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रूस को पश्चिमी देशों से आने वाले टैंकों की चिंता नहीं

कियेबः रूसी सेना ने कई नये इलाकों पर अपना हमला तेज कर दिया है। यह कार्रवाई तब हुई है जबकि जानकारों के मुताबिक युद्ध के मैदान के विभिन्न मोर्चों पर अब पहले से ज्यादा रूसी टैंक नजर आने लगे हैं। रूस की इस कार्रवाई को पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन को टैंक देने के एलान का असर माना जा रहा है।

रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन पहले ही इस किस्म के उन्नत हथियारों को नजरअंदाज कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि अमेरिका जिन हथियारों को यूक्रेन भेज रहा है, उन्हें रूसी सेना मुंगफली की तरह तोड़ देगी। वैसे कई इलाकों में मिसाइल और ड्रोन हमलों से स्पष्ट है कि रूसी सेना के इन हमलों का यूक्रेन की सेना पूरा मुकाबला नहीं कर पा रही है।

मॉस्को ने पहले ही अमेरिका और जर्मनी द्वारा यूक्रेन को टैंक देने के निर्णय की आलोचना की है और कहा है कि इससे युद्ध और तेज होगा और उसकी जिम्मेदारी यूक्रेन के साथ साथ हथियार देने वाले देशों की भी होगी। रूस के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा है कि आने वाले नये टैंकों का भी वही हश्र होगा जो पहले आने वाले टैंकों का हुआ था। यह बयान तब आया है जबकि पोलैंड, चेक और अन्य नाटो के सदस्य देशों  ने यूक्रेन को रूस में निर्मित मिसाइल और पुराने टैंक उपलब्ध कराये हैं।

यह सभी देश पूर्व सोवियत संघ के समर्थक देश थे। जिस कारण उन्हें सोवियत संघ ने अपने सहयोगी की रक्षा पंक्ति मजबूत करने के लिए ऐसे हथियार उपलब्ध कराये थे। रूस के पुराने जमाने के टी 72 टैंक अब नये रूसी टैंकों का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं।

इस वजह से अब जर्मनी से आने वाले लेपर्ड 2 और अमेरिका से आने वाले एम 1 अब्राम टैंक की मोर्चे पर प्रतीक्षा की जा रही है। जर्मनी ने पहले चरण में 14 तथा दूसरे चरण में 88 लेपर्ड टैंक देने की एलान काफी विलंब के बाद किया है। दूसरी तरफ अमेरिका ने अपने 31 टैंक यूक्रेन भेजने की बात कही है।

पश्चिमी रक्षा विशेषज्ञों का दावा है कि जर्मनी का एक लेपर्ड टैंक तीन से पांच रूसी टैंकों के बराबर है। इससे युद्ध की स्थिति बदल सकती है। अभी यूक्रेन बचाव वाली तकनीक पर काम कर रहा है क्योंकि रूस लगातार उसके बिजली संयंत्रों को अपना निशाना बना रहा है।

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