मध्य प्रदेश में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने भाजपा और आरएसएस को जय सियाराम कहने की नसीहत दी थी। उन्होंने जय श्री राम और जय सियाराम में फर्क भी बताया था। इसका जवाब देते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि हमें राहुल के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। वे इलेक्शन वाले हिंदू हैं। इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई है।
भाजपा ने अपनी तरफ से राहुल गांधी के इस बयान की आलोचना कर यह साबित कर दिया है कि अब लगातार पैदल चलते राहुल गांधी की बातों को मजबूरी में ही उन्हें गंभीरता से लेना पड़ रहा है। वरना इसके पहले राहुल गांधी को पप्पू बताकर भाजपा हर बात को टाल कर अपना एजेंडा चलाती थी।
यह पहला मौका है जब राहुल गांधी एजेंडा सेट कर रहे हैं और भाजपा को उसका उत्तर देना पड़ रहा है। जिन मुद्दों से भाजपा भागती थी, वे मुद्दे भी जनता के बीच से उभरकर सवाल बनकर सामने आ रहे हैं। इसका एक अर्थ यह है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से किसी और को फर्क पड़े या ना पड़े, भाजपा को फर्क पड़ रहा है।
राहुल के सियाराम वाले बयान के बाद उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि राहुल नाटक मंडली के नेता हैं। वो कोट के ऊपर जनेऊ पहनते हैं। उनको भारत की संस्कृति के बारे में कुछ नहीं पता है। बस गली-गली दौड़ रहे हैं, क्योंकि जनता ने इनको नकार दिया है।
गुजरात में जारी दूसरे चरण के मतदान के पहले वहां के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह बघेला के इस बयान को भी इसके साथ जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने भी कहा है कि राहुल गांधी को पप्पू साबित करने का भाजपा का अभियान अब फेल कर चुका है। गरीबी और रोजगार को लेकर भाजपा पर जोरदार हमला बोला है। उन्होंने कहा कि राम टाट में रहें या मंदिर में कोई फर्क नहीं पड़ता। भाजपा मंदिर के जरिए सिर्फ मार्केटिंग करती है।
फर्क इस बात से पड़ता है कि गरीब को भोजन और रोजगार मिल रहा है या नहीं? नरेंद्रो मोदी के बारे में उन्होंने कहा था, साल 1995 से 27 साल हो गए। 25 साल में पांच बार बात हुई है। इसमें भी केवल हमारी सेहत को लेकर बातचीत हुई है। उन्होंने कहा कि यहां केवल दो दल कांग्रेस और भाजपा के बीच चुनावी मुकाबला है। उन्होंने गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबले को भी पूरी तरह से नकार दिया। उनका यह बयान मायने रखता है कि नरेंद्र मोदी ने अपने आस पास एक घेरा बना लिया है। यही अब भाजपा पर भारी पड़ती जा रही है।
खुद संघ के लोग भी इसके कुपरिणामों को बहुत अच्छी तरह समझ रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों सनसनी फैला दी कि 2002 में गोधरा के मुसलमानों को यह जानने का कोई तरीका नहीं था कि साबरमती एक्सप्रेस के किस डिब्बे में सवार होकर कारसेवक लौट रहे थे। गोधरा से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास दिखाने को कुछ नहीं था। गोधरा के बाद क्या हुआ, यह इतिहास है और चुनावों से पहले यह अपने आपको दोहराता रहा है।
भाजपा ने विजय रूपाणी के सभी मंत्रियों को हटा दिया जबकि प्रधानमंत्री ने कुछ ही दिनों पहले सार्वजनिक तौर पर उनके काम की प्रशंसा की थी? उनके मुताबिक कांग्रेस को 2017 में ही सत्ता में आ जाना चाहिए था और वह आ सकती थी। लेकिन इसने कुछ गलत उम्मीदवारों का चयन कर मौका खो दिया। इस बार कांग्रेस ने बेहतर ढंग से काम किया है। उनका बयान यह भी है कि नकारात्मकता, विपक्षी नेताओं और विपक्ष-शासित राज्यों को डराने-धमकाने, केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग की राजनीति अपराजेयता का प्रभामंडल तो रच सकता है लेकिन यह बहुत दिनों तक नहीं चल सकता।
भारतीय किसान संघ और भारतीय मजदूर संघ केन्द्र की भाजपा सरकार को पहले से ही दोषी ठहरा रहे हैं। श्री बाघेला ने यह भी कहा है कि राहुल गांधी पॉलिटिशियन नहीं हैं। वह स्टेट्समैन हैं। उन्हें देश की चिंता है और वह अपने प्रति या दूसरों के प्रति बेईमान नहीं हैं। भारत जोड़ो यात्रा सामयिक और जरूरी है। आप वैमनस्य के बीज बोकर और लोगों को बांटकर देश को एक कैसे करेंगे?
लेकिन तब राहुल गांधी क्या करेंगे अगर चुने गए कांग्रेस विधायक पालाबदल कर लेते हैं? आश्चर्यजनक ढंग से, पालाबदल कराने के लिए भाजपा को उत्तरदायी नहीं ठहराया जाता बल्कि इसे कांग्रेस और राहुल गांधी की कमजोरी के तौर पर बताया जाता है। इसलिए जयश्री राम और जय सियाराम का मुद्दा हिंदी प्रदेशों के लिए असरदार साबित हो रहा है। यह सभी जानते हैं कि ग्रामीण परिवेश में आम बोल चाल की भाषा में भी जय सियाराम अथवा उनके लिए दूसरे शब्दों का शिष्टाचार संबोधन एक पुरानी परंपरा रही है, जिसे राहुल गांधी ने बस याद दिला दिया है।