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भविष्य में नागरत्ना की बातों का जिक्र होगा
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चार वनाम एक का शीर्ष अदालत का फैसला
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सरकार ने पहले सुनवाई का विरोधी भी किया था
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः नोटबंदी से संबंधित सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने अंततः खारिज कर दिया। इन तमाम याचिकाओं में केंद्र सरकार के फैसले पर जो सवाल उठाये गये थे, वे भी याचिकाओं के खारिज होते ही स्वतः समाप्त हो गये हैं। इस फैसले के जारी होने के तुरंत बाद भाजपा ने राहुल गांधी पर हमल बोलते हुए उनसे माफी मांगने की मांग की है।
दूसरी तरफ नोटबंदी का फैसला खारिज होने में यह महत्वपूर्ण बात सामने आयी है कि संविधान पीठ का यह फैसला सर्वसम्मति से नहीं था। चार जजों ने नोटबंदी के पक्ष में राय दिये हैं जबकि न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इसके खिलाफ कई गंभीर टिप्पणियां की हैं, जो अधिक चर्चा में आ गयी हैं।
स्पष्ट है कि न्यायमूर्ति नागरत्ना की टिप्पणियों से केंद्र सरकार फिर से असहज स्थिति में आ सकती हैं क्योंकि उन्होंने इस नोटबंदी को न सिर्फ गलत ठहराया है बल्कि ऐसे प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून बनाने की बात की सिफारिश की है। भाजपा द्वारा राहुल गांधी से माफी मांगने की बात के साथ साथ अब विपक्ष भी न्यायमूर्ति नागरत्ने की बातों को सामने रखते हुए सरकार से फिर संसद के भीतर या बाहर भी सही उत्तर देने की मांग कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने चार वनाम एक के बहुतम से केंद्र सरकार के 2016 के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। बहुमत से फैसला भले आया हो, पर एक जज की राय बिल्कुल अलग थी। जी हां, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने केंद्र के अधिकार के मुद्दे पर अलग मत दिया।
रिजर्व बैंक कानून की धारा 26(2) के तहत केंद्र के अधिकारों के मुद्दे पर न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की राय न्यायमूर्ति बी। आर। गवई से अलग थी। उन्होंने कहा कि संसद को नोटबंदी के मामले में कानून पर चर्चा करनी चाहिए थी, यह प्रक्रिया गजट अधिसूचना के जरिए नहीं होनी चाहिए थी। जज ने स्पष्ट कहा कि देश के लिए इतने महत्वपूर्ण मामले में संसद को अलग नहीं रखा जा सकता है।
सरकार को भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राहत मिल गई हो पर जस्टिस नागरत्ना की बात उसे चुभ सकती है। विपक्ष इसके जरिए सरकार पर सवाल खड़ा कर सकता है। पढ़िए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने क्या-क्या कहा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि आठ नवंबर 2016 को जारी अधिसूचना वैध और प्रक्रिया के तहत थी।
आरबीआई और सरकार के बीच परामर्श में कोई खामी नहीं थी। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने नोटबंदी पर कहा कि यह प्रासंगिक नहीं है कि इसके उद्देश्य हासिल हुए या नहीं। इस तरह से नोटबंदी के खिलाफ याचिकाएं खारिज कर दी गईं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुरूपता के आधार पर नोटबंदी को खारिज नहीं किया जा सकता है।
52 दिन का जो समय लिया गया, वो गैर-वाजिब नहीं था। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि केंद्र सरकार के फैसले में खामी नहीं हो सकती क्योंकि रिज़र्व बैंक और सरकार के बीच इस मुद्दे पर पहले विचार-विमर्श हुआ था। कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक नीति से जुड़े मामलों में बड़ा संयम बरतने की जरूरत है।