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अब तक झारखंड के नये डीजीपी के नाम का एलान नहीं

राजनीतिक मजबूरी या दबाव के शह मात का खेल

  • कमल नयन चौबे का अनुभव कड़वा रहा

  • योगेंद्र साव प्रकरण को लोग भूले नहीं है

  • अफसरों को सुप्रीम कोर्ट की चिंता भी है

राष्ट्रीय खबर

रांचीः झारखंड के डीजीपी पद से नीरज सिन्हा सेवानिवृत्त हो गये। उन्हे जैप मैदान में विदाई परेड की सलामी दी गयी और कल दोपहर को उन्होंने अपना पदभार त्याग दिया।

पिछले कई महीनों से नये डीजीपी के नाम पर सोच विचार के बाद भी सरकार अगले डीजीपी के नाम का एलान नहीं कर पायी। इससे साफ हो गया कि इस सरकार में कई किस्म के आंतरिक पेंच इस तरीके से उलझे हुए हैं, जिन्हें आसानी से सुलझाना खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वश की बात भी नहीं है।

यूपीएससी भेजे गये पैनल में से तीन नाम पहले चर्चा में आये थे। यह बताया गया था कि यूपीएससी ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चल रहे अजय भटनागर के अलावा डीजी विजिलेंस अजय सिंह और रेल डीजी अनिल पाल्टा में से किसी एक को तय करने का पत्र भेजा था।

नीरज सिन्हा के रिटायर होने के पहले ही इसमें नया नाम अनुराग गुप्ता का अचानक से चर्चा में आ गया। अनुराग गुप्ता पूर्व में रघुवर दास के करीबी माने गये थे। बाद में उन्होंने कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए मुकदमा जीत लिया और वरीयताक्रम बहाली के साथ साथ नौकरी पर लौट आये।

झारखंड की ब्यूरोक्रेसी की राजनीति में यह पेंच उतना आसान भी नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की भी नजर है। इसलिए अगर हेमंत सोरेन चाहें भी तो नियम के बाहर जाकर ऐसा कोई फैसला नहीं कर पायेंगे क्योंकि वैसी स्थिति में राज्य के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के कहर से खुद को बचाने के लिए अपना पल्ला झाड़ लेंगे।

अब पुलिस मुख्यालय सहित अन्य स्थानों पर इस बात की चर्चा है कि अजय भटनागर ने सीबीआई से राज्य की सेवा में वापस लौटने पर अपनी सहमति दे दी है। इस बात में कितना दम है, इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है। कुछ वेबसाइटों मे उन्हें डीजीपी बनाये जाने का एलान भी कर दिया है।

वैसे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से डीजीपी बनने आये कमल नयन चौबे का अनुभव कोई सुखद नहीं रहा है। दूसरी तरफ निचले तबके का पुलिस महकमा अब अनुराग गुप्ता की सबसे मजबूत दावेदारी की बात कर रहा है। तय है कि इन दोनों नामों को तय करने पर सत्तारूढ़ गठबंधन के अंदर ही घमासान होने से कोई रोक नहीं सकता।

कांग्रेस की विधायक अंबा प्रसाद के पिता और पूर्व विधायक योगेंद्र साव तथा मां एवं पूर्व विधायक निर्मला देवी के साथ अनुराग गुप्ता के कार्यकाल में जो कुछ हुआ है, वह कोई भूलाने वाली बात नहीं है। इसलिए अगर अनुराग गुप्ता मुख्यमंत्री का भरोसा जीतने में कामयाब भी हो जाते हैं तो कांग्रेस के अंदर असंतोष की आग और भड़केगी क्योंकि पार्टी में अंदर ही अंदर कई किस्म के विवाद चल रहे हैं।

दूसरी तरफ झामुमो खुद भी सिंहभूम के अपने राजनीतिक समीकरणों की वजह से रघुवर दास के करीबी अधिकारी को इस पद पर लाना स्वीकार नहीं करेगा। कहा जाता है कि इन चर्चाओं से दूर चल रह अनिल पालटा के लिए खुद तेजस्वी यादव ही रांची आये थे। इसलिए नये डीजीपी का मुद्दा अजीब पेंच में फंस गया है। इस पेंच में आर्थिक मसला भी एक महत्वपूर्ण विषय है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।

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