गजराजों के खाने पीने के लाले पड़े, विभाग पार्क बनाने में व्यस्त
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सीधे टकराव से बच रहे हैं गांव वाले
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भोजन और पानी का भी इंतजाम किया
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इको पार्क की तर्ज पर बन रहा पार्क
वी कुमार
चाकुलियाः बहरागोड़ा के इलाके में किसी भी दिन हाथियों और इंसानों के टकराव के घातक परिणाम निकल सकते हैं। वहां के करीब डेढ़ सौ हाथियों के झूड के खाने पीने की भारी कमी है। इसी वजह से हाथियों का दल कभी भी आबादी वाले इलाके में चला आ रहा है। ग्रामीण भी हाथियों की मजबूरी को समझते हुए उनके रास्ते में नहीं आते हैं। ग्रामीणों के स्तर पर अब खतरा टालने के लिए जगह जगह पर हाथियों के लिए थोड़ा बहुत भोजन और पानी भी रखा जा रहा है ताकि हाथी उत्तेजित नहीं हो। इसके बाद भी टकराव का खतरा हमेशा बना हुआ है।
दूसरी तरफ ग्रामीणों की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि इस परेशानी को जानने और अच्छी तरह समझने के बाद भी वन विभाग के लोग इस पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। वन विभाग का पूरा ध्यान अभी पार्क और गेस्ट हाउस बनाने पर है। लोगों का आरोप है कि अन्य विभागों की तरह अब वन विभाग को भी ठेकेदारी के कमिशन का चस्का लग गया है। यही कारण है कि वे जंगल बढ़ाने और उसके देखभाल के बदले निर्माण कार्यों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं।
मामले की तह में जाने पर यह पता चला है कि यह समस्या अचानक ही खड़ी नहीं हुई है। दलमा अभयारण्य की हालत खराब होने के बाद हाथियों ने विकल्प की तलाश में इस जंगल को चुना है। पिछले दो तीन वर्षों से वे इसी इलाके में खुद को अधिक सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सिंहभूम के दूसरे इलाकों में खदानों के विस्फोट और बड़े वाहनों का शोर शायद उन्हें परेशान करता है।
यहां के जंगल में अधिक शांति है पर यहां के जंगल छोटे हैं। इसी वजह से हाथियों के इतने बड़े समूह के लिए भोजन और पानी की समस्या उत्पन्न हो रही है। अब तो आबादी वाले इलाकों में हाथी कचड़े के ढेर से भी भोजन तलाशते हुए देखे जा सकते हैं। विभागीय अधिकारियों को तमाम बातों की जानकारी दी गयी थी। वन विभाग की तरफ से अब तक इस समस्या के समाधान की दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। दूसरी ओर वन विभाग जंगलो की कटाई कर क़रीब 80 एकड़ में तीस से चालीस करोड़ की लागत से कोलकाता के ईको पार्क के तर्ज और एक पार्क का निर्माण करने में अधिक व्यस्त है।