चुनावसंपादकीय

गुजरात में पहले से कम मतदान का प्रतिशत का असर

आम तौर पर यह माना जाता है कि जब मतदाता मतदान केंद्रों पर कम पहुंचते हैं तो उनकी इच्छा सत्तारूढ़ दल को दोबारा मौका देने की होती है। इस बार भी अगर यह निष्कर्ष है कि पहले चरण में भाजपा बढ़त की स्थिति में है। इस सामान्य आकलन के बाद भी अगर नरेंद्र मोदी इतना लंबा और भव्य रोड शो कर रहे हैं तो उसका निहितार्थ कुछ और ही निकलकर आता है।

आंकड़े बताते हैं कि पहले चरण में कुल 60% से ज्यादा लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। पिछली बार पहले चरण में कुल 67.23% लोगों ने मतदान किया था। गुजरात में गुरुवार को 19 जिलों की 89 विधानसभा सीटों पर पहले चरण का मतदान हुआ। भाजपा, कांग्रेस, आप समेत अन्य राजनीतिक दलों के कुल 788 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है। पिछली बार पहले चरण में कुल 67.23% लोगों ने वोट डाला था। नर्मदा जिले की डेडीआपाडा सीट पर  85.42% और सबसे कम कच्छ जिले की गांधीधाम सीट पर 54.53% वोटिंग हुई थी।

इस बार सबसे ज्यादा तापी जिले की निजार सीट पर 77.87% और सबसे कम कच्छ जिले की गांधीधाम सीट पर 39.89% लोगों ने वोट डाला।  पहले चरण के लिए 25,434 मतदान केंद्र बनाए गए थे। शहरी क्षेत्रों में 9,018 और ग्रामीण क्षेत्रों में 16,416 केंद्रों पर वोटिंग हुई। पहले चरण में कुल 34,324 बैलेट यूनिट, 34,324 कंट्रोल यूनिट और 38,749 वीवीपीएटी (वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) का इस्तेमाल किया गया।

कुल 2,20,288 प्रशिक्षित अधिकारी-कर्मचारी ड्यूटी पर रहे। 27,978 पीठासीन अधिकारी और 78,985 मतदान अधिकारी ने चुनाव की ड्यूटी की। चुनाव आयोग के अनुसार, पहले चरण के तहत आने वाले क्षेत्रों में कुल 2,39,76,760 मतदाता पंजीकृत थे। तापी में 72 फीसदी मतदान सत्ता विरोधी संकेत देता है। बाकी इलाकों में मतदाताओं के मतदान प्रतिशत से यही बात निकलकर आती है कि सत्तारूढ़ दल को जनता ने दोबारा मौका देने का मौका दिया है। लेकिन इस बात लड़ाई त्रिकोणीय होने की वजह से अधिक रोचक बनी हुई है।

अगर मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी ने भाजपा के वोट काटे हैं तो परिणाम उलटे भी हो सकते हैं। कतारगाम की गिनती इस बार हॉट सीटों में हो रही है। यहां से आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने चुनाव लड़ा। पुलिस कांस्टेबल और फिर क्लर्क की नौकरी कर चुके गोपाल इटालिया पाटीदार समुदाय से आते हैं। इस सीट पर पाटीदार वोटरों की अच्छी संख्या है। यहां उनका मुकाबला भाजपा के वीनू मोरडिया से हुआ। भाजपा नेता वीनू मोरडिया का यहां अच्छा प्रभाव है। कांग्रेस की तरफ से कल्पेश वारिया ने चुनाव लड़ा है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मस्थान पोरबंदर जिले की यह सीट काफी चर्चा में रहती है। 2017 में भाजपा के बाबूभाई बोखरिया ने इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन मोढवाडिया को हराया था। इस बार फिर से दोनों नेता आमने-सामने थे। आंकड़ों पर नजर डालें तो बाबूभाई सिर्फ 1,855 वोटों से जीते थे। पाटीदारों के गढ़ वराछा रोड से भाजपा ने पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक किशोर कनाणी को चुनावी मैदान में उतारा था।

आम आदमी पार्टी ने पाटीदार आंदोलन के प्रमुख चेहरे अल्पेश कथिरिया को टिकट दिया था। अल्पेश कथीरिया सौराष्ट्र से ताल्लुक रखते हैं। बीते अक्तूबर में आम आदमी पार्टी से जुड़े अल्पेश पाटीदार आंदोलन में हार्दिक के बाद नंबर-2 थे। कांग्रेस ने यहां से प्रफुल्लभाई छगनभाई तोगड़िया पर दांव लगाया था। इस बार यहां 55.63% लोगों ने वोट डाला।  राजकोट जिले की पूर्व सीट से कांग्रेस ने इंद्रनील राजगुरू को टिकट दिया था। इंद्रनील इसी साल कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में गए थे, लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्होंने वापसी कर ली। इंद्रनील गुजरात के अमीर प्रत्याशियों की सूची में आगे हैं। आम आदमी पार्टी की तरफ से गुजरात में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए गए इसुदान गढ़वी ने खंभालिया से चुनाव लड़ा। यहां पर पिछले कई दशक से सिर्फ अहीर समाज के प्रत्याशी को जीत मिली है। भाजपा ने मूलुभाई बेरा और कांग्रेस ने विक्रम अर्जनभाई माडम को अपना प्रत्याशी बनाया था।

जामनगर उत्तर की सीट पर अभी भाजपा का ही कब्जा है। 2017 में यहां से धर्मेंद्र सिंह जाडेजा विधायक थे, लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकट काट कर स्टार क्रिकेटर रविंद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा जाडेजा को मौका दिया। कांग्रेस ने यहां से बिपेन्द्र सिंह जाडेजा और आप ने करसनभाई करमुर को टिकट दिया था। हाल ही में गुजरात के मोरबी में हुए पुल हादसे को पूरी दुनिया ने देखा। 135 लोगों की मौत हो गई। ऐसे में इस बार इस सीट सबकी निगाहें टिकी थीं। भाजपा ने यहां से अपने मौजूदा विधायक और मंत्री ब्रजेश मेरजा का टिकट काटकर पूर्व विधायक कांतिलाल अमृतिया को मैदान में उतारा जो मोरबी पुल हादसे में घायलों को बचाने के लिए नदी में कूद पड़े थे। इसलिए अभी अगले चऱण के चुनाव में हर पक्ष को और जोर लगाना पड़ेगा।

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