चुनाव आयुक्तों की बहाली का मामला शीर्ष अदालत में लंबित
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सॉलिसिटर जनरल की व्यस्तता की दलील
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महुआ मोइत्रा ने भी अलग से याचिका दी
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पहले ही विरोध कर चुके हैं राहुल गांधी
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई टाली है। बुधवार (19 फरवरी, 2025) को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने संकेत दिया कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति प्रक्रिया में केंद्र को प्रमुख भूमिका देने वाले नए कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 19 मार्च, 2025 को सुनवाई हो सकती है, क्योंकि बीच में कोई तारीख नहीं है।
सॉलिसिटर जनरल ने जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष कहा कि वे आज दिन भर संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध संवैधानिक महत्व के मामले से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई में व्यस्त हैं। लेकिन इस चुनाव आयुक्त की नियुक्ति मामले में याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने तत्काल सुनवाई की मांग की है। याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले की सुनवाई पहले मैटर के तौर पर करने की गुहार लगाई तो कोर्ट ने पहले ही टोका कि एक मामले की सुनवाई करने के बाद करेंगे।
इस बीच लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिसने चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति करने वाले चयन पैनल से भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया था।
हस्तक्षेप की मांग करते हुए, तृणमूल कांग्रेस के सांसद ने अधिनियम में संवैधानिक खामियों का आरोप लगाया और अंतर्निहित संवैधानिक सुरक्षा उपायों के साथ सीईसी/ईसी के चयन/नियुक्ति के वैकल्पिक मॉडल का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि विवादित अधिनियम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार संस्था के स्वतंत्र कामकाज को हड़पने का जानबूझकर किया गया प्रयास है, और सीधे तौर पर बुनियादी संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
अधिनियम की धारा 7 के संदर्भ में, सांसद ने दावा किया कि यह कार्यकारी-प्रधान चयन समिति को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश करके चुनाव आयोग का गठन करने की अनुमति देता है। ऐसा करके, विवादित अधिनियम कार्यकारी को चुनाव आयोग की संरचना को प्रभावित करने की अनुमति देता है और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के अब तक स्थापित सिद्धांत को पराजित करता है, जिसके लिए चुनाव प्रक्रिया का संचालन और पर्यवेक्षण करने के लिए एक पृथक, गैर-पक्षपाती और पूरी तरह से स्वतंत्र चुनाव आयोग की आवश्यकता होती है।
आगे यह दावा किया गया है कि कार्यकारी-प्रधान चयन समिति बनाकर, अधिनियम ने संविधान के अनुच्छेद 324(2) के विधायी इरादे को उलट दिया है, जो यह प्रावधान करता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन।
सांसद के अनुसार, संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन वाक्यांश को कार्यकारी दुरुपयोग के खिलाफ संवैधानिक सुरक्षा के उपाय के रूप में डाला गया था। मोइत्रा बताते हैं कि संसद के 141 सदस्यों को न तो मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पद की अवधि) विधेयक, 2023 पर विचार-विमर्श करने का अवसर मिला और न ही वे इसके प्रावधानों पर मतदान कर सके। जबकि 2023 के शीतकालीन सत्र में कथित कदाचार के लिए लोकसभा में 97 विपक्षी सदस्य निलंबित रहे, वहीं विधेयक पारित होने के समय राज्यसभा में 45 सदस्य निलंबित रहे।
इस मामले में नेता प्रतिपक्ष पहले ही यह आरोप लगा चुके हैं कि यह लोकतंत्र के खिलाफ है क्योंकि सरकार के दो व्यक्ति जब इस कमेटी में होंगे तो बहुमत के आधार पर वही फैसला होगा, जो सरकार चाहती है। यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। इस कमेटी के सदस्य होने के नाते उन्होंने अपना लिखित विरोध भी दर्ज कराया है।
ज्ञानेश कुमार ने कार्यभार संभाला
नईदिल्लीः नवनियुक्त मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयुक्त डा विवेक जोशी ने बुधवार को यहां अपना कार्यभार संभाल लिया। श्री ज्ञानेश कुमार भारत के 26वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त है। उन्होंने श्री राजीव कुमार का स्थान लिया है जिनका कार्यकाल मंगलवार को सम्पन्न हुआ।
श्री ज्ञानेश कुमार का निर्वाचन आयेग के मुख्यालय पर निर्वाचन आयुक्त डा सुखबीर सिंह संधू और डा विवेक जोशी ने स्वागत किया। मुख्य निर्वाचन आयुक्त श्री ज्ञानेश कुमार ने नयी जिम्मेदारी संभालने के बाद एक संक्षिप्त संदेश में नागरिकों विशेषकर युवा नागरिकों के लिए कहा कि उन्हें मतदान की जिम्मेदारी जरुर निभानी चाहिए।
उन्होंने इसे राष्ट्र सेवा के लिए पहला कदम बताया। श्री कुमार ने कहा राष्ट्र सेवा के लिए पहला कदम है मतदान , अत: भारत के नागरिक जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हों , उन्हें मतदाता जरुर बनना चाहिए और मतदान अवश्य करना चाहिए। भारत के संविधान , लोक प्रतिनिधित्व कानूनों , नियमों एवं उनके अन्तर्गत जारी निर्देशों के अनुरुप चुनाव आयोग हमेशा मतदाताओं के साथ था, है और रहेगा।