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मलेशिया के इतिहास में पहली बार त्रिशंकु संसद की स्थिति

सिंगापुरः मलेशिया की राजनीति में जबर्दस्त उलटफेर नजर आने लगा है। इससे भारत भी अप्रभावित नहीं रह सकता क्योंकि यहां भारतवंशियों की तादाद अच्छी खासी है और इस देश के साथ भारत का व्यापारिक रिश्ता भी है। इस बार हुए चुनाव मे पहली बार किसी भी राजनीतिक गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है।

दूसरी तरफ देश मे सबसे अधिक समय पर राज करने वाले प्रधानमंत्री महातीर मोहम्मद अपने जीवन में पहली बार चुनाव हार गये हैं। वैसे समझा जाता है कि इस पराजय का कारण उनकी उम्र है। वह अभी 97 वर्षों के हैं वरना उनकी लोकप्रियता में आज भी कोई कमी नहीं आयी है।

देश के किसी भी बड़ी पार्टी को इस चुनाव में स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया है, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि यह देश भी पहली बार गठबंधन सरकार की दिशा में आगे बढ़ेगा। देश इनदिनों इस्लामी कट्टरपंथ के उदय के साथ साथ आर्थिक संकट के दौर से भी गुजर रहा है। इस वजह से इस राजनीतिक अस्थिरता से परिस्थिति और जटिल होने की आशंका है।

रविवार को घोषित हुए चुनाव परिणामों में विपक्ष के नेता रहे अनवर इब्राहिम की पार्टी के गठबंधन को 82 सीटें मिली हैं। उसके ठीक पीछे पूर्व प्रधानमंत्री मुहियादिन यासीन की पार्टी है, जिसे 73 सीटें मिली हैं। उनके समूह में इस्लामिक पार्टी भी शामिल है जो देश मे शरिया कानून लागू करने की पक्षधर है। सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री इस्लाइल साबरी याकूब की पार्टी को मात्र तीस सीटें मिली हैं।

इस चुनाव में महातीर मोहम्मद का पराजित होना अपने आप में एक इतिहास है क्योंकि वह पिछले 53 वर्षों में पहली बार चुनाव हार गये हैं। इस स्थिति में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले गठबंधन के लोग भी आपसी तालमेल से सरकार बनाने की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं। वर्ष 2015 के भ्रष्टाचार का मामला सामने आने के बाद से ही मलेशिया की राजनीति धीरे धीरे अस्थिर होती चली जा रही है। भ्रष्टाचार के उस मामले का आरोप प्रधानमंत्री नजीब रजाक पर लगा था, जिन्होंने खरबों डालर विदेश भेज दिया था। अभी वह देश के जेल में अपने 12 साल की सजा काट रहे हैं।

 

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