-
इसरो ने पहले जारी की थी रिपोर्ट
-
पहले से ही अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र
-
अन्य इलाकों में भी भूधंसान की सूचना
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः जोशीमठ का संकट क्या अनुमान से बड़ा है या सिर्फ जोशीमठ ही नहीं हिमालय के दूसरे इलाकों में भी भूधंसान चालू हो गया है, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। इस मुद्दे पर इसरो द्वारा जारी एक रिपोर्ट को वापस लिये जाने की वजह से और भी भ्रम उत्पन्न हो गया है।
दूसरी तरफ सरकार ने एनडीएमए के वैज्ञानिकों को भी सरकार की तरफ से हिदायत दी गयी है कि वे इस बारे में कोई बयान ना दें क्योंकि इससे जनता में और भ्रम फैल रहा है। कुल मिलाकर वहां खतरा कैसा है और आगे क्या होगा, इस बारे में सरकार की तरफ से औपचारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा रहा है।
वैसे जोशीमठ के अलावा भी कई इलाकों में इस किस्म से जमीन के धंसने की सूचनाएं मिलने लगी हैं। इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर इसलिए भी गंभीर माना जा रहा है क्योंकि चीन के साथ अभी तनातनी की स्थिति है और चीन ने अपने कब्जे वाले तिब्बत के इलाके में ब्रह्मपुत्र पर एक बहुत बडा डैम बनाना चालू कर दिया है।
कहीं हिमालय की गहराई में इसकी दबाव की वजह से किसी दूसरे इलाके में तबाही आ रही है अथवा नहीं इस पर विचार किया जा रहा है। दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने जनता के इस आरोप को खारिज कर दिया है कि एनटीपीसी की परियोजना में हो रहे विस्फोट और सुरंग की वजह से ऐसी स्थिति आयी है।
लेकिन जमीन धंसने की चेतावनी काफी साल पहले ही दी गयी थी। इस क्षेत्र में बांधों,सड़कों और सैन्य स्थलों के विस्तार के चलते पर्वत श्रृंखला की नाजुक पारिस्थितिकी के बीच खतरे उजागर कर रहा है। पृथ्वी के नीचे के हिस्से की परतों के खिसकने के कारण धीरे-धीरे जमीन धंस रही है।
यह क्षेत्र पहले से ही लगातार मौसम की चरम स्थितियों से जुड़ी घटनाओं और भूस्खलन की चपेट में है। साल 2013 में बड़े पैमाने पर बादल फटने से राज्य में 5000 से अधिक लोग मारे गए थे। उत्तराखंड में लगभग 155 अरब रुपये की संयुक्त अनुमानित लागत वाली चार जलविद्युत परियोजनाएं वर्तमान में निर्माणाधीन हैं।
जोशीमठ की कई बस्तियां, पुराने भूस्खलन के मलबे पर बनी हैं, पहले से ही प्राकृतिक तनाव में हैं और मानव निर्मित निर्माण क्षेत्र और तनाव बढ़ा रहे हैं। जोशीमठ क्षेत्र में भूमि धंसने की घटनाएं 1970 के दशक की शुरुआत में दर्ज की गई थीं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा जारी बयान और सेटेलाइट इमेज के अनुसार जोशीमठ कस्बे में आठ जनवरी तक 12 दिनों में अधिकतम तेजी से 5.4 सेंटीमीटर का धंसाव हुआ। बाद में यह रिपोर्ट गायब हो गयी है जिसके बारे में कहा गया है कि इसरो ने इसे वापस ले लिया है।
जोशीमठ संकट को लेकर एनडीएमए ने वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को सलाह दी है कि वह जोशीमठ को लेकर मीडिया से कोई बातचीत न करें। एनडीएमए ने कहा है कि ऐसा देखा गया है कि सरकारी संस्थान सोशल मीडिया में जोशीमठ से जुड़ा डेटा जारी कर रहे हैं। साथ ही वे वहां के हालात पर मीडिया से बातचीत कर रहे हैं। ऐसा करने से न केवल प्रभावित परिवारों बल्कि देश के नागरिकों में भ्रम पैदा हो रहा है। इसलिए सच क्या है, इस सवाल का उत्तर तलाशने की कोशिश में और भ्रम पैदा हो रहा है।