दो राज्यों में रसोई गैस का सिलंडर सस्ता करने के एलान का देश भर में उल्टा असर हुआ है। दूसरे राज्यों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या केंद्र सरकार सिर्फ अपने फायदे के लिए ही ऐसे फैसले लेती है और देश की आम जनता से उसका अब कोई सरोकार नहीं रहा। इस वजह से उपजी नाराजगी को दूर करने की पहल होने जा रहा है।
दऱअसल भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने अपनी जनसभाओं में जो मुद्दे उठाये हैं, वे अब भाजपा के लिए चुनौती बन गये हैं। चौक चौराहों पर पहली बार खुलकर इन मुद्दों पर बात होने लगी है। साथ ही यह पहला अवसर है जबकि भाजपा को दूसरों द्वारा उठाये गये सवालों का उत्तर देना पड़ रहा है। इन परेशानियों के बीच पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल और शराब को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए तैयार है।
लेकिन इस एलान से आम जनता को राहत मिलेगी या नहीं, यह बड़ा सवाल है क्योंकि दरअसल, केंद्र सरकार अगर तैयार है तो क्या राज्य इसके लिए तैयार नहीं होंगे क्योंकि इस फैसले से उनको बड़ा राजस्व यानी रेवन्यू लॉस होगा। गैर भाजपा शासित राज्यों में पहले से कई बार जीएसटी एवं केंद्रीय सहायता के मद में मोदी सरकार पर मनमानी करने का आरोप लगाया है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव कई मौकों पर यह कह चुके हैं कि जीएसटी के मद में केंद्र के पास बहुत सारा पैसा बकाया है। हेमंत के मुताबिक कोयले की रॉयल्टी के मद में भी झारखंड को केंद्र सरकार से हजारों करोड़ रुपये पाने हैं।
इसलिए मंत्री के एलान भर से जनता की चिंता दूर होने की उम्मीद कम है। पुरी ने कहा कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए राज्यों की सहमति जरूरी है। अगर राज्य इस दिशा में पहल करते हैं तो केंद्र भी इसके लिए तैयार है। पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग लंबे समय से उठ रही है। इसके बावजूद राज्य और केंद्र सरकार के बीच इस बात पर सहमति नहीं बन रही है।
पेट्रोलियम मंत्री ने इस बात की आशंका जताई कि ईंधन को जीएसटी के दायरे में लोन के लिए राज्यों के बीच इस पर सहमति बनने की संभावना कम है। जीएसी परिषद की बैठक दिसंबर महीने में होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि राज्यों के राजस्व का प्रमुख स्रोत शराब एवं पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाला टैक्स ही होता है। राज्य राजस्व के मुख्य स्रोत को त्रपाने वाला आखिर उसे क्यों छोड़ना चाहेगा? सिर्फ केंद्र सरकार ही महंगाई और अन्य बातों को लेकर फिक्रमंद रहती है।
उन्होंने केरल उच्च न्यायालय के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि इस मामले को जीएसटी परिषद में उठाने का सुझाव दिया गया था लेकिन राज्यों के वित्त मंत्री इस पर तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि जहां तक जीएसटी का सवाल है तो हमारी या आपकी इच्छाएं अपनी जगह हैं, हम एक सहकारी संघीय व्यवस्था का हिस्सा हैं। एक देश और एक टैक्स के सपने को पूरा करने के लिए जीएसटी लागू किया गया था। इसके बावजूद पेट्रोल और डीजल पर प्रत्येक राज्य अपने-अपने तरीके से टैक्स वसूलते हैं। इसके चलते एक राज्य से दूसरे राज्य में ईंधन की दर अलग-अलग है।
अब सवाल उठता है कि आखिर अभी तक पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में क्यों नहीं शामिल किया गया तो आपको बता दूं कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में नहीं लाने के पीछे राज्यों को होने वाला राजस्व में घाटा अहम कारण है। राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजल और शराब पर टैक्स लगाकर बंपर कमाई करती है। इसके चलते कोई राज्य पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाना नहीं चाहते हैं।
देश में कोरोना के लॉकडाउन से पहले ही नोटबंदी और जीएसटी लागू होने की वजह से आर्थिक गतिविधियां बहुत धीमी हो गयी थी। अब धीरे धीरे उसके पटरी पर लौटने के आसार नजर आ रहे हैं। यह अलग बात है कि इसके बीच सरकार लगातार आर्थिक मोर्चे पर सफलता के दावे कर रही है। लेकिन इस बात को याद रखना होगा कि विदेश में भारत की वित्त मंत्री ने यह बयान दिया है कि भारतीय रुपया नहीं गिर रहा है बल्कि डॉलर ऊपर जा रहा है। उनका यह बयान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजाक का मुद्दा बनकर रह गया है।
अब हरदीप पुरी के एलान के बाद भी ईंधन के दाम घटेंगे, इसकी कम उम्मी है। वैसे यह समझा जा सकता है कि रसोई गैस के साथ साथ पेट्रोल और डीजल की कीमतों से जनता को हो रही परेशानियों का असर केंद्र सरकार पर पड़ता दिख रहा है। हिमाचल और गुजरात के चुनाव में भी इन पर लगातार चर्चा होती आयी है। इसलिए लोकसभा चुनाव के पहले जनता का हितरक्षक बनने की कोशिश में केंद्रीय मंत्री का ऐसा बयान आया है।