पहले पश्चिम बंगाल और अब केरल ने झंडा उठा लिया है। पिनाराई विजयन ने लंबित जीएसटी बकाया को लेकर केंद्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली चलो का आह्वान किया है। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की छवि एक सख्त मिजाज व्यक्ति की है। उनकी सरकार ने केंद्र सरकार से अपना कर बकाया पाने के लिए हरसंभव कोशिश की है, जो राज्य की अनदेखी कर रही है।
कम्युनिस्ट नेता ने अब 8 फरवरी को वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के सांसदों के साथ जंतर-मंतर पर एक दिवसीय धरना देकर इस लड़ाई को दिल्ली तक ले जाने का फैसला किया है। सरकार लगभग चार लाख लाभार्थियों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन देने के लिए धन की कमी महसूस कर रही है। केंद्र पर जीएसटी मुआवजे, राजस्व घाटा अनुदान और अन्य फंड के 57,000 करोड़ रुपये जारी नहीं करने का आरोप लगाया है।
जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सहयोगी दल, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने विरोध प्रदर्शन में शामिल होने से इनकार कर दिया है। दूसरी तरफ राम मंदिर के उदघाटन समारोह में जाने के इंकार करने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री ने बाद में सपरिवार अयोध्या जाने की बात कही है। यह कोई रहस्य नहीं है कि राजनेता हर कदम पर व्यवसाय से मतलब रखते हैं। एचडी कुमारस्वामी भी अलग नहीं हैं।
जनता दल (सेक्युलर) के नेता, जिनके बारे में ऐसी अफवाह थी कि वह अपनी पार्टी को भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल करने के पुरस्कार के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं, ने इस बात से इनकार किया है कि ऐसी कोई योजना कभी थी और उन्होंने पूरी तरह से ऐसा करने का आह्वान किया। उन्होंने जोर देकर कहा, खासकर जब आम चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं।
कुमारस्वामी ने आगे तर्क दिया कि वह कार्यालय में इतने कम समय में लोगों की सेवा नहीं कर पाएंगे, जिसे मॉडल के बाद और भी छोटा कर दिया जाएगा। फिलहाल, कुमारस्वामी और उनके बेटे निखिल राम मंदिर के अभिषेक में एचडी देवेगौड़ा के साथ जाएंगे। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा की उनकी चतुराई के लिए सराहना की जानी चाहिए। पिछले सप्ताह एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए ओडिशा का दौरा करते समय, शर्मा ने विश्वास जताया कि नवीन पटनायक की 23 साल पुरानी सरकार की जगह भाजपा राज्य में सत्ता में आएगी।
उन्होंने कहा कि लोगों ने ओडिशा में भाजपा को आशीर्वाद देने का मन बना लिया है। अपने दावे का समर्थन करने के लिए, उन्होंने उल्लेख किया कि ओडिशा में दोनों पार्टियों के वोट शेयर में केवल मामूली अंतर है, इसलिए भाजपा के पास कवर करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें यकीन है कि भाजपा सत्ता में आएगी, तो सीएम ने जवाब दिया कि वह शपथ ग्रहण समारोह के लिए ओडिशा आएंगे।
उन्होंने भाजपा नेताओं से लोगों को शासन का वैकल्पिक मॉडल देने को भी कहा। जहां उनके समर्थकों ने उनके आत्मविश्वास की सराहना की, वहीं विरोधियों का कहना है कि वह ओडिशा की जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ हैं, क्योंकि भाजपा अब तक राज्य में खुद को स्थापित करने में विफल रही है। दूसरी तरफ राहुल गांधी के आरोपों से वह अब बौखलाए हुए हैं।
जब जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने हाल ही में वर्चुअल मीटिंग में भारत के संयोजक के पद को खारिज कर दिया, तो राजनीतिक क्षेत्र में हर कोई अटकलें लगाने लगा। अब मीडिया का एक वर्ग लगातार नीतीश कुमार के फिर से भाजपा के साथ जाने की खबरें प्रसारित कर रहा है। इसके बीच ही भाजपा ने अयोध्या में मंदिर उदघाटन के बहाने की चुनावी प्रचार प्रारंभ कर दिया है।
पूरे देश में भगवा पताका लगने का खर्च कौन उठा रहा है, यह आम जनता को पता नहीं है। भाजपा के सारे नेता इसी काम में लगे हुए हैं। यह अलग बात है कि किसी भी मंत्री अथवा सांसद को वहां जाने की इजाजत नहीं है। इससे भाजपा के अंदर भी दूसरे लोगों की औकात का पता चल जाता है। ऐसे में हेमंत सोरेन ने ईडी से अपने ही आवासीय कार्यालय में भेंट की।
करीब सात घंटे तक चली पूछताछ का नतीजा क्या निकला, इस बारे में पहली बार ईडी ने अनौपचारिक अथवा औपचारिक तरीके से कोई जानकारी नहीं दी। वरना इससे पहले किसी अज्ञात सूत्र के जरिए यह सूचनाएं बाहर आती थी। दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल ने फिर से ईडी के समन को नजरअंदाज कर दिया है। बंगाल में ईडी के अफसरों पर जानलेवा हमला होने के बाद अब ईडी के अफसरों को भी आंटा दाल के भाव का पता लग गया है. ऐसे में केंद्र और गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ बढ़ रहे टकराव के बीच अब सुरक्षा बल भी बंट रहे हैं। इससे पूरा देश ही प्रभावित हो रहा है। यह लोकतांत्रिक देश के लिए शुभ संकेत नहीं है।