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कोलकाताः पुरातत्व विभाग ने पांच दशक के अंतराल के बाद फिर से पूर्व वर्धवान जिला के एक स्थान पर खुदाई करने का फैसला किया है। आज से करीब पचास साल पहले वहां के भरतपुर गांव के करीब खुदाई में एक प्राचीन बौद्ध स्तूप पाया गया था। इस स्थान पर महात्मा बुद्ध की एक प्रतिमा भी मिली थी।
इस दौरान वहां से कई ऐसी चीजें मिली थी, जिनके बारे में अनुमान लगाया गया था कि वे नौंवे या दसवें दशक के हैं। वर्ष 71-72 में भारतीय पुरातत्व विभाग और स्थानीय विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयास से यह काम किया गया था। इतने दिनों तक यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। अब फिर से भारतीय पुरातत्व विभाग वहां काम प्रारंभ करने जा रहा है। विभाग के कोलकाता के प्रमुख शुभ मजुमदार ने कहा कि इस बार खनन के जरिए यह समझने की कोशिश की जाएगी कि वहां प्राचीन काल की कोई बौद्ध संस्कृति मौजूद थी अथवा नहीं।
दामोदर नदी के किनारे के इस गांव में जो बौद्ध स्तूप मिला था, वह किसी विहार का संकेत देता था। अगर इस बार की खुदाई में उसके और प्रमाण मिले तो यह पश्चिम बंगाल के इतिहास में बौद्ध धर्म की मौजूदगी का नया आयाम खोल सकता है। वहां पर पहले जो साक्ष्य मिले थे, उससे पता चला था कि स्तूप का निचला हिस्सा चार कोनो वाला यानी वर्गाकार था।
इसमें दो किस्म की प्राचीन ईंटों का इस्तेमाल किया गया था। पचास सेंटीमीटर चौड़ाई वाले वहां दो चूल्हे भी पाये गये थे। इन सारी बातों को पूर्व रिकार्ड में दर्ज किया गया था। उन्हीं तथ्यों के आधार पर नये सिरे से वहां की स्थिति की फिर से जांच करने का यह फैसला लिया गया है। उस समय दरअसल बहुत कम इलाके में खुदाई का यह काम किया गया था।
इस वजह से अधिक जानकारी नहीं मिल पायी थी। अब अन्य स्थानों पर हुए खनन कार्यों के विश्लेषण के आधार पर यह माना गया है कि इस इलाके में अभी से करीब दो हजार वर्ष पूर्व इंसानों की बस्ती थी। भारत के पांडुराजा का स्तूप, डीहर, पोखन्ना जैसे इलाकों में मिंले पुरातत्व के नमूनो से भरतपुर की पुरानी चीजें उत्कृष्ट श्रेणी की है।
इसलिए फिर से खनन कार्य प्रारंभ कर वहां किस काल का इतिहास दबा पड़ा है, इसे जानने की कोशिश की जाएगी। प्राचीन युग में लोहे के इस्तेमाल तथा उससे पहले के मिट्टी के बरतनों का भी वैज्ञानिक परीक्षण किया जाएगा । इस बारे में कोलकाता विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के प्रोफसर रजत सान्याल ने कहा कि इस इलाके के आस पास कई युगों में इंसानों की बस्ती होने के प्रमाण पहले ही मिल चुके हैं। अब आधुनिक विज्ञान की मदद से उसके सही काल निर्धारण का काम भी पूरा किया जाएगा। हो सकता है कि इससे प्राचीन इतिहास के बारे में कोई नई जानकारी सामने आये।