भारत में अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। इन चुनावी चुनौतियों को समझने के बाद भी केंद्र सरकार ने इस बार के बजट में रक्षा मंत्रालय को सबसे ज्यादा बजट दिया है। रक्षा मंत्रालय को सबसे ज्यादा 5.94 लाख करोड़ रुपये का आवंटन प्राप्त हुआ है।
पिछले साल के बजट में रक्षा मंत्रालय को 5.25 लाख करोड़ का आवंटन दिया गया था। चीन के साथ जारी तनाव और पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति की वजह से इस पर ध्यान दिये जाने की जरूरत भी थी।
अपनी महत्वाकांक्षी आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत, सरकार ने रक्षा उपकरणों में उपयोग किए जाने वाले महत्वपूर्ण भागों सहित कई वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
यानी अब इनका निर्माण भारत में हो रहा है। इस साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले साल 2024 में आम चुनाव है। ऐसे में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी पूर्ण बजट पर पूरे देश की नजरें थीं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने समाज के सभी वर्गों को खुश करने की कोशिश की तो भाजपा नेताओं का उत्साह बढ़ गया।
कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के नेताओं ने निराशा जाहिर की, पर भाजपा नेता इसे अमृतकाल की मजबूत आधारशिला रखने वाला बजट बता रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने सिलसिलेवार ट्वीट में कहा कि यह सर्वसमावेशी और दूरदर्शी बजट हर वर्ग को साथ लेकर चलने वाली मोदी सरकार के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को और गति देगा।
आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि पार्टियों का पूरा फोकस गरीब आबादी पर रहता है, उनके कल्याण की बात करते हुए वोट हासिल करने की कोशिश होती है लेकिन मिडिल क्लास एक बड़ी चुनावी ताकत के रूप में उभरा है। 1.35 अरब आबादी वाले देश में एक तिहाई मिडिल क्लास समझा जाता है।
इनकम टैक्स में राहत की जो भी घोषणाएं वित्त मंत्री ने की हैं, उसका सीधा असर 2024 के चुनावों में दिख सकता है। ऐसे में शाह ने लिखा है कि मध्यम और वेतनभोगी वर्ग को टैक्स में बड़ी राहत देने के लिए मोदी जी का आभार। दरअसल मोदी सरकार का लगातार फोकस किसानों, गरीबों, आदिवासियों पर रहा है, लेकिन एक ऐसा पर्सेप्शन बन चुका था कि सरकार मिडिल क्लास को इग्नोर कर रही है, यह जानते हुए कि इसने हाल के चुनावों में भाजपा को सपोर्ट किया और जीत में उसकी प्रमुख भूमिका रही।
टैक्स रिलीफ और टैक्स स्लैब में बदलावों के ऐलान को मोदी सरकार के लगातार सपोर्ट के लिए मिडिल क्लास को तोहफा माना जा रहा है। वरना देश के मध्यम वर्ग का मतदाता क्या गुल खिला सकता है, यह बार बार दिल्ली के चुनावों में नजर आ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में एनडीए सरकार ने लगातार दसवां बजट पेश किया है। बजट से पहले सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि वह कौन सा रास्ता चुने। एक रास्ता लोकलुभावन बजट का था, जो कोविड के बाद आम लोगों के लिए कई सौगात की ओर ले जाता।
दूसरा रास्ता, आर्थिक सुस्ती और भविष्य में उठापटक की आशंका के बीच रक्षात्मक रुख के साथ संतुलन बनाने की ओर जाता था। सरकार ने दूसरा रास्ता चुना। ऐसा इसलिए भी कि भले 2024 में पूर्ण बजट नहीं होगा, लेकिन लोकलुभावन बजट का विकल्प खुला रहेगा।
साल 2019 के अंतरिम बजट में भी सरकार ने कई बड़े फैसले किए थे। इस बजट से सरकार ने पांच सियासी और आर्थिक संदेश देने की कोशिश की है। बजट में खेती और किसान पर भी जोर रहा। दरअसल बीते कई वर्षों से किसानों का मोदी सरकार के साथ रिश्ता उतार-चढ़ाव भरा रहा है।
साल 2019 से पहले जब पूरे देश में अलग-अलग किसान आंदोलन हुए, तब किसान सम्मान निधि का एलान हुआ, जिसका लाभ तब चुनाव में मिला। खेती के कर्ज का लक्ष्य बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये किया गया है। इसके बाद भी यह साफ है कि सरकार कोई बड़ा जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं है।
इसलिए भविष्य की आर्थिक अनिश्चितता का साफ असर भी बजट पर दिखा। वैश्विक मंदी की आशंका के बीच सरकार ने कोई बड़ा जोखिम लेने से परहेज किया। साथ ही, ऐसे फैसलों से भी दूरी रखी जो बाजार का सेंटिमेंट कमजोर करे। वित्तीय घाटे को काबू में रखने की मंशा दिखाई गई।
इन कदमों को आने वाले दिनों में किसी भी सूरत से निपटने की तैयारी के रूप में देखा गया। फिर भी पेंशन और किसानों का मसला सरकार को निश्चिंत होने का मौका नहीं दे रहा है, यह साफ हो गया है। गरीबों को कोरोना काल में मुफ्त अनाज दिये जाने के बाद मोदी सरकार अब मध्यम वर्ग को भी फिर से अपने पाले में रखने की कवायद में जुटी है।