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इस नये बॉयो पदार्थ का इंजेक्शन अब काम करेगा

शरीर के अंदर सूजन कम करने तथा सेल रिपेयर करने की दिशा में शोध

  • चूहों और जानवरों पर प्रयोग सफल रहा है

  • इंसानी ट्रायल में अभी कुछ वक्त और लगेगा

  • क्षतिग्रस्त इलाके में ही जाकर काम करता है

राष्ट्रीय खबर

रांचीः जेनेटिक विज्ञान की दिशा में रोबोटिक्स को साथ लेकर चलने की कवायद से नये नये खोज हो रहे हैं। इसी क्रम में एक नया जैवपदार्थ तैयार किया गया है। इसकी विशेषता यह है कि इसे इंजेक्शन के जरिए शरीर के अंदर पहुंचाया जा सकता है।

यह शरीर के अंदर जाकर सूजन कम करने के बाद संबंधित इलाके में क्षतिग्रस्त हो चुके टिश्यूओँ की मरम्मत भी कर सकता है। इसका कई तरीके से परीक्षण किया जा चुका है। चूहों और बड़े आकार के प्राणियों पर इसे आजमाया गया है।

इसमें पाया गया है कि इन जानवरों में हार्ट अटैक होने की स्थिति में भी जो हार्ट के तंतुओं को नुकसान हो चुका है, उनकी यह मरम्मत करने के साथ साथ उस खास इलाके में कोषों को विकसित होने का माहौल प्रदान करता है।

इसी आधार पर शोध दल यह उम्मीद करता है कि इसके जरिए अब दिमागी चोट या उच्च रक्तचाप से होने वाले नुकसानों को भी यह जैव पदार्थ इंजेक्शन के जरिए अंदर जाकर ठीक कर सकेगा। सैनडियागो के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में इस पर काम हुआ है।

वहां के बॉयो इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफसर और इस शोध दल के नेता कारेन क्रिस्टमैन ने इस बारे में कहा है कि यह बॉयो मैटेरियल अंदर जाकर क्षतिग्रस्त टिश्युओँ की मरम्मत और ईलाज दोनों काम करने की क्षमता रखता है। इसे रिजेनेरेटिव इंजीनियरिंग की दिशा में बिल्कुल नया माना जा रहा है।

अभी इसके और कई स्तरों पर परीक्षण किया जाना शेष है। उसके बाद एक से दो साल के भीतर इसका इंसानों पर भी क्लीनिकल ट्रायल प्रारंभ हो जाएगा। इस पूरे शोध के बारे में प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका नेचर बॉयोमेडिकल में जानकारी दी गयी है।

शोध दल इसे महत्वपूर्ण इसलिए भी मानता है क्योंकि अकेले अमेरिका में ही हर साल करीब आठ लाख हार्ट अटैक के मामले होते हैं। ऐसी स्थिति में यह विधि मरीजों के हार्ट को हुए नुकसान से बेहतरी की तरफ ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

इस बारे में वहां के कार्डियो वैस्कूलर के डाक्टर रियान आर रीव्स ने कहा कि अगर यह विधि इंसानों पर कारगर हुई तो निश्चित तौर पर हार्ट अटैक के बाद वहां जो कुछ नुकसान होता है, उसे सुधारा जा सकेगा। इससे हार्ट के दोबारा क्षतिग्रस्त होने तथा हार्ट अटैक से होने वाली मौतों को भी कम किया जा सकेगा।

इस नये जैव पदार्थ के बारे में बता गया है कि एक हाइड्रोजल को हार्ट के करीबी मांसपेशियों के तंतु से तैयार किया गया था। इसे एक कैथेटर के जरिए शरीर के भीतर पहुंचाने की कार्रवाई की गयी थी। यह जेल क्षतिग्रस्त इलाके तक पहुंचने के बाद वहां एक मचान जैसा तैयार कर अपना काम प्रारंभ कर देता है।

वह आस पास के इलाके में नये सेल के विकास में मदद करता है जबकि वहां जो कोष क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, उनकी मरम्मत करता जाता है। इस किस्म की एक विधि पहले आजमायी गयी थी। जिसमें मरीज के हार्ट में इंजेक्शन दिया जाता था।

लेकिन उसके कई खतरे थे और हार्ट अटैक आने के एक सप्ताह या उसके बाद ही इसका उपयोग हो सकता था। इसलिए इस विधि पर लगातार काम चल रहा था। इसमें हार्ट अटैक आने के तुरंत बाद ही इस जैव पदार्थ को शरीर के अंदर पहुंचाया जा सकता है।

शरीर में पहुंचने के बाद वह उसी इलाके में अपना काम चालू कर देता है, जहां इसकी आवश्यकता हो। अच्छी बात यह है कि यह पदार्थ खून के साथ ही प्रवाहित होता हुआ उस हिस्से तक जा पहुंचता है, जहां उसकी आवश्यकता होती है। कैथेटर के जरिए डालने की वजह से यह खास इलाके पर ही केंद्रित होता है और आस पास फैलता नहीं है।

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