कोरोना वैक्सिन बनाने और उसे दुनिया भर में भेजने के बाद वैश्विक दवा बाजार में भारत ने अलग साख बनायी थी। अफ्रीका सहित अनेक छोटे देशों को पहली बार यह पता चला था कि भारत में भी अच्छी गुणवत्ता वाली दवाइयां बनती हैं, जो अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुकाबले सस्ती है। इससे वैश्विक दवा कारोबार में भारतीय उपलब्ध ऊपर चढ़ने लगी थी।
इसके बीच ही कई ऐसी घटनाएं हुई, जिससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि कहीं हम खुद ही अपने दुश्मन तो नहीं बन गये हैं। वैश्विक दक्षिण की फार्मेसी प्रतिष्ठा के संकट का सामना कर रही है।
भारत में स्थित दवा कंपनियों द्वारा बनाए गए कफ सिरप, जिसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल और/या एथिलीन ग्लाइकॉल की अस्वीकार्य मात्रा थी, ने गाम्बिया में 66 बच्चों, उज्बेकिस्तान में 2022 में 65 बच्चों और कैमरून में 2023 में 12 बच्चों की जान ले ली, और दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया से दूषित भारत में निर्मित आई ड्रॉप ने अमेरिका में तीन लोगों की जान ले ली और आठ लोगों को अंधा कर दिया, फिर से 2023 में, सभी गलत कारणों से भारतीय दवा कंपनियों पर फिर से ध्यान केंद्रित किया गया है।
बीबीसी आई की एक जांच ने महाराष्ट्र स्थित कंपनी एवियो फार्मास्यूटिकल्स की आपराधिक कार्रवाइयों को उजागर किया है, जो पश्चिम अफ्रीका में अस्वीकृत, अत्यधिक नशे की लत वाले ओपिओइड ड्रग संयोजनों का निर्माण और निर्यात कर रही थी।
“दवाओं” में टैपेंटाडोल, एक शक्तिशाली ओपिओइड और कैरिसोप्रोडोल, एक अत्यधिक नशे की लत वाली मांसपेशी आराम करने वाली दवा शामिल है। जबकि भारतीय दवा विनियामक ने टेपेंटाडोल और कैरीसोप्रोडोल को स्टैंडअलोन दवाओं के रूप में मंजूरी दे दी है, लेकिन संयोजन को कोई मंजूरी नहीं मिली है। भले ही कंपनी का दावा है कि दवा संयोजन को राज्य दवा प्राधिकरण द्वारा मंजूरी दी गई है, यह सही साबित हो, फिर भी यह अवैध है क्योंकि केवल केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ही किसी भी नए फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) दवाओं को सुरक्षा और प्रभावकारिता के लिए मंजूरी दे सकता है।
इस मंजूरी के बाद ही राज्य दवा प्राधिकरण विनिर्माण लाइसेंस जारी कर सकते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय नियमित रूप से एफडीसी पर प्रतिबंध लगाता है, क्योंकि राज्य दवा प्राधिकरण कानून में इस प्रावधान को अनदेखा करते हैं। भारत ने गाम्बिया को भेजे गए घातक कफ सिरप के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर सवाल उठाया और उसका खंडन किया, लेकिन नवीनतम
मामले में, सीडीएससीओ और राज्य विनियामक प्राधिकरण पश्चिमी अफ्रीकी देशों द्वारा किसी भी शिकायत के अभाव में भी हरकत में आ गए।
लगभग 13 मिलियन दवाएँ और टेपेंटाडोल तथा कैरीसोप्रोडोल के सक्रिय दवा घटकों के 26 बैचों की जब्ती कंपनी के खिलाफ़ आपराधिक कार्रवाई करने के लिए पुख्ता सबूत हैं।
हालाँकि अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदम – गतिविधि बंद करो आदेश जारी करना, किसी भी कंपनी द्वारा दवाओं के निर्माण लाइसेंस और निर्यात की अनुमति वापस लेना, और कारण बताओ नोटिस – कुछ हद तक भरोसा जगाते हैं, लेकिन केवल कठोर दंड ही निवारक के रूप में काम कर सकता है।
भारतीय दवा कंपनियाँ वैश्विक दक्षिण में अपनी उच्च गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाओं के लिए जानी जाती हैं। यह सुनिश्चित करना दवा नियामक का काम है कि भारत इसके लिए प्रसिद्ध बना रहे और घातक सिंथेटिक ओपिओइड को दवाओं के रूप में उत्पादन और निर्यात करने के लिए बदनाम न हो। सिंथेटिक ओपिओइड दवाओं का निर्माण किसी भी दवा कंपनी का व्यवसाय नहीं हो सकता।
अब देश के लिए चिंताजनक खबर यह है कि देश भर में दवाओं के 84 बैच, जिनमें सामान्य स्टेरॉयड और कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं शामिल हैं, गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में विफल रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2024 में एसिडिटी, हाई कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज़ और बैक्टीरियल संक्रमण के लिए बनाई गई दवाओं सहित विभिन्न कंपनियों द्वारा निर्मित दवाओं के 84 बैच गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहे।
दवा के नमूने निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करते थे, जिसके कारण उन्हें मानक गुणवत्ता के नहीं के रूप में वर्गीकृत किया गया। अधिकारियों ने क्या कहा? अधिकारियों के अनुसार, यह गुणवत्ता परीक्षण केवल निरीक्षण किए गए बैच तक ही सीमित है, पूरे उत्पाद तक नहीं।
इसलिए यह सवाल स्वाभाविक है कि जब भारत में बन रही दवा की गुणवत्ता भारतीय जांच में ही फेल हो रही है तो इस दवा निर्माण के नाम पर मानव जीवन से खिलवाड़ करने वाले किसी दूसरे देश के निवासी तो नहीं हो सकते। दूसरी तरफ वैश्विक दवा व्यापार के जिस बड़े हिस्से पर भारतीय उत्पादकों का कब्जा हो सकता था, उसे किसी भारतीय ने ही नुकसान पहुंचाया है। नतीजा है कि कोरोना वैक्सिन से जो कारोबारी लाभ मिल सकता था, वह खत्म हो गया। लिहाजा सवाल सही है कि कहीं हम खुद ही अपने दुश्मन तो नहीं है।