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झारखंड के डीजीपी बदलने का फैसला विधि सम्मत नहीं है ?

पहले से निर्धारित है इसके सारे नियम कानून


  • यूपीएससी की चिट्ठी पहले से जारी

  • पद की पुष्टि केंद्र सरकार से होगी

  • जांच लंबित हो तो नाम नहीं जाएगा


राष्ट्रीय खबर

रांचीः झारखंड के डीजीपी बदलने के आधी रात के फैसले पर राजनीति गरमा रही है। कांग्रेस ने शायद अंदर की इस आग को भांप लिया है और वह पहले ही इस फैसले से कन्नी काट रही है। इस बीच इस राजनीति में कांग्रेस के एक मंत्री अवश्य निशाने पर आ गये हैं।

दरअसल दलित अफसर के बदले वैश्य अधिकारी को यह जिम्मेदारी चुनाव से पहले सौंपने का फैसला एक बहुत बड़े मतदाता वर्ग को नागवार गुजरा है।

इस किस्म की राजनीति में पैठ रखने वाले संगठन अपने अपने स्तर पर इसके असर को तौल चुके हैं पर औपचारिक तौर पर किसी ने अब तक मुंह नहीं खोला है।

वैसे भी झारखंड में आदिवासियों और दलितों को सरकार में उचित प्रतिनिधित्व देने की मांग को लेकर कई संगठन पहले से ही आंदोलनरत है।

दूसरी तरफ झारखंड की अफसरशाही भी चुप्पी साधे हुए है। ऐसे पदस्थापन के नियम कानून से सभी अच्छी तरह वाकिफ हैं और पहले भी ऐसी एक साजिश हुई थी, जिसे तत्कालीन मुख्य सचिव सुखदेव सिंह ने बीच में ही रोक दिया था।
डीजीपी की पदस्थापना संबंधी मामले में सुप्रीम कोर्ट का विस्तारित फैसला सभी की जानकारी में है। इसके अलावा भी केंद्र सरकार ने इसके लिए जो नियम पहले से बना रखे हैं उस पैमाने पर हेमंत सरकार का यह फैसला शायद टिक नहीं पायेगा।

यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन ने करीब ग्यारह महीने पहले 26 सितंबर 2023 को एक पत्र सभी राज्यों के लिए जारी किया था। इसमें डीजीपी पद पर पदस्थापना के नियमों में हुए बदलावों की जानकारी दी गयी थी।

नये डीजीपी की बहाली के लिए यूपीएससी के चैयरमैन की अध्यक्षता में एक कमेटी की बैठक में विचार करने की बात कही गयी थी। इस पत्र के क्रमांक तीन के खंड दो  में यह साफ साफ लिखा गया है कि वैसे अधिकारियों का ही चयन किया जाएगा, जिनका रिकार्ड पाक साफ रहा हो। इस पद के लिए तैयार होने वाले पैनल में सिर्फ तीन नाम भेजने का निर्देश था।

हटाये गये डीजीपी अजय सिंह से कैडर लिस्ट के मुताबिक जो दो अफसर वरीय है, दोनों ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर है। इससे नीचे के तीन वरीयताक्रम में क्रमशः अनिल पाल्टा, अनुराग गुप्ता और प्रशांत सिंह आते हैं। प्रशांत सिंह अभी स्केल 15 के अफसर है। चयन प्रक्रिया के लिए खास तौर पर अफसर के पिछले दस वर्षों का बेदाग कार्यकाल पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।

इस दिशा निर्देश के क्रमांक सात खंड 2 में भी यह साफ साफ लिखा है कि किसी के खिलाफ अगर विजिलेंस की जांच नाम भेजने के पहले से चल रही है तो उनके नाम पर विचार नहीं किया जाएगा। इन कारणों से समझा जाता है कि अनुराग गुप्ता को डीजीपी बनाने का फैसला केंद्र से मंजूरी शायद नहीं पा सकेगी।

अनुराग गुप्ता के खिलाफ भाजपा की तरफ से राज्यसभा हार्स ट्रेडिंग के अलावा भी कई आरोप लगे थे। पुलिस के पाक साफ होने की रिपोर्ट दाखिल होने के बाद भी उच्च न्यायालय में मामला लंबित है। इसलिए चुनाव में ऐसे अधिकारी को जिम्मेदारी कैसे मिलेगी, यह बड़ा सवाल पुलिस विभाग के अंदर ही चल रहा है।

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