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चोंच से पकड़कर हवा में उछालती है
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बाद में चमड़े के जहर को धो लेती है
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केन टोड की आबादी नियंत्रण में मदद
राष्ट्रीय खबर
रांचीः ऑस्ट्रेलिया में पानी के पास रहने वाली पक्षी इबिस ने अपने भोजन को सुधारना सीख लिया है। इनमें ऐसा बदलाव देख पर्यावरण वैज्ञानिक भी हैरान हुए हैं। इन चिड़ियों को वहां बिन चिकन भी कहा जाता है। पानी के पास जंगली इलाके में रहने वाले इस पक्षियों ने पहले असतर्क इंसानों के पास से भोजन चुराया सीख लिया था। कई बार आदमी जब ध्यान नहीं दे रहा होता है तो वह अचानक से झपट्टा मारकर खाना लेकर भाग जाती थी।
अब यह नजर आया है कि वे जहरीले मेंढकों को भी अपना भोजन बनाने से पहले उन्हें अच्छी तरह धो लेते हैं। ऐसे मेढ़कों के शरीर में मौजूद जहर को साबूत खा लेने से इन पक्षियों की मौत भी हो सकती थी। इसलिए माना जाता है कि क्रमिक विकास के दौर में अपनी भोजन श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए इनलोगों ने प्रकृति से ही यह सीख लिया है।
वहां पाये जाने वाले केन प्रजाति के मेंढ़कों को जहरीला माना जाता है। इस वजह से आम तौर पर इंसान भी उनके दूरी बनाकर चलता है क्योंकि वे इंसान के किसी काम में नहीं आते और उन्हें मारने का कोई फायदा भी नहीं है। इंसानी हमलों से बचे इन मेंढ़कों की आबादी बहुत बढ़ गयी थी क्योंकि अन्य प्राणी भी जहर की वजह से उनका शिकार नहीं किया करते थे।
जीव विज्ञान के आंकड़ों के मुताबिक 1930 में जब मेढ़कों की यह प्रजाति यहां खोजी गयी थी तब से उनका कोई शिकार नहीं किया करता था। जांच में उनके शरीर में जहर होने का पता चला था। इस मेंढ़क की चमड़ी में जहर होता है और खतरा महसूस करने पर वह ऐसा जहर छोड़ता है। लिहाजा उस पर हमला करने वाले किसी भी प्राणी को हार्ट अटैक आ जाता था और उसकी मौत हो जाती थी।
अभी हाल ही में एक स्वयंसेवी संस्था चलाने वाली एमिली विनसेंट ने फोटो खींचते वक्त एक ऐसे ही इबलिस को अपनी चोंच में इस मेंढ़क को दबाये देखा। उनकी सूचना पर आगे की खोज प्रारंभ हुई। शोध दल ने जंगली इलाकों की खाक छानते हुए कई स्थानों पर इस पक्षी को इसी तरह मेंढ़क को अपना भोजन बनाते पाया। यह अपने आप में बड़ी बात थी कि एक जहरीले भोजन को यह पक्षी कैसे हजम कर रही है।
लगातार नजर रखने के बाद यह देखा गया कि यह पक्षी इस मेंढ़क को पकड़ लेने के बाद अनेकों बार हवा में उछाल देती है। उसके बाद वह उन्हें या तो पानी में धोने लगती है अथवा नमी वाले घास पर काफी देर तक रगड़ती है। तब वैज्ञानिकों ने समझा कि इस तरीके से वह मेंढ़क की चमड़ी में मौजूद जहर को साफ कर लेती है। उसके बाद उसे खा जाती है।
इस बारे में मैक्वेरे विश्वविद्यालय के प्रोफसर रिक शाइन ने कहा कि इस विधि से किसी भोजन का जहर साफ करने का कोई पूर्व रिकार्ड मौजूद नहीं था। इसलिए माना जा सकता है कि इन पक्षियों ने प्रकृति से ही यह तकनीक सीख लिया है। इसके अलावा इसी प्रजाति को देखते हुए कई अन्य प्रजातियों ने भी अपने भोजन का तरीका बदल लिया है।
उन्हें पता है कि शिकार के शरीर में जहर कहां पर है। इसलिए शरीर के उस भाग को छोड़कर वे शेष हिस्सा खा लेते हैं। लेकिन इससे पहले इबिस को इस तरीके से भोजन को साफ करते हुए इससे पहले कभी नहीं देखा गया था।
शोध दल का यह भी मानना है कि इस प्राकृतिक भोजन श्रृंखला की वजह से अब देश में इस प्रजाति के मेंढ़कों की आबादी खुद ब खुद नियंत्रित होने लगी है। यह पक्षी जिस तरीके से उनका भोजन कर रही है और इबिस की जितनी तादाद है उससे हर साल कमसे कम सत्तर हजार केन टोड की आबादी कम हो रही है।