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दोनों नेता बाबूलाल मरांडी के करीबी
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अर्जुन मुंडा प्रदेश की राजनीति से दूर
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रघुवर दास को अपने भविष्य की चिंता
राष्ट्रीय खबर
रांचीः भाजपा राष्ट्रकार्यकारिणी का फैसला भी झारखंड की राजनीति पर असर डालने जा रहा है। इस बैठक में जेपी नड्डा को अगले चुनाव तक पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये रखने का प्रस्ताव पारित हो चुका है। इसलिए अब स्पष्ट है कि भाजपा के अंदर की गुटबाजी अब दूसरे पैमाने पर लड़ी जाएगी।
इससे पहले रघुवर दास का खेमा यह चाहता था कि उनकी पसंद का कोई नेता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बने। अब उसकी संभावना कम हो गयी है। दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और रांची के सांसद संजय सेठ की बीच अब रस्साकसी तेज होना तय है। दरअसल दोनों ही लोग श्री नड्डा के करीबी हैं।
दीपक प्रकाश के इस पद पर होने से संजय सेठ को अगले चुनाव के टिकट की चिंता सतायेगी। वैसे भी यह सर्वविदित है कि वह रांची में अपना अलग कार्यालय खोलकर समानांतर संगठन चला रहे हैं। हाल के दिनों में उन्हें भाजपा के प्रदेश कार्यालय में नहीं देखा गया है।
दूसरी तरफ दीपक प्रकाश अपने आस पास की गुटबाजी को दूर रखने की कोशिश में चारों तरफ से घिरे हैं। गनीमत है कि कई अन्य नेताओं के साथ उनके रिश्ते ठीक रहे हैं। इसलिए झारखंड भाजपा में अगला अध्यक्ष का होना अगले लोकसभा चुनाव के कई समीकरणों को निर्धारित करेगा, इसमें अब संदेह की कोई गुंजाइश नही है।
अंदरखाने के समीकरणों की जानकारी रखने वालों का मानना है कि श्री नड्डा के होने की वजह से अब प्रदेश के अन्य कद्दावर नेताओँ की सोच का भी संभावित फेरबदल पर असर रहेगा। इसमें बाबूलाल मरांडी के साथ दोनों के रिश्ते एक जैसे रहे हैं।
दोनों के साथ साथ पूर्व सासंद रविंद्र राय को भी श्री मरांडी के किचन कैबिनेट का हिस्सा माना जाता था। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की राय की अहमियत रहेगा। यह अलग बात है कि राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी श्री मुंडा विवादों से बचने के लिए झारखंड भाजपा की राजनीति से खुद को अलग रखकर चल रहे हैं। वैसे श्री मुंडा को इस बात की जानकारी है कि उनके चुनाव में किन लोगों ने उन्हें हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था।
इस समीकरण के तीसरे कोण पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं। जो अपने समीकरणों को साधने में अभी ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। यह अलग बात है कि उनके करीबी आदित्य साहू को हाल ही में राज्यसभा का सदस्य मनोनित भी किया जा चुका है। ऐसे में एक ही गुट के लोगों को सारे पदों पर रखने की बात पार्टी के अंदर भी शायद स्वीकार्य नहीं होगी।
वैसे यह समझा जा सकता है कि दिल्ली में अध्यक्ष का कार्यकाल अगले चुनाव के बाद तक किये जाने के बाद देश भर के संगठन में फेरबदल होंगे। इसमें प्रदेश कमेटियां भी शामिल हैं। प्रदेश अध्यक्ष पद पर अगर फेरबदल होता है तो वह पार्टी को कितना चुनावी फायदा दिला पायेगा, इस पर ही अंतिम फैसला लिया जाएगा। कुल मिलाकर भाजपा की स्थिति भी कमोबेशी कांग्रेस जैसी ही हो चुकी हैं, जिसमे गुटबाजी को दूर कर सभी को एकजुट रखने का प्रयास अभी दूर की कौड़ी है।