दोस्त के लिए अहमदाबाद में बड़ा आयोजन किया। उसके साथ साथ अमेरिका तक में चुनाव प्रचार की जनसभा कर आये। उसके बाद भी दोस्त ने बता ही दिया कि वह दरअसल अमेरिकी है। जी हां यहां डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की दोस्ती का जिक्र हो रहा है। सारी दोस्ती को ताक पर रखकर अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने एलान के मुताबिक नया टैरिफ लागू कर दिया।
वैसे देखने वाली बात यह है कि उनके घुर विरोधी देश यानी रूस और उत्तर कोरिया जैसे देश इस सूची से बाहर हैं और इस नये फैसले के एलान से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को जोरदार झटका लगा है। भारत में भी शेयर बाजार का हाल यह दिखाता है कि मोदी जी के दोस्त के एक फैसले ने देश की अर्थव्यवस्था पर दरअसल क्या असर डाला है।
अरे भाई यह तो पहले ही समझ लेना था कि आपका दोस्त एक पक्का अमेरिकी नागरिक है। वहां की कुर्सी पर जो भी बैठेगा, उसे अमेरिकी कंपनियों का हित साधना पड़ेगा और अमेरिकी कमाई का असली जरिए तो हथियारों के निर्यात है। अब पूरी दुनिया में अगर युद्ध ही बंद हो जाए, आतंकवाद खत्म हो जाए तो इन अमेरिकी हथियारों का लोग अचार डालेंगे क्या।
दुनिया का सबसे विकसित देश इस कारोबार के बंद होने पर सड़क पर आ जाएगा। अभी वहां भी अमेरिकी नागरिकों को उनका खोया हुआ गौरव वापस दिलाने का नारा दिया गया है। ठीक ऐसा ही नारा हमें भी हर खाते में पंद्रह पंद्रह लाख का दिया गया था। यह बताया गया था कि पेट्रोल और डीजल सस्ता हो जाएगा। कुछ लोग तो भारतीय रुपया के डॉलर से भी मजबूत होने की दावेदारी कर रहे थे।
खैर छोड़िये विदेश भ्रमण के लिए अलग से नेताजी हैं वह बिजी है। देश में लौटते हैं तो नजर आ रहा है वक्फ विधेयक पर नीतीश कुमार और चंद्राबाबू नायडू के तेवर उल्टे पड़ गये। लोगों को यह देखकर हैरानी शायद कम होगी क्योंकि पहले ही लोगों ने नीतीश कुमार का नाम बदलकर पलटू राम कर दिया है।
लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह राजनीतिक समझ है अथवा सृजन घोटाले की सीबीआई जांच की आंच का असर है जो बार बार नीतीश कुमार को अपनी स्थापित लीक से अलग हटकर चलने को मजबूर कर रहा है। दरअसल इस सृजन घोटाला में चर्चा में आये कई अफसर खुद नीतीश कुमार के बेहद करीबी हैं
और हाल के दिनों में अपने सुशासन बाबू की कुछ हरकतें वाकई उनके दिमागी हालत पर सवाल खड़े करने लगी है। लेकिन जिस तरीके से मुस्लिम नेता उनका साथ छोड़ रहे हैं, उससे नये सवाल खड़े हो रहे हैं। इसी तरह चंद्राबाबू नायडू और जयंत चौधरी को भी अपने अपने इलाकों में कठिन सवालों का सामना करना पड़ेगा।
इसी बात पर फिल्म संगम का यह गीत याद आ रहा है। इस गीत को लिखा था शैलेंद्र ने और संगीत में ढाला था शंकर जयकिशन ने। इसे मुकेश कुमार ने अपना स्वर दिया था।
दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा, ऐतबार ना रहा
अमानतें मैं प्यार की, गया था जिसको सौंप कर
वो मेरे दोस्त तुम ही थे, तुम्हीं तो थे
जो ज़िंदगी की राह मे , बने थे मेरे हमसफ़र
वो मेरे दोस्त तुम ही थे, तुम्हीं तो थे
सारे भेद खुल गए, राज़दार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा, ऐतबार ना रहा, ऐतबार ना रहा
दोस्त दोस्त ना रहा …
सफ़र के वक़्त में पलक पे, मोतियों को तौलती
वो तुम ना थी तो कौन था, तुम्हीं तो थी
नशे की रात ढल गयी, अब खुमार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा, ऐतबार ना रहा, ऐतबार ना रहा
दोस्त दोस्त ना रहा …
अब बंगाल में विवाद को देखिए तो यहां की आग ऑक्सफोर्ड तक जा पहुंची जहां वाम दलों के छात्र संगठन और भाजपा के लोग मिलजुलकर दीदी का विरोध करने जा पहुंचे। कुछ देर की नारेबाजी से तंग वहां मौजूद दूसरे लोगों ने ऐसे लोगों को धक्के मारकर सभास्थल से निकाल दिया। बाद में पता चला कि इस विरोध में कौन कौन लोग थे, जिनकी पहचान भी हो गयी।
इससे अलग चर्चा भाजपा के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर संजय जोशी की चर्चा का है। इतना तो स्पष्ट होता जा रहा है कि आरएसएस की पहल पर संजय जोशी अब मुख्यधारा में वापस आ सकते हैं। कभी के करीबी दोस्त नरेंद्र मोदी और संजय जोशी के बीच का अभी का रिश्ता जगजाहिर है। ऐसे में दोस्त अगर दोस्त ना रहे तो क्या रहेगा, यह तो दोनों में से कोई एक ही बता सकता है। लेकिन इससे बड़ा सवाल यह है कि अगर वाकई संगठन पर मोदी की पकड़ कमजोर होती है यानी कोई ऐसा इस कुर्सी पर बैठता है, जो उनकी हर बात ना मानें तो आगे क्या होगा।