लंदनः रूसी सेना खेरसान से पीछे हट गयी है। औपचारिक तौर पऱ इसे रूसी सेना के पराजय के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल यूक्रेन के इस इलाके को भी रूस ने अपना इलाका घोषित कर रखा है। पहले ही एक कांटे की टक्कर के बाद रूसी सेना ने इस पर कब्जा कर लिया था। अब रूसी सेना से लौट जाते ही वहां उल्लास का माहौल है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी इसे जीत बताया है।
दूसरी तरफ रूसी मामलों के विशेषज्ञ यह चेतावनी दे रहे हैं कि रूसी सेना के इस कदम को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है। हो सकता है कि रूसी सेना किसी दूसरी रणनीति का इस्तेमाल करने की तैयारी करने में जुटी है। सामान्य तौर पर रूसी सेना को हुए अधिक नुकसान की वजह से सेना वापसी का यह फैसला सीधे मॉस्को से आया हुआ बताया जाता है।
लेकिन हाल के कुछ दिनों में रूसी विमान, मिसाइल और ड्रोन हमलों ने यह साफ कर दिया है कि रूसी सेना ने अब भी यूक्रेन पर पूरी ताकत के साथ आक्रमण ही नहीं किया है। खेरसान पर रूसी सेना ने गत फरवरी माह में ही कब्जा कर लिया था। यूक्रेन के पास अत्याधुनिक हथियारों की खेप पहुंचने के बाद रूसी सेना को कड़ी टक्कर मिलने लगी थी। इसके पहले खारकिव के इलाके से भी रूसी सेना को पीछे हटना पड़ा था।
लेकिन रूसी मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि इस युद्ध में पराजय का दूसरा अर्थ रूस में ब्लादिमीर पुतिन के शासन का अंत भी है। इसलिए रूसी सेना को अभी हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। हवाई युद्ध में यूक्रेन पर भारी पड़ने की वजह से रूसी वायुसेना कभी भी यूक्रेन को परेशान करने की स्थिति में है। दूसरी तरफ पहले ही झटके में यूक्रेन के अनेक इलाकों की बिजली गुल करने में सफल रूस कड़ाके की ठंड में भी यह ऱणनीति आजमा सकती है।
इससे पहले दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भी रूसी सेना ने जर्मनी की नाजी सेना को इसी हालत में बुरी तरह परास्त कर दिया था। उस वक्त भी नाजी सेना जीत समझकर आगे बढ़ रही थी और रूस ने मौका देखकर उन्हें तहस नहस कर दिया था। इसलिए रूसी मामलों के जानकार यूक्रेन को भी यह सलाह दे रहे हैं कि इस एक कदम से इसे रूस के पराजय के तौर पर देखना उसकी बहुत बड़ी भूल होगी।