यह विवाद पहले से ही चला आ रहा था जब सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले पर देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सार्वजनिक तौर पर अपनी असहमति व्यक्त किया करते थे।
पहले भी कई बार उन्होंने यह साफ साफ कहा है कि दरअसल कानून बनाने का असली अधिकार देश की संसद के पास है पर ऐसा कहते वक्त वह इस बात को कहना छोड़ देते हैं कि इन तमाम कानूनों की समीक्षा करने का अधिकार भी अदालत के पास होता है। अब फिर से जगदीप धनखड़ वक्फ कानून और न्यायमूर्ति वर्मा के घर बरामद नोटों के मामले में मोर्चा पर आये है।
भारत के विपक्षी दलों ने गुरुवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान हुए न्यायिक हस्तक्षेप का स्वागत किया है, कांग्रेस ने इसे संविधान की जीत बताया है। विपक्ष के मूड का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कई अंतरिम राहतें दी हैं।
कोर्ट ने केंद्र को वक्फ (संशोधन) अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है, क्योंकि उसे आश्वासन दिया गया है कि अदालत द्वारा घोषित वक्फ संपत्ति, चाहे वह वक्फ बाय यूजर हो या वक्फ बाय डीड, अगली सुनवाई तक गैर-अधिसूचित नहीं की जाएगी। सेंट्रल वक्फ काउंसिल और स्टेट बोर्ड में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी।
सरकार कानूनी कार्यवाही के दौरान जिला कलेक्टरों द्वारा जांच की जा रही विवादित संपत्तियों को वापस नहीं ले पाएगी। बुधवार को सुनवाई के दौरान भी यह बात स्पष्ट हो गई थी कि संशोधित कानून के कुछ प्रावधानों, मुख्य रूप से केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना, वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करना और जिला कलेक्टर को ऐसी संपत्तियों की वैधता की पहचान करने के लिए दी गई अनियंत्रित शक्तियों के बारे में न्यायालय संशय में था।
उस दिन न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन ने सॉलिसिटर जनरल से वक्फ परिषद और बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने के औचित्य को स्पष्ट करने के लिए कहा था, जबकि उन्होंने यह भी कहा था कि हिंदू धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम अपने बोर्डों में गैर-हिंदुओं के लिए जगह नहीं देते हैं।
गुरुवार की कार्यवाही से सरकार को वास्तव में कोई राहत नहीं मिली; इसलिए दो दिनों की सुनवाई के संबंध में निरंतरता का भाव था। कानूनी कार्यवाही जारी रहेगी और अगली सुनवाई के लिए नई तारीख तय की गई है।
लेकिन गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम निर्देशों का तत्काल लाभकारी प्रभाव हो सकता है।
वे घेरेबंदी की भावना से जूझ रहे निर्वाचन क्षेत्रों में शांति की भावना प्रदान करेंगे और उन्हें जल्दबाजी में कोई कदम उठाने से रोकेंगे।
संयोग से बंगाल के मुर्शिदाबाद में विवादास्पद वक्फ अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बाद दंगे हुए थे।
न्यायालय की टिप्पणियों के तत्काल राजनीतिक परिणाम अपेक्षित रूप से सामने आए हैं।
विपक्ष आक्रामक है: वह संशोधित कानून में कमियों के कारण न्यायालय के तर्क को जिम्मेदार ठहराना चाहता है। केंद्र बचाव की मुद्रा में है।
यह देखना बाकी है कि आने वाले दिनों में दोनों पक्षों के रुख में कोई बदलाव आता है या नहीं। दूसरी तरफ उपराष्ट्रपति धनखड़ ने फिर से इस पर आपत्ति जतायी है पर उन्होंने चालाकी यह की है कि इसके साथ दिल्ली में हाईकोर्ट जज के घर पर नोटों के जलने का मामला जोड़ दिया है।
अब उपराष्ट्रपति को ऐसे अवसर पर सुकरात के जहर पीने की घटना को याद दिलाना जरूरी है। महान दार्शनिक सुकरात को भी जहर देने का फैसला बहुमत के आधार पर लिया गया था।
सुकरात ने इसे स्वीकार करते हुए जहर का वह प्याला पी लिया, जिसके बाद उन्होंने अपने लोगों के बीच अपने ही शरीर में होने वाले जहर के प्रभाव को भी अंतिम समय तक व्यक्त किया।
लेकिन घटना के काफी वर्षों बाद सुकरात की बातें ही सच साबित हुई। लिहाजा उपराष्ट्रपति धनखड़ को भी यह बात याद रखना चाहिए कि हर बार बहुमत का फैसला ही सही और न्यायसंगत नहीं होता, जिसकी पुष्टि भविष्य के गर्भ में छिपी होती है।
संसद में बहुमत होने का अर्थ यह नहीं है कि किसी भी असंगत फैसले को सही ठहराया जाए। दरअसल इसमें खुद धनखड़ की भी बहुत अधिक गलती शायद नहीं है।
वह जिस विचारधारा से आगे बढ़े हैं, उसके तहत एक स्तर पर जाने के बाद लोगों की तर्कशक्ति भी दिमाग से ओझल हो जाती है और वह सिर्फ उस विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम करता है, जिसका प्रशिक्षण उसे मिला होता है।
इसलिए वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भी अगर उन्हें नाराजगी है तो उन्हें यह याद रखना चाहिए कि संसद का बहुमत हमेशा सही फैसला नहीं ले सकता और उसकी समीक्षा का अधिकार अदालत को हमारे संविधान में वर्णित है।