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पर्वतों पर मौजूद है ग्लेशियरों का ढेर
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पहले ही नीचे कई झील बन चुके हैं
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केदारनाथ हादसा इसका नमूना है
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः भारत के कई इलाकों में अचानक आने वाले ग्लेशियर के बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है। हिमालय के ग्लेशियों के बीच से मिट्टी और चट्टान के खिसक जाने से कई स्थानों पर झील बन गये हैं। इसमें से कोई भी झील अगर ऊपर से आने वाले ग्लेशियर की वजह से उफना तो नीचे के इलाकों में अचानक ही तबाही आ सकती है।
दुनिया भर के ग्लेशियरों पर शोध करने वालों ने भारत के अलावा कई अन्य देशों को भी यह चेतावनी दी है। यह खतरा उन सभी इलाकों में हैं जहां पहाड़ों पर ग्लेशियर हैं और अक्सर ही वहां चट्टान खिसकने की घटनाएं होती रहती है।
शोध दल ने केदारनाथ हादसे का भी उल्लेख किया है और बताया है कि ऐसे ही एक घटनाक्रम की वजह से केदारनाम में वैसी तबाही आयी थी। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर के ऐसे स्थानों के करीब बसने वालों की आबादी करीब डेढ़ करोड़ है।
इन स्थानों से करीब तीस मील की दूरी पर जो भी गांव अथवा आबादी है, वह कभी भी इसकी चपेट में आ सकती है क्योंकि ऐसे झीलों के टूटने के बाद जल प्रवाह की दिशा पहले से तय नहीं की जा सकती है। वे ऊपर से अधिक ग्लेशियर के साथ चट्टानों के खिसक आने के बाद किसी भी तरफ अचानक ही टूट सकते हैं।
शोध दल की वैश्विक रिपोर्ट में इस खतरे के दायरे में भारत के अलावा पाकिस्तान, चीन के अलावा पेरू भी है। दरअसल पहाड़ों पर जो अप्रत्याशित झील बन गये है, वे आम डैम के जैसे ही हैं। जब तक उनका जलस्तर पूरी तरह नहीं भरता है, उनसे कोई खतरा नहीं है।
मानव निर्मित डैमों में लगे गेट खोलकर जल के स्तर को कम किया जा सकता है। प्राकृतिक तौर पर बने इन झीलों को नियंत्रित करने का कोई उपाय नहीं है। वहां एकत्रित पानी अधिक होने पर वह प्राकृतिक बंधन को तोड़कर अपने स्वाभाविक आचरण के कारण नीचे के तरफ बह निकलेगा।
शोध दल ने पाया है कि वर्ष 1941 से अब तक इस किस्म के तीस से अधिक हादसे हो चुके हैं, जिसमें पंद्रह हजार से अधिक लोगों की जान गयी है। पाकिस्तान के गिलगिट और बाल्टीस्तान के इलाके में ऐसी घटनाएं अक्सर ही हो रही हैं।
इसी तरह नेपाल और कजाकिस्तान को भी इन हादसों का सामना करना पड़ा है। इन सभी के पर्वत शिखरों पर ग्लेशियर हैं और अचानक ही उनके खिसक जाने क वजह से ऐसा खतरा होता है। खतरा इसलिए भी अधिक है क्योंकि कई ऐसे ग्लेशियर निर्मित झीलों के करीब तक आबादी जा पहुंची है। शोध दल ने कहा है कि उत्तरी अमेरिका और यूरोप के आल्प्स पर्वत के पास ऐसा खतरा बहुत कम हैं क्योंकि वहां आबादी बहुत कम है।