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छेद वाली पर्त ने कर दिखाया कमाल
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यह दोनों तरफ से समान काम करता है
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अब महक और पर्त को स्थायी बनाना शेष
राष्ट्रीय खबर
रांचीः वैज्ञानिकों ने खारा पानी के खारेपन को सोख लेने का एक तरीका ईजाद किया है। इसके जरिए एक पर्त के बीच से गुजरने वाला खारा पानी अपना नमक वहीं पर छोड़ जाता है। इससे नीचे एकत्रित होने वाले जल में कोई खारापन नहीं होता है। इस पद्धति को सफलतापूर्वक आजमा लेने के बाद वैज्ञानिक उसकी महक और इस पर्त को स्थायी बनाने पर काम कर रहे हैं। यह काम सऊदी अरब में हुआ है।
वहां के किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने इस छन्ना पत्र जैसे पर्त को तैयार किया है। इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है। जिस पर्त से खारापन को दूर किया जा सकता है, वह अत्यधिक पतला पॉलिमर आधारित है। इस पर्त के अंदर बहुत ही सुक्ष्म छेद बने हुए हैं। इन्हीं छेदों से रिसता हुआ पानी नीचे जाता है। इसके बीच ही खारा पानी में मौजूद सारा नमक इस पर्त द्वारा सोख लिया जाता है। इस शोध दल के नेता यू हान ने कहा कि इस सफलता को व्यापारिक इस्तेमाल के लायक बनाने में अभी कई और काम करने हैं।
शोधदल यह मानता है कि कार्बन के अत्यधिक सुक्ष्म पदार्थ इसमें बेहतर काम में आ सकते हैं। इनमें कार्बन के नैनोट्यूब और ग्रेफाइन शामिल हैं। इन्हें भी इस्तेमाल के लायक इसलिए माना गया है क्योंकि वे अत्यधिक कम छेद वाले पदार्थ है। इनके बीच का छेद एक नैनोमीटर से भी कम का होता है।
परीक्षण में जो पर्त सफल हुआ है, उसके स्थायित्व को कायम रखना इस शोध दल की चुनौती है। ऐसा होने के बाद उसका व्यापक पैमाने में प्रयोग कर पाना संभव हो जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो अनेक इलाकों में समुद्र के खारा पानी का भी बेहतर इस्तेमाल होने लगेगा। इसके लिए शोध दल ने एक दो आयामों वाले छिद्रदार कार्बन पर्त को आजमाया है। यह अपने ऊपर आने तरल को चारों तरफ समान रूप से फैला देता है। इसके बाद असली जल रिसते हुए नीचे चला जाता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर इसे तीन आयामी यानी थ्री डी का बनाया जा सका तो इसके काम करने की गति में और तेजी आ जाएगी।
इसे कैसे तैयार किया गया था, उसके बारे में भी जटिल वैज्ञानिक जानकारी दी गयी है। परीक्षण में यह पाया गया कि यह परत दोनों तरफ से एक ही जैसा काम करने में सक्षम है। माइक्रोस्कोप से देखते हुए यह पाया गया कि ऐसा खारा पानी जब इस पर्त पर पड़ा तो उसके अंदर पहुंचने के बाद अपना रासायनिक ढांचा बदलने लगा। इसलिए उसमें मौजूद नमक इस पर्त में चिपकता गया और साफ पानी नीचे की तरफ रिसता चला गया।
प्रयोगशाला में तैयार इस परत को और अधिक स्थायित्व देने पर भी काम चल रहा है। इसके स्थायी होने के बाद ही उसका बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा। फिलहाल शोध दल इस साफ हुए जल मं मौजूद महक को भी दूर करने की विधि विकसित करने पर काम कर रहा है। इन तमाम कार्यों के पूरा होने के बाद इस विधि का व्यापक स्तर पर व्यापारिक प्रयोग हो सकेगा। खास तौर पर रेगिस्तानी समुद्री इलाकों में यह विधि जीवन के लिए अत्यंत कारगर सिद्ध होगी। इसके अलावा इसी विधि से स्थायी तौर पर जलशोधन संयंत्र स्थापित कर ऐसे इलाकों में सिंचाई का काम भी बेहतर तरीके से किया जा सकेगा।