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झारखंड में ऑपरेशन लोट्स का खतरा अभी टला नहीं

मंत्रिमंडल गठन के बाद साफ होगी तस्वीर


  • ब्यूरोक्रेसी भी शामिल है इस खेल में

  • हेमंत के नहीं होने से बढ़ेगी परेशानी

  • कई लोगों के बारे में पहले से चर्चा


राष्ट्रीय खबर

रांचीः हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के  बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की साजिश फेल हो गयी। झामुमो ने इस घटनाक्रम के लिए सीधे तौर पर राज्यपाल को जिम्मेदार ठहराया है। झामुमो का कहना है कि राज्यपाल अब भाजपा के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं। वैसे इस किस्म की बयानबाजी के बीच ही चंपई सोरेन की सरकार ने विश्वासमत हासिल कर लिया है।

विधानसभा के संक्षिप्त सत्र में उम्मीद से अधिक वोट हासिल करने की वजह से ऐसा माना गया है कि अब सरकार स्थायित्व में है। दूसरी तरफ जो सूचनाएं  अपुष्ट तौर पर बाहर आ रही हैं, वे इस सरकार के स्थायित्व पर सवाल खड़े करती हैं। दरअसल माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में कौन शामिल होगा और कौन छूट जाएगा, इस पर आगे का खेल निर्भर करता है।

दरअसल इस संभावित मंत्री परिषद में गुरुजी यानी शिबू सोरेन परिवार का एक व्यक्ति शामिल होगा, यह स्वाभाविक है क्योंकि उस परिवार से ही हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री थे। ईडी की हिरासत में होने की वजह से वह अपने राजनीतिक सहयोगियों के संपर्क में नहीं हैं। इसलिए वह इस सरकार को कोई सलाह देने की स्थिति में नहीं है।

गुरुजी के परिवार के दो दावेदार विधायक सीता सोरेन और बसंत सोरेन हैं जबकि झामुमो का एक खेमा कल्पना सोरेन को भी जिम्मेदारी सौंपने की वकालत करता रहा है। फिलहाल चयन तो दोनों विधायकों के बीच से होगा। अगर ऐसे में सीता सोरेन को इसमें शामिल किया जाता है तो महिला कोटा से जोबा मांझी को दोबारा मंत्री बनाया जाएगा अथवा नहीं, यह बड़ा सवाल खड़ा हो जाएगा। इसके अलावा सत्तारूढ़ पक्ष के कई महिला विधायकों ने अपनी अपनी दावेदारी पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसलिए अगर ऑपरेशन लोट्स के लोगों के यहां एक छेद भी दिख गया तो वे फिर से इसी रास्ते से हमला करेंगे।

अब कांग्रेस के अंदर भी उथल पुथल होने की चर्चा काफी समय पहले से है। कोलकाता के रास्ते में तीन विधायकों के गिरफ्तार होने के वक्त से ही यह माना जा रहा है कि झारखंड में किसी भी समय बिरसा कांग्रेस नामक संगठन का उदय हो सकता है। इस प्रस्तावित संगठन के पास विधायकों की पर्याप्त संख्या नहीं होने की वजह से यह मसला टलता आ रहा है। अगले मंत्रिमंडल पुनर्गठन में अगर इस गुट की अनदेखी की गयी तो लोकसभा चुनाव के पहले भी कांग्रेस में विभाजन संभव है।

इन सभी खेमाबाजियो से अलग झामुमो के पुराने नेता भी हैं, जो सिर्फ शिबू सोरेन के प्रति अपनी निष्ठा रखते हैं। अब दुर्गा सोरेन की मौत के बाद इस खेमा ने हेमंत को अंदर से कभी भी अपना नेता स्वीकार नहीं किया था। सिर्फ गुरुजी के प्रति आदर होने की वजह से वे पार्टी में शामिल रहे पर हेमंत सोरेन के करीब कभी नहीं रहे। इसलिए बदली हुई परिस्थितियों में यह सारे पुराने लोग भी काफी कुछ फेरबदल करने की क्षमता रखते हैं। इसलिए यह नहीं कहा जाना चाहिए कि झारखंड में अभी ऑपरेशन लोट्स समाप्त हो चुका है।

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