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देश में संसद से ऊपर कोई भी नहीः जगदीप धनखड़

निशिकांत के बाद उपराष्ट्रपति ने अब भाजपा का मोर्चा संभाला

  • दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में बोले

  • इशारा सीधे सीधे सुप्रीम कोर्ट की तरफ ही

  • जनता अपने लिए जनप्रतिनिधि चुनती है

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे की बयानबाजी के बाद पार्टी ने भले ही इससे किनारा कर लिया हो पर असली खेल अब भी जारी है। पहले की तरह इस बार भी इसकी जिम्मेदारी अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उठायी है। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संवैधानिक पदों को अलंकरण बताने की धारणा को गलत करार देते हुए मंगलवार को कहा कि संविधान में संसद से ऊपर किसी संस्थान की परिकल्पना नहीं है।

श्री धनखड़ ने यहां दिल्ली विश्वविद्यालय में भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम कर्तव्यम को संबोधित करते हुए कहा कि किसी भी लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नागरिक सर्वोच्च है क्योंकि राष्ट्र और लोकतंत्र नागरिकों से ही निर्मित होते हैं। उनमें से प्रत्येक की एक भूमिका है।

लोकतंत्र की आत्मा प्रत्येक नागरिक में निवास करती है और स्पंदित होती है। नागरिकों के सतर्क होने से लोकतंत्र विकसित होगा और इसके मूल्यों का संवर्धन होगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के विकसित होने के लिए नागरिक योगदान देता है और इसका कोई विकल्प नहीं है। उपराष्ट्रपति दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं।

उप राष्ट्रपति ने कहा कि कुछ लोगों ने हाल ही में संवैधानिक पद औपचारिक या अलंकरण बताया है। यह एक गलत समझ है। उन्होंने कहा, संविधान में संसद से ऊपर किसी प्राधिकार की परिकल्पना नहीं है। संसद सर्वोच्च है और यही स्थिति है। हम भारत के लोग का हिस्सा लोकतंत्र में एक अणु हैं और उस अणु में परमाणु शक्ति है।

वह परमाणु शक्ति चुनावों के दौरान प्रतिबिंबित होती है और इसीलिए हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं। श्री धनखड़ ने कहा कि संविधान का सार,मूल्य और अमृत संविधान की प्रस्तावना में समाहित है। सर्वोच्च शक्ति हम, भारत के लोग, के पास है। कोई भी भारत के लोगों से ऊपर नहीं है। भारत के लोग, संविधान के तहत, अपनी आकांक्षाओं, अपनी इच्छाओं और अपनी इच्छा को अपने जनप्रतिनिधियों के माध्यम से दर्शाने के लिए ही उनका चयन करते हैं।

वे प्रतिनिधियों को चुनावों के माध्यम से जवाबदेह बनाते हैं। उन्होंने कहा कि एक प्रधानमंत्री जिन्होंने आपातकाल’ लगाया था, उन्हें वर्ष 1977 में जवाबदेह ठहराया गया था। इसलिए इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान लोगों के लिए है और इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी निर्वाचित प्रतिनिधियों की है।

संविधान के लिए वहीं अंतिम स्वामी हैं। श्री धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र केवल सरकार के लिए शासन करने के लिए नहीं है। यह सहभागी लोकतंत्र है। लोकतंत्र सरकारों का नहीं बल्कि व्यक्तियों को होता है। व्यक्तियों पर प्रतीकों को बनाए रखने, विरासत को संरक्षित करने, संप्रभुता की रक्षा करने और भाईचारे को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी है। सरकार की एक भूमिका है कि यह व्यक्ति अक्षम नहीं होना चाहिए। सरकार की सकारात्मक नीतियां होनी चाहिए।

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