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मुंबईः महाराष्ट्र के भाजपा नेता भी अनौपचारिक तौर पर मानते हैं कि पुरानी पेंशन स्कीम का विरोध करना अब भारी पड़ रहा है। वैसे नेता इस पर औपचारिक बयान देने से कतरा रहे हैं। हाल ही में संपन्न विधान परिषद के चुनाव परिणामों में पराजय के एक प्रमुख कारण के तौर पर इसी ओपीएस को देखा जा रहा है।
दूसरी तरफ स्नातक निर्वाचन क्षेत्रों के परिणाम यह दर्शाते हैं कि पढ़े लिखे वर्ग ने इस चुनाव में भाजपा और एकनाथ शिंदे की सरकार को समर्थन नहीं दिया है। भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा ओपीएस स्वीकार नहीं करने का बयान ही भाजपा और शिंदे गुट पर भारी पड़ गया है।
उनके साथ साथ इस चुनावी चक्की में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी पिस गये हैं। चुनाव परिणामों के बाद अचानक से महाविकास अघाड़ी की राजनीतिक सक्रियता बढ़ी है और सरकार बचाव की मुद्रा में है। वैसे फडणवीस और शिंदे दोनों को खतरे का एहसास होते ही दोनों ने अपने तेवर बदले हैं।
उनका कहना है कि वे ओपीएस के खिलाफ नहीं है। लेकिन यह बयान चुनाव परिणामों के बाद आया है। विवाद बढ़ने और नीचे के स्तर से सूचना मिलने के बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने पहली बार कहा है कि पेंशन के मुद्दे पर 90 प्रतिशत मतदाता उनसे नाराज हो गये थे।
लेकिन उन्होंने कहा कि इस पेंशन स्कीम को लौटाने के काम पूर्व की सरकार ने किया था। वैसे उन्होंने पराजय के अन्य कारणों की समीक्षा करने की भी बात कही है।
हाल ही संपन्न विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी उप मुख्यमत्री फडणवीस ने कहा था कि उनकी सरकारी पुरानी पेंशन स्कीम को लागू नहीं करेगी क्योंकि इससे राज्य के कोष पर एक लाख दस हजार करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा। उनका यह बयान राजनीतिक तौर पर मतदाताओं के बहुमत को नाराज कर गया है।
इस बीच शिवसेना (उद्धव गुट) के मुखपत्र सामना में यह कहा गया है कि शिंदे की अगुवाई वी सरकार को पढ़े लिखे वर्ग ने समर्थन नहीं दिया है। इसी वजह से विधान परिषद के चुनावों का ऐसा परिणाम आया है।
पांच सीटों में से सिर्फ एक सीट पर सरकारी प्रत्याशी जीता है जबकि शेष चार पर महाविकास अघाड़ी के प्रत्याशी जीते हैं। तीन शिक्षक क्षेत्र और दो स्नातक क्षेत्रों के लिए यह चुनाव हुए थे। इस चुनाव में जीतने वाला पांचवा प्रत्याशी भी कांग्रेस का बागी प्रत्याशी है। वैसे नागपुर जैसे क्षेत्र में भाजपा और शिंदे गुट की हार को गंभीरता से लिया जा रहा है।