यह सामान्य इंसानी आचरण है कि जब कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति किसी तरफ देखता है तो सभी की नजरें उसी तरफ चली जाती है। भारतीय राजनीति में अभी यही दौर चल रहा है पर धीरे धीरे रोटी का सवाल इतना महत्वपूर्ण बनता जा रहा है कि देखने वाले किस तरफ देख रहे हैं से ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों देख रहे हैं।
कोई एक मुद्दा नहीं है बल्कि सभी मुद्दों में बार बार यह भटकाव देखने को मिल जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून की हवा क्या निकाल दी, मैदान में जगदीप धनखड़ आ गये और अदालतों को फिर से यह नसीहत देने लगे कि देश में कानून बनाने का सर्वोच्च अधिकार तो देश की संसद का है। अपने कपिल सिब्बल भी पीछे कैसे रह जाते।
उन्होंने धनखड़ के दोहरे मानदंड की चर्चा कर दी और कहा जब अदालत ने स्वर्गीय इंदिरा गांधी पर फैसला दिया तो यह आपको स्वीकार्य था और अब वक्फ कानून पर रोक लगी तो आप दूसरी लाइन पर चलने लगे। यह दोहरी मानसिकता आखिर क्या है।
दोनों के बीच बहस का अगला दौर आने ही वाला था कि सीजेआई बनने जा रहे जस्टिस गवई ने संविधान का उल्लेख कर साफ कर दिया कि डॉ अंबेडकर ने इसमें ऐसे प्रावधान किये हैं कि पूर्ण बहुमत के बाद भी सत्ता पक्ष को संविधान के दुरुपयोग की छूट नहीं मिल सकती है। लिहाजा सभी की नजर इस बात पर है कि आगे क्या होता है।
भाजपा में नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ साथ कुछ और फेरबदल की चर्चा हो रही है। सभी की नजर इस बात पर है पर असली बात यह है कि इस बार संघ यानी आरएसएस का तेवर कैसा होगा। संकेत इस बात के मिल रहे हैं कि संघ अब मोदी और अमित शाह की जोड़ी को पूरी छूट देने के मूड में नहीं है। ऐसे में खास तौर पर सरकार से तालमेल बैठाकर चलने वाले संघ के लोगों को संगठन में वापस ले लिया जाएगा।
इससे पहले राम माधव पर अधिक चर्चा होने के बाद संघ ने ऐसा ही फैसला लिया था। लिहाजा संघ की तरफ से कौन लोग वापस हो जाएंगे, इस पर लोगों की नजर है। यह जगजाहिर है कि मोदी और शाह की जोड़ी यह कतई नहीं चाहती कि संजय जोशी फिर से मुख्य धारा में वापस आयें लेकिन इस सोच को आगे कायम रखा जाएगा अथवा नहीं, यह संघ के हाथों में है।
इसी बात पर फिल्म सबक का यह गीत याद आ रहा है। इस गीत को लिखा था सावन कुमार टाक ने और इसे संगीत में ढाला था उषा खन्ना ने। सुमन कल्याणपुर ने इसे अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
वह जिधर देख रहे है
सब उधर देख रही है
वह जिधर देख रहे है
सब उधर देख रही है
हम तो बस देखने वालो की
नजर देख रहे है
वह जिधर देख रहे है
सब उधर देख रही है
किसी के आने से रौनक है
आज महफ़िल में
किसी के आने से रौनक है
आज महफ़िल में
हम तो बस शाम से खुशियों की
सहर देख रहे है
हम तो बस देखने वालो की
नजर देख रहे है
वह जिधर देख रहे है
सब उधर देख रही है
बहुत ख़राब है
गैरो से बाते करते है
बहुत ख़राब है
गैरो से बाते करते है
हांजी सुनिये हम इधर क्या
उधर देख रहे है
हम तो बस देखने वालो की
नजर देख रहे है
वह जिधर देख रहे है
सब उधर देख रही है।
अब मुर्शिदाबाद में दंगा होने के बाद भाजपा वाले ममता बनर्जी को पानी पीकर कोसने में जुटे हैं। लेकिन इसके बीच ही एक सवाल महत्वपूर्ण बन गया है कि दंगा में शामिल होने वाले अनेक लोग हिंदीभाषी क्यों हैं और दरअसल वे कहां से आये थे। मजेदार बात यह है कि सरकारी एजेंडा पर जिन मुद्दों पर पर्दा डाला जाता है यानी टीवी चैनलों पर जो सूचनाएं स्थान नहीं पाती हैं, उनपर सोशल मीडिया में अधिक बहस होने लगती है और उनके दर्शकों की संख्या भी टीवी चैनलों से अधिक होती जा रही है। लिहाजा अब सोशल मीडिया पर नियंत्रण के नये उपाय किये जा रहे हैं।
खैर झारखंड लौट आते हैं तो भाजपा को हेमंत सोरेन के विदेश दौरे से परेशानी है। इस बारे में कई तरह के बयान जारी किये गये हैं। फिर भी किसी भाजपा वाले ने यह याद नहीं किया कि इस छोटे से लेकिन खनिज संपदा के तौर पर महत्वपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्रियों के विदेश दौरे की नींव किसने रखी थी। भाजपा के कई मुख्यमंत्री भी विदेश दौरे पर गये थे लेकिन उनके दौरे से झारखंड को क्या हासिल हुआ, इस पर कोई कुछ नहीं बोलता।