पिछले दो महीने से आदमखोर तेंदुआ कई लोगों की जान ले चुका है
इनमे छोटे मासूम बच्चे भी शामिल हैं ..लेकिन तेंदुआ का अब तक कोई ठोस सुराग नहीं मिल पाया है ..
तेंदुआ को पकड़ने या मारने की फाइल विभाग में यहां से वहां महीनों भटकती रही..
मुआवजा तो अब भी नही मिल पाया है ..सब हवा हवाई ..।
वन विभाग के पास ट्रांक्विलाइजर गन चलाने वाला तक नही ..तेंदुए की पहचान भी वन विभाग नही कर पाया ..
इसी मोड़ पर फिल्म कालीचरण का डायलॉग याद आता है जिसे खलनायक अजीत ने मुंह चबाते हुए कहा था :
” कालीचरण से निपटने के लिए हमने दक्षिण भारत से जागीदार सिंह को बंबई बुलाया है “
इसी तर्ज पर लाचार होकर वन विभाग ने आदमखोर तेंदुए से निपटने के लिए दक्षिण भारत से शूटर नवाब शफत खान को बुलाया है ..
अब पिछले तीन दिन से नवाब साहब तेंदुए के साथ ” भागो देखो ” की आंख मिचौनी खेल रहे हैं रमकंडा और भंडरिया के जंगलों में..।
दरअसल वन विभाग के कर्मचारी अधिकारी अब सिर्फ विभाग के दफ़्तर में ही नजर आते हैं..
जंगलों का दौरा अब सिर्फ फाइलों में सिमट कर रह गया है ..
पहले बहाना नक्सलियों का था ..।
और अब कर्मचारियों का है ..।
बड़े अधिकारी तो अपने वातानुकूलित चैबर से बाहर निकले ही नहीं ..
घने जंगल सपाट चटियल
मैदान में तब्दील हो रहे हैं ..
झारखंड के लातेहार जिले के गारू..मारोमार
बालेसाढ़ .. छिपादोहर और चाईबासा के कोल्हान सारंडा.. में कुछ घने जंगल बचे हैं ..
बाकी जंगलों में सिर्फ झाड़ियां बची हैं ..। अंधाधुन कटाई हुई है ..
बेतला दलमा चतरा हजारीबाग में अब सन्नाटा नहीं है ..
खरगोश तक नही नजर आते ..खाने की जुगाड़ में हाथी भेड़िया तेंदुए गांव का रुख कर रहे हैं..अब तो शहरों में भी पहुंचने लगे हैं ..
शहर या कस्बे में अगर आपको बिना महावत का हाथी दिख जाय तो सरपट भागिए..
यह फालतू नही बल्कि जंगली हाथी होगा ..।
वन विभाग इस बात का रोना रो रहा है कि कुछ जरूरत का सिर्फ 10 प्रतिशत फॉरेस्ट गार्ड ही बचे हैं..।
एसीएफ की प्रजाति तो लुप्त प्राय है ..
लेकिन आईएफस अधिकारियों की भरमार है ..लेकिन वे कभी जंगल में नहीं देखे जाते ..
अपने बंगले से दफ्तर और दफ्तर से बंगले तक ही सिमटे रहते हैं ..।
तभी तो कई जिलों में लकड़ी माफियाओं को जिला प्रशासन पकड़ रहा है ..।
लेकिन वन विभाग की असफलता का असली वजह अधिकारी और कर्मचारियों का जंगलों से भावनात्मक ना होना है ..
पिछले महीने मैने करीब 10 दिनों तक लातेहार छिपादोहर गारू मारोमार बालेसाढ़ महुआडांड़ किरीबुरू गुआ दलमा हजारीबाग चतरा के जंगलों की सैर की ..
अचरज की बात है कि कहीं भी कोई वन विभाग का कर्मचारी तक नजर नहीं आया..
कुछ जगह विभाग के चेक पोस्ट तो थे लेकिन फॉरेस्ट गार्ड या फॉरेस्ट विहीन ..
ऐसा लगा मानों झारखंड में वन विभाग है ही नही ..
दरअसल झारखंड के वन विभाग की इस हालत के लिए या यूं कहें कि वन विभाग की गाड़ियों में घूमने वाले अधिकारियों के लिए नक्सली भी वरदान साबित हुए हैं।
नक्सली घटनाओँ की वजह से वन विभाग के अधिकारियों का वनों में जाना ही बंद हो गया है।
दूसरी तरफ लगातार हो रही जंगलों की कटाई भी नक्सली धमक की वजह से कम हुई है
क्योंकि लकड़ी तस्कर भी जंगल जाने से कतराने लगे थे।
वरना अब तक तो शायद सारा जंगल भी साफ हो चुका होगा और झारखंड में सिर्फ झाड़ियां ही बच जाती।
तभी तो एक तेंदुए की पहचान करने और पकड़ने या मारने के लिए नवाब शफत अली खान की टीम को बुलाया गया है ..यह वन विभाग की उदासीनता और अक्षमता को दर्शाता है ..
मन आहत होता है वन विभाग का यह रवैया देख कर ..।
मेरा बचपन भी इन्ही जंगलों में गुजरा है ..
मैने अपने पिता के जंगलों से भावनात्मक प्रेम को देखा है..
वे रेंज अधिकारी थे ..सारा दिन जंगलों में बीतता था उनका ..
गर्मी के दिनों में जब दूर पहाड़ों पर आग की लकीर दिखाई देती थी तो वे पूरी टीम को लेकर जंगल की आग बुझाने चले जाते थे ..सुबह लौटते थे ..
कभी दोपहर के सन्नाटे में दूर पेड़ काटने की खट खट सुनाई देती तो तत्काल जंगल का रुख करते थे ..।
ऐसा कभी नही हुआ कि किसी जंगली हाथी या अन्य जानवर ने वन विभाग के कर्मचारी पर हमला किया हो ..।
खाकी वर्दी को जंगल का हिस्सा मानते थे ..अपने में ही एक ..।
अब वन विभाग जंगल के जानवरों को जानता पहचानता है और ना जानवर वन विभाग के कर्मचारियों को ..
जब तक वन विभाग का जंगलों से दिल का रिश्ता नही जुड़ेगा तब तक जंगल कटते रहेंगे ..
हाथी तेंदुआ भेड़िया गांव कस्बों का चक्कर लगाते रहेंगे ..