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अमेरिकी सांसदों के दल ने हालात पर चिंता जतायी

बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा का तांडव

वाशिंगटनः बांग्लादेश में चल रही राजनीतिक अस्थिरता के बीच एक हिंदू नागरिक की बर्बर तरीके से पीट-पीटकर हत्या (लिंचिंग) किए जाने की घटना ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को झकझोर कर रख दिया है। यह त्रासदी उस समय सामने आई है जब बांग्लादेश अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को पटरी पर लाने का संघर्ष कर रहा है।

चश्मदीदों और स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, भीड़ ने बिना किसी ठोस कारण के केवल धार्मिक पहचान को आधार बनाकर पीड़ित को निशाना बनाया। इस घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित होने के बाद न केवल बांग्लादेश के भीतर बल्कि दुनिया भर में रह रहे बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार समर्थकों के बीच गहरे डर और असुरक्षा का माहौल पैदा हो गया है।

इस जघन्य अपराध की गूंज अब अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के गलियारों में भी सुनाई दे रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका में सांसदों के एक प्रभावशाली समूह ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासनको पत्र लिखकर मांग की है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कड़ा दबाव बनाया जाए।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी एक बयान जारी कर कहा है कि किसी भी लोकतांत्रिक समाज में भीड़ द्वारा न्याय को स्वीकार नहीं किया जा सकता और अपराधियों को कानून के कटघरे में लाना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इस घटना की स्वतंत्र जांच की मांग की है।

पड़ोसी देश भारत में भी इस घटना को लेकर तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिली है। नई दिल्ली ने आधिकारिक तौर पर बांग्लादेशी उच्चायुक्त को तलब कर अपनी गहरी चिंता और नाराजगी व्यक्त की है। भारत सरकार का तर्क है कि सीमा पार होने वाली सांप्रदायिक हिंसा का सीधा असर क्षेत्रीय स्थिरता पर पड़ता है। भारत ने मांग की है कि ढाका प्रशासन न केवल दोषियों को सजा दे, बल्कि हिंदू, बौद्ध और ईसाई समुदायों के प्रार्थना स्थलों और उनके जीवन की सुरक्षा के लिए ठोस उपाय करे।

बांग्लादेश की वर्तमान अंतरिम सरकार ने हालांकि शांति की अपील की है और अपराधियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई का भरोसा दिलाया है, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति अब भी तनावपूर्ण बनी हुई है। विश्लेषकों का मानना है कि यदि सरकार ने तुरंत कानून-व्यवस्था पर नियंत्रण नहीं पाया, तो यह हिंसा एक बड़े मानवीय और शरणार्थी संकट का रूप ले सकती है। यह घटनाक्रम न केवल बांग्लादेश की छवि को वैश्विक मंच पर प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह भी सवाल उठा रहा है कि क्या देश में लोकतांत्रिक मूल्यों की वापसी के दावों के बीच अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह बची है।