धर्म परिवर्तन के नये कानून का अरुणाचल में विरोध शुरू
राष्ट्रीय खबर
गुवाहाटीः ईसाईयों में धर्म से जुड़े कानून के प्रति रोष, उन्हें डर है कि इससे स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का हनन होगा। अरुणाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 1978 को निरस्त करने की मांग को लेकर अरुणाचल क्रिश्चियन फोरम द्वारा आहूत विरोध प्रदर्शन में हजारों लोग शामिल हुए। उनका कहना है कि एक बार लागू होने के बाद यह अधिनियम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा।
इस कानून को अरुणाचल प्रदेश विधानसभा ने 1978 में जबरन धर्मांतरण रोकने के उद्देश्य से पारित किया था, लेकिन इसके नियम नहीं बनाए जाने के कारण यह निष्क्रिय पड़ा हुआ था। पिछले साल गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्देश पर भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने छह महीने (सितंबर से) के भीतर नियमों को अंतिम रूप देने का काम शुरू कर दिया है। इस कदम से कानून के समर्थन और विरोध दोनों को बढ़ावा मिला है।
गुरुवार का विरोध प्रदर्शन राज्य में ईसाइयों के शीर्ष निकाय एसीएफ द्वारा किया जाने वाला दूसरा विरोध प्रदर्शन था। अरुणाचल की आबादी में ईसाइयों की संख्या 30 प्रतिशत से ज़्यादा है। गुरुवार को इटानगर में राज्य विधानसभा के पास होने वाले विरोध प्रदर्शन में भारी भीड़ उमड़ी। प्रदर्शनकारियों में से एक ने कहा कि अगर सरकार उनकी अपील पर ध्यान नहीं देती है तो समुदाय के बीच एकजुटता और मजबूत होगी।
अधिकारियों द्वारा अनुमति न दिए जाने के बाद कार्यक्रम स्थल बदलकर इटानगर के पास नाहरलागुन के बोरम में करना पड़ा। एसीएफ के अध्यक्ष तारह मिरी ने बताया कि भारी भीड़ कानून के खिलाफ़ समुदाय के मूड को दर्शाती है और वे कानून के निरस्त होने तक लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि सभी संप्रदायों के प्रमुख अपनी भविष्य की रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए इस सप्ताह बैठक करेंगे, लेकिन वे शांतिपूर्ण समाधान के लिए सरकार के साथ बातचीत के लिए भी तैयार हैं।
इसे (कानून को) खत्म किया जाना चाहिए, निरस्त किया जाना चाहिए। एसीएफ ने 21 फरवरी को राज्य के गृह मंत्री मामा नटुंग से इस कानून पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की थी, जिसके बारे में उनका दावा है कि यह उनकी आज़ादी को कमज़ोर करता है। पिछले गुरुवार को मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने दोहराया कि कानून किसी भी धार्मिक समुदाय को लक्षित नहीं करता है, बल्कि नियम किसी की आस्था से परे स्वदेशी संस्कृति और मान्यताओं की रक्षा करने के इरादे से बनाए जा रहे हैं।