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यूक्रेन के अपने आधुनिक टैंक देने से कतरा रहा है जर्मनी

बर्लिन: जर्मनी अभी तक यह तय ही नहीं कर पा रहा है कि वह यूक्रेन को रूस के खिलाफ जारी युद्ध में अपने अत्याधुनिक लेपर्ड टैंक उपलब्ध कराये अथवा नहीं। पिछले एक साल से यूरोप के दूसरे देश तथा अमेरिका यूक्रेन मे अपने तरीके से सैन्य साजो सामान भेज रहे हैं।

इसके बाद भी यह स्पष्ट होता जा रहा है कि तोपखाना के मुकाबले में यूक्रेन बहुत ही कमजोर है। इसी वजह से रूसी तोपखाना काफी दूरी से यूक्रेन के इलाकों में तबाही मचा रही है। इसके बीच जर्मनी ने घोषणा के बाद भी अब तक यूक्रेन में अपने लेपर्ड टैंक नहीं भेजे हैं।

जर्मनी ने यूक्रेन को एक सौ बिलियन यूरो की सैन्य सहायता देने का एलान किया था। इसके बाद भी जर्मनी के पास मौजूद अत्याधुनिक टैंक अब तक यूक्रेन नहीं भेजे गये हैं। दूसरे देश जर्मनी पर यह आरोप भी लगा चुके हैं कि वह सैन्य सहायता का वादा करने के बाद भी असली हथियार देने में आना कानी कर रहा है।

अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने भी जर्मनी से इस बात की गुजारिश की है कि वह यूक्रेन को लेपर्ड 2 टैंक उपलब्ध कराये। या फिर उसके पास से जो टैंक दूसरे देशों को बेचे गये हैं, उन्हें यूक्रेन भेजने की अनुमति दे। दरअसल लगातार इस बात का एहसास स्पष्ट हो रहा है कि इस एक मोर्चे पर यूक्रेन की सेना कमजोर पड़ रही है।

इसका फायदा उठाते हुए रूसी सेना ने यूक्रेन के बिजली संयंत्रों को निशाना बनाना जारी रखा है। जर्मनी का यह लेपर्ड टैंक काफी आधुनिक माना जाता है। अपने अलावा जर्मनी ने मित्र देशों को भी यह टैंक उपलब्ध कराये हैं। अनुमान है कि पूरी दुनिया में दो हजार ऐसे टैंक हैं।

जर्मनी के सैन्य समझौता की वजह से दूसरे देश भी बिना जर्मनी की अनुमति के इन टैकों को यूक्रेन नहीं दे सकते हैं। जर्मनी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी दूसरे देश को इस बात की इजाजत नहीं देगा कि वह जर्मनी से मिले लेपर्ड टैंक यूक्रेन भेजे।

अब जर्मनी ने यह शर्त रखी है कि वह टैंक इसी शर्त पर देगा जब अमेरिका भी अपने टैंक वहां भेजे। इस टालमटोल की वजह से यह चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है कि क्या जर्मनी को भी अपने इन टैंकों की सफलता को लेकर संदेह है।

भारी भरकम रूसी टैंकों के मुकाबले में अगर टह टैंक पिछड़ गये तो जर्मनी के सैन्य कारखानों के व्यापार को इससे नुकसान होगा। दूसरी तरफ ऐसा टैंक देने के बाद वह रूस से भी सीधी दुश्मनी मोल लेगा। अपने निजी कारणों से जर्मनी इनमें से कोई भी खतरा उठाने की स्थिति में नहीं है।

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