कोलकाता उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि उसके निर्देश के बिना पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के परिणामों की घोषणा नहीं की जाए। इसके बीच ही लगभग यह स्पष्ट हो गया है कि इस चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस का डंका बजा है और अनुमान है कि राज्य में पचास प्रतिशत से अधिक लोगों ने उसके प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान किया है।
दरअसल अदालत में भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी, प्रियंका टिबरेवाल और फरहाद मलिक द्वारा अशांति और फिर से चुनाव की मांग करते हुए तीन नई जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। बुधवार की सुनवाई के दौरान आयोग का कोई भी अधिकारी कोर्ट में पेश नहीं हुआ था। कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टीएस सिवाज्यनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने बुधवार को पंचायत मामले की सुनवाई में यह टिप्पणी की और आदेश दिया कि वादी पक्ष गुरुवार तक सारी जानकारी अदालत में जमा करें।
इस मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को होगी। राज्य चुनाव आयोग के प्रतिनिधि की अनुपस्थिति में मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि अदालत केंद्रीय बलों के साथ असहयोग के मुद्दे पर गौर करेगी। आयोग को दोबारा चुनाव की समीक्षा करनी होगी। मामले में जो बूथ सामने आए हैं, उन्हें देखा जाएगा।
जो घटना हुई उसकी जिम्मेदारी आयोग को लेनी चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि अदालत इस बात से आश्चर्यचकित है कि राज्य सरकार चुनाव नतीजों के बाद किसी भी अशांति से नहीं निपट सकी। मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी, अगर राज्य अपने नागरिकों की रक्षा नहीं कर सकता तो अदालत इसे महत्वपूर्ण मानेगी। आयोग को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। यानी अदालत के इस फैसले पर जीतने वाले उम्मीदवारों का भविष्य निर्भर करेगा।
चुनाव आयोग को जीतने वाले उम्मीदवारों को यह घोषणा करनी होगी कि उनका परिणाम अदालत के आदेश पर निर्भर करेगा। कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने कहा कि चुनाव आयुक्त को 5000 बूथों पर दोबारा चुनाव की मांग पर विचार करना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने बुधवार को कहा कि चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद भी हो रही घटनाओं को देखकर अदालत आश्चर्यचकित है।
आरंभ में ऐसा लगता है कि राज्य जो आतंकवाद और हिंसा चल रहा है, उस पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा है। लोगों के जीवन की स्वतंत्रता से समझौता किया जा रहा है। वहीं पुलिस पर निर्दोष लोगों की मदद न करने का आरोप है। यह सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है कि आम आदमी की शांति भंग न हो।
अगर वे ऐसा नहीं कर पाते तो यह बेहद चिंताजनक है। और कोर्ट इसे गंभीर मामले के तौर पर दर्ज करेगा। केंद्र सरकार के वकील ने भी आयोग पर आरोप लगाते हुए कहा, आज तक हमें आयोग से संवेदनशील बूथों की सूची नहीं मिली है। साढ़े तीन बजे कमिश्नर को बुलाया जाए। कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्होंने सहयोग क्यों नहीं किया? मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने बुधवार को कहा कि मंगलवार को चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद से विपक्षी उम्मीदवारों के घरों में तोड़फोड़ की शिकायतें आ रही हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, राज्य को लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। हिंसा की इतनी शिकायतें क्यों हैं? भाजपा के वकील गुरु कृष्णकुमार ने आरोप लगाया कि मतपेटियों को फुटबॉल की तरह खेला गया। मतपेटियों को लात मारकर छीना जा रहा है। और सब कुछ पुलिस के सामने हो रहा है। उन्होंने कहा, ”हमें एक मतपेटी मिली।
इसे कल काउंटिंग सेंटर से बाहर कर दिया गया। हमने इसे कोर्ट में लाने को कहा है।’ इसमें मतपत्र हैं।” कहां-कहां तैनात की गई है केंद्रीय बल? यह एक विकल्प है! चुनाव आयुक्त का कहना है कि वह गोलीबारी की घटना की जिम्मेदारी नहीं लेंगे। याचिकाकर्ता की वकील प्रियंका ने कहा, मैंने शिकायत दर्ज करने के लिए एक ईमेल आईडी खोली है। अब तक 250 शिकायतें मिलीं। पूरे राज्य में अशांति है। हारे हुए प्रत्याशियों को प्रताड़ित किया जाता है।
इन दलीलों के बीच और अदालती रोक के बाद भी जो तस्वीर उभर रही है, उसमें टीएमसी प्रत्याशियों द्वारा जीत का जश्न बनाना प्रमुख है। दूसरी तरफ असम से यह रिपोर्ट आयी है कि पड़ोसी राज्य के अनेक लोग जान बचाने के लिए असम भाग गये हैं, जहां धुबरी में उनक रहने की व्यवस्था की गयी है।
फिर भी यह प्रश्न अनुत्तरित है कि व्यापक हिंसा में अगर तृणमूल कांग्रेस के अधिक लोग मारे गये तो हिंसा किसने की और केंद्रीय सुरक्षा बलों को यहां क्यों भेजा गया था। यह सर्वविदित चुनावी सत्य है कि अगर मतदान केंद्रों पर किसी खास दल का कब्जा हुआ है तो वहां का जनसमर्थन उस पार्टी के पक्ष में अधिक था। इस सच को सभी राजनीतिक दल अच्छी तरह जानते हैं क्योंकि मतदान केंद्रों पर कब्जा करने की तकनीक इन्हीं दलों की ईजाद है। हिंसा रोकने की दिशा में राज्य के साथ साथ केंद्र की भी जिम्मेदारी है, इस पर भी चर्चा होनी चाहिए।