आग्रह किया, हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया।
इसमें कहा गया है, उन बयानों को करते समय, वह यह उल्लेख करना छोड़ गईं कि ब्लैकस्टोन, जिसे उनके पति सलाह देते हैं, परिसंपत्ति वर्ग से काफी लाभ उठाती है। कुल मिलाकर जो सवाल सेबी प्रमुख से जुड़े हैं और अब समाज के बीच चर्चा के केंद्र में हैं, उन्हें कंबल के नीचे छिपाने से संदेह और भी बढ़ जाता है। अजीब स्थिति यह है कि इन तमाम मुद्दों का एक छोर अडाणी कारोबार की तरफ ही जाता है, जिसे बचाने के लिए केंद्र सरकार की जददोजहद अब स्पष्ट है। इतना तो स्पष्ट है कि अंदर की सूचनाएं कांग्रेस तक पहुंचाने वाला कोई व्यक्ति सेबी अथवा आईसीआईसीआई से जुड़ा है। अब आने वाले दिनों में आईसीआईसीआई बैंक पर पूर्व में लगे आरोपों पर भी नया विवाद उठ खड़ा हो सकता है, जिसे सेबी के क्लीन चिट से नजरअंदाज कर दिया गया था। कुल मिलाकर यह माना जा सकता है कि सत्ता शीर्ष पर पहुंच रखने वाले जनता की जेब के पैसों का किस तरह दुरुपयोग कर रहे हैं और देश की जनता हर रोज गरीब से और गरीब होती जा रही है।