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पेड़ के पत्तों के आधार पर काम हुआ
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आम लोगों के लायक बनाने पर काम जारी
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छिद्र से पानी रिसता है और गैस एकत्रित होता है
राष्ट्रीय खबर
रांचीः पेड़ पौधों के पत्तों के आचरण पर वैज्ञानिकों ने सौर यात्रा पर जाने वाले अंतरिक्ष यानों के लिए ईंधन जुटाने का नया उपाय खोजा है। अपने परीक्षण के लिए इनलोगों ने एक यंत्र विकसित किया है। यह यंत्र हवा से पानी और हाईड्रोजन तैयार कर सकता है।
अच्छी बात यह है कि इस यंत्र के संचालन के लिए भी सौर ऊर्जा का ही उपयोग किया गया है। काफी अरसे से इसकी कल्पना तो की गयी थी लेकिन पहली बार उस सोच को सफल बनाना संभव हो पाया है। इस शोध के बारे में एडवांस्ड मैटेरियल्स नामक पत्रिका में जानकारी प्रकाशित की गयी है।
स्विटजरलैंड के इकोली पॉलिटेकनिक फेडरल डी लूसाने यानी ईपीएफएल में रसायनिक इंजीनियर केविन सिवुला और उनकी टीम ने यह काम किया है। इनलोगों ने तमाम किस्म की पेचिगदियों को दरकिनार करते हुए सामान्य किस्म का यह यंत्र बनाया है।
इसके बारे में बताया गया है कि इस यंत्र की खासियत यह है कि उसमें इलेक्ट्रॉड लगे हैं। ये इलेक्ट्रॉड छिद्रदार हैं। इसलिए वे हवा में मौजूद पानी के सर्वाधिक संपर्क में होते हैं। जब इस यंत्र को सूर्य की रोशनी के संपर्क में आने का अवसर मिलता है जो वह हवा से पानी खींचने लगता है और दूसरी तरफ हाईड्रोजन गैस भी बनाता जाता है।
इसके लिए यंत्र के ऊपर लगी कोटिंग काम करती है। इस टीम के नेता सिवुला ने कहा कि आज के दौर में समाज को इस किस्म की व्यवस्थाओँ की सख्त आवश्यकता है। हमें वैसी गैर पारंपरिक ऊर्जा की जरूरत है जो हमारे हर किस्म की जरूरतों को पूरा कर सके। चूंकि पृथ्वी पर सौर किरणों की कोई कमी नहीं है।
इसलिए हवा और सौर किरण जैसे कच्चे माल की प्रचुरता के कारण यह काम बेहतर ढंग से किया जा सकता है। उनके मुताबिक इस विधि को किफायती बनाने पर अभी काम चल रहा है ताकि यह दुनिया के हर हिस्से के लोगों के काम आ सके।
शोध दल को इसे बनाने की प्रेरणा पेड़ के पत्तों से मिली थी। इस काम को आगे बढ़ाने के लिए ईपीएफएल के इंजीनियरों ने जापान को टोयटा मोटर्स से तालमेल किया था। यह देखा गया कि जिस तरीके से सूर्य की रोशनी को पेड़ के पत्ते अपने अंदर की रासायनिक प्रक्रिया के तहत बदलते हैं और उसके लिए हवा में मौजूद कॉर्बन डॉईऑक्साइड का प्रयोग करते हैं, उसी विधि को दूसरे काम में क्यों नहीं लगाया जा सकता।
पत्तों की इस रासायनिक प्रक्रिया को हम फोटो सिंथेसिस नाम से जानते हैं, जिसके जरिए पेड़ों को ऊर्जा मिलती है। साथ ही यह समझा गया कि इसी एक विधि की वजह से सूर्य की रोशनी भी दूसरे किस्म की ऊर्जा के तौर पर उनके अंदर मौजूद होती है। इसी सोच पर टीम ने पारदर्शी इलेक्ट्रॉड विकसित किये।
उनपर हल्की परत चढ़ायी गयी ताकि यह किसी पत्ते के जैसा ही काम कर सके। उसके बाद पत्ते सूर्य की रोशनी की ऊर्जा को जिस तरीके से बदलते हैं, उसी विधि में फेरबदल कर उसे हाइड्रोजन में तब्दील करने का काम पूरा किया गया। इसके परिणामस्वरुप हवा से एक साथ पानी और हाईड्रोजन दोनों ही हासिल हुए हैं।
अपनी जरूरत का यंत्र बनाने के लिए जो पारदर्शी इलेक्ट्रॉड जरूरी थे, उसके लिए शोध दल ने खास किस्म के ग्लास वूल का इस्तेमाल किया। ऊपर की पारदर्शी परत के लिए इस दल ने फ्लूरिन आधारित टिन ऑक्साइड का इस्तेमाल कर जरूरत का काम पूरा किया।
छिद्रदार इलेक्ट्रॉड होने की वजह से जब हवा इसके अंदर से गुजरती है तो रासायनिक प्रक्रिया के तहत ही इन छोटे छोटे छिद्रों से पानी रिसता चला जाता है। दूसरी तरफ इसी रासायनिक प्रक्रिया की वजह से हाईड्रोजन गैस भी एकत्रित होती है। इस हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए किया जा सकता है, ऐसा शोध दल का दावा है। अब इसकी लागत कम कर आम इंसानों के उपयोग के लायक इसे बनाने की दिशा में काम चल रहा है।