झामुमो का रथ रोकने के लिए भाजपा की रणनीति तय नहीं
-
पड़ोसी राज्यों में खूब काम किया है
-
दिल्ली बुलावा आया था पर नहीं गये
-
अमित शाह के दौरे से साफ होगी तस्वीर
राष्ट्रीय खबर
रांचीः झारखंड भाजपा को अगले विधानसभा चुनाव में झामुमो से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल कांग्रेस के बिना भी झामुमो अपने जनाधार वाले इलाकों में लगातार सक्रिय रही है जबकि भाजपा के बड़े नेता सिर्फ बयान और सोशल मीडिया तक सीमित होकर रह गये हैं। लोकसभा चुनाव के परिणामों ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को फिर से रणनीति तैयार करने को सतर्क किया है। इसलिए संभावित समीकरणों में कौन झामुमो को टक्कर दे सकता है, इस सोच के बीच से अर्जुन मुंडा का नाम उभरकर सामने आ रहा है।
केंद्र में मंत्री बनाये जाने के बाद से ही अर्जुन मुंडा ने बड़ी सावधानी से खुद को प्रदेश की राजनीति से अलग कर रखा था। इस दौरान वह बयान देने तक से परहेज करते रहे। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा के चुनाव प्रचार में श्री मुंडा ने कड़ी मेहनत की।
खूंटी लोकसभा का चुनाव हार जाने के बाद भी पूरे राज्य में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ अब भी ऊपर है। इसकी एक खास वजह उनका कुशल व्यवहार है और राज्य के सभी इलाकों में वह लोगों से सीधा संवाद करने की क्षमता रखते हैं। बावजूद इसके रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद से वह प्रदेश की राजनीति से अलग हो गये थे और सिर्फ खूंटी लोकसभा के मुद्दों पर काम करते रहे।
सरना कोड और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से जो माहौल बना, उससे भाजपा का यह मजबूत पेड़ भी उखड़ गया। अब विधानसभा का चुनाव करीब आने की वजह से भाजपा को आदिवासी और अनुसूचित जाति के सीटों की चिंता सता रही है। विधानसभा में विपक्ष के नेता अमर कुमार बाउरी का अपने क्षेत्र में अच्छा जनाधार है लेकिन वह पूरे राज्य तक अपनी पैठ नहीं रखते हैं।
इन तमाम सीटों पर भाजपा को संजीवनी सिर्फ अर्जुन मुंडा की सक्रियता से ही मिल सकती है पर इसमें अभी कई प्रश्न चिह्न है। दिल्ली से मिल रही जानकारी के मुताबिक लोकसभा चुनाव के बाद दो बार नेतृत्व ने उन्हें दिल्ली बुलाया था। अपने निजी कारणों से वह दिल्ली नहीं जा सके। अब चर्चा है कि अमित शाह के प्रस्तावित झारखंड दौरे में इसकी स्थिति थोड़ी स्पष्ट हो सकती है। इससे पहले राज्य के चुनाव सह प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री डॉ हिमंता बिस्वा सरमा भी श्री मुंडा से मिलकर गये हैं। इसलिए अब झारखंड में भाजपा के फंसे हुए रथ को निकालने में अर्जुन की सक्रियता कितनी होगी, इस पर पार्टी के लोगों की भी नजर है।