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जातिगत गणना के डेटा बिना सामाजिक न्याय सम्भव नहीं : खड़गे

नयी दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सामाजिक न्याय के लिए जातिगत जनगणना के आंकड़े को आवश्यक बताते हुए कहा है कि जातिगत जनगणना के डाटा के बिना सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन का काम बहुत कठिन है।

श्री खड़गे ने कहा अब जब भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है, हमारे जन-कल्याण की योजनाओं और देश की तरक्की के लिए दो मुद्दे बेहद महत्वपूर्ण हैं। जनगणना 2021 शायद 2024 तक टल गया है। ऐसा क्यों।  जनगणना के आँकड़ों के बिना सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन बेहद मुश्किल है।

जातिगत जनगणना का डेटा सामाजिक न्याय के लिए बहुत जरूरी है। आम सेंसस में एससी, एसटी वर्ग की जनसंख्या तो पता चलता है पर ओबीसी वर्ग का नहीं जिससे उनके आरक्षण का सही अनुपात तय नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा, 2022 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद स्थानीय निकायों में आरक्षण विभिन्न जातियों की आबादी के अनुसार ही तय होना है।

भाजपा को अगर सही में ओबीसी वर्ग की फिक्र है तो टले हुए सेंसस 2021 में ही जातिगत जनगणना कराएँ और ओबीसी को अनुपात के हिसाब से आरक्षण मुहैया कराएँ। श्री खड़गे ने कहा, भाजपा जातिगत जनगणना से क्यों डरती है। वर्ष 2011-12 में जो जातिगत जनगणना हुई, खाद्य सुरक्षा कानून जैसी कल्याणकारी योजना उसी आधार पर संभव हो सकी।

मोदी सरकार ने 2015 में अरविंद पणगरिया कमेटी बनाकर जातियों का वर्गीकरण का कार्य शुरू कराया। यह क्यों किया तथा उसकी रिपोर्ट कहाँ है। उन्होंने कहा अगर मोदी सरकार के मंत्री और उनका पूरा इको सिस्टम, ओबीसी वर्ग की दिखावटी भलाई के लिए घड़ियाली आंसू बहाते रहते है, तो जातिगत जनगणना और सेंसस 2021 एक साथ फौरन क्यों नहीं कराते। सोशियो इकनोमिक कास्ट सेन्सस यानी जातिगत जनगणना,सेंसस का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। यही हमारी माँग है।

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