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भाजपा अपने लिए परेशानी पैदा कर रही है

दिल्ली में सरकारी अफसर ही चुनी हुई सरकार को चुनौती दे रहे हैं। जाहिर सी बात है कि आम तौर पर ऐसा बिल्कुल नहीं होता और सरकारी महकमें में तबादला एक सामान्य प्रक्रिया है। फिर इन अधिकारियों का विभाग अथवा कुर्सी बदलने से किसे परेशानी है।

ताजा मामला वहां के सतर्कता विभाग के विशेष सचिव वाईवीवीजे राजशेखर का है। राजशेखर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय, दिल्ली के भ्रष्टाचार निरोधक शाखा और उपराज्यपाल कार्यालय को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने अपने कार्यालय में रात में तोड़ने, आबकारी नीति की जाँच, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के नवीनीकरण और संवेदनशील फाइलों की फोटोकॉपी किए जाने की शिकायत की है।

केजरीवाल के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने पिछले सप्ताह राजशेखर को हटा दिया था। इसके बाद 15-16 मई की रात 3 बजे दिल्ली सचिवालय में विशेष सचिव (सतर्कता) के कमरा नंबर 403 को तोड़ दिया गया था। अपने पत्र में राजशेखर ने कहा कि दिल्ली सरकार के मंत्री (सतर्कता) सौरभ भारद्वाज ने सहायक निदेशकों को भ्रष्टाचार के मामलों से संबंधित फाइलों को सतर्कता अधिकारी को जमा नहीं करने का निर्देश दिया था।

यह पत्र उनके पुरानी रिपोर्ट का अगला हिस्सा है। पत्र में कहा गया है, कि माननीय मंत्री के ये निर्देश जब दिनांक 15।05।2023 को पूर्वाह्न 11।30 बजे प्राप्त हुए, उस समय अधोहस्ताक्षरी के गोपनीय खंड में लगभग 76 फाइलें थीं। इन फाइलों को माननीय मंत्री (सतर्कता) के निर्देशानुसार जाँच किए बिना केवल रिकॉर्ड करने के लिए सचिव (सतर्कता) को भेज दिया गया था।

ये ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि माननीय मंत्री ने अधोहस्ताक्षरी को फाइलों की जाँच नहीं करने का निर्देश दिया। राजशेखर का कहना है कि किसी भी परिस्थिति में मंत्री को फाइलें स्थानांतरित करने का मानदंड नहीं है। इसका अनिवार्य रूप से मतलब है कि मंत्री को सतर्कता अधिकारी की जाँच से दूरी बनाए रखनी चाहिए, ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।

हालाँकि, अपने-अपने काम को पूरा करने के सिद्धांत का उल्लंघन किया गया। सतर्कता अधिकारी का कहना है कि सहायक निदेशक (सतर्कता) बुनियाद सिंह ने 15 मई की रात 9:14 बजे उन्हें फोन किया और कहा कि अधिकारियों को कुछ रिकॉर्ड निकालने के लिए सतर्कता अधिकारी के कमरे को खोलने का निर्देश दिया गया है।

राजशेखर का कहना है कि उन्होंने फोन पर ही सौरभ भारद्वाज द्वारा दिए गए इन निर्देशों का और फाइलों को ले जाने का कड़ा विरोध किया। राजशेखर ने अपनी शिकायत में कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही उस जगह की सीसीटीवी फुटेज और सबूतों को संरक्षित करने की बात कही है

राजशेखर ने चीफ विजिलेंस ऑफिसर, चीफ सेक्रेटरी, प्रिंसिपल सेक्रेटरी एलजी, ज्वाइंट सेक्रेटरी गृहमंत्रालय, ज्वाइंट सीपी एसीबी और इंद्रप्रस्थ थाने को भी शिकायत की कॉपी भेजी है। यह सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद का घटनाक्रम है।

पत्र में लिखे गये तथ्यों से यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर आबकारी घोटाले में सीबीआई और ईडी की जांच होने के बाद भी उससे संबंधित फाइल इस अधिकारी के यहां क्यों थी। तबादले के बाद भी फाइलें उनके पास क्यों थी, यह भी सवाल है।

इस प्रश्न का उत्तर स्वाभाविक है कि ऊपर से कोई इन तमाम अधिकारियों को दिल्ली की चुनी हुई सरकार के खिलाफ काम करने का निर्देश दे रहा है। यूं तो दिल्ली सरकार के अधिकारों को लेकर केजरीवाल सरकार व एलजी के बीच लंबे समय से चले आ रहे टकराव पर गुरुवार को शीर्ष अदालत ने मार्गदर्शक फैसला दिया है।

अधिकारों को लेकर जारी कानूनी लड़ाई के बात शीर्ष अदालत ने फैसला दिया कि अधिकारियों की तैनाती और स्थानांतरण का हक दिल्ली सरकार का है। जो अब तक दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर को ही था। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि भूमि, लोक व्यवस्था तथा पुलिस केंद्र सरकार के अधिकार के दायरे में रहेगी।

निस्संदेह, यह फैसला वर्ष 2019 में आये विभाजित फैसले से इतर स्पष्ट व मार्गदर्शक है। मुख्य न्यायाधीश डी।वाई। चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि जनता द्वारा चुनी गई दिल्ली सरकार के प्रत्येक कार्यक्षेत्र में एलजी दखल नहीं दे सकते।

अधिकारियों की तैनाती व तबादले का अधिकार जनता द्वारा चुनी सरकार के पास होना तार्किक ही है। दरअसल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार द्वारा तैनात अधिकारी उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं क्योंकि उनकी नियुक्ति व तबादले का अधिकार उनकी सरकार के पास नहीं है।

निस्संदेह, सुप्रीम कोर्ट का फैसला सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था के लिये ही नहीं बल्कि इसके राजनीतिक मायने भी हैं। कल की तारीख में जब सरकार बदल जाएगी तो अभी की करतूतों के लिए इन अधिकारियों को भुगतना भी पड़ेगा। जो पूरे देश के ब्यूरोक्रेसी की व्यवस्था को राजनीति के मकड़जाल में उलझाकर तहत नहस कर देगी। इस बात को तो उन लोगों को समझना होगा, जो अखिल भारतीय परीक्षा में पास होकर इस कुर्सी तक पहुंचे हैं।

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