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भाजपा की नाराजगी की बीमारी अब सार्वजनिक होने लगी

महामंत्री के खिलाफ भी उठ गये सवाल

  • सोशल मीडिया पर भी आलोचना के स्वर

  • प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर दावेदारी

  • रघुवर दास को एडजस्ट करना बाकी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः झारखंड भाजपा में मतभिन्नता है, यह जगजाहिर बात है पर अनुशासित दल होने की वजह से ऐसी नाराजगी आम तौर पर बाहर नहीं आती थी। अब बदलाव के दौर में लोग सोशल मीडिया पर भी पार्टी के नेताओं से उनकी योग्यता और बड़े पद की दावेदारी पर सवाल खड़े करने लगे हैं।

सबसे ताजा मामला राज्यसभा सांसद प्रदीप वर्मा के खिलाफ नजर आया है। फेसबुक पर किसी ने उनकी राजनीतिक योग्यता पर ही सवाल खड़े नहीं किये बल्कि लगे हाथ दो चार आरोप और भी जड़ दिये। दूसरी तरफ श्री वर्मा के करीबी इस किस्म की बातों को सोशल मीडिया पर प्रसारित करने को भी एक साजिश मानते हैं और किसी दूसरे नेता को इसके पीछे का असली कारण मानते हैं।

झारखंड भाजपा में फिलहाल अवकाश जैसी स्थिति है और दिल्ली विधानसभा का चुनाव परिणाम घोषित होने तक इसमें कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं होने वाला है। इसके बीच ही खुद प्रदीप वर्मा ने महामंत्री की हैसियत से चुनाव अधिकारियों की सूची जारी कर दी है। डॉ वर्मा के हस्ताक्षर से जारी लिस्ट में पार्टी के सभी 27सांगठनिक जिलों केलिए एक चुनाव अधिकारी और दो जिला सह चुनाव अधिकारी की घोषणा की गई है। इस सूची पर किसी को कोई खास परेशानी नहीं है पर खुद श्री वर्मा के अपने विधानसभा क्षेत्र यानी खिजरी से भाजपा के बार बार पराजित होने पर सवाल जरूर खड़े कर दिये गये हैं। चर्चा यह भी है कि खुद श्री वर्मा भी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के दावेदार हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी उनकी सक्रियता अत्यधिक रही थी और इस दौरान वह पार्टी के बड़े नेताओं के निरंतर संपर्क में भी रहे। उनकी सक्रियता की वजह से ही उनके ठिकाने पर छापामारी भी हुई थी, जिसमें कुछ भी गलत नहीं पाया गया था। वैसे उनसे नाराज लोगों का कहना है कि छापामारी तो सही हुई थी पर जहां से पैसे बरामद हो सकते थे, उस स्थान को सूचना होने के बाद भी अधिकारियों ने छोड़ दिया। लेकिन इस दावे की कोई पुष्टि नहीं हो पायी है।

इस विवाद के बीच रघुवर दास के पार्टी में दोबारा योगदान करने का मसला भी फंसा हुआ है। राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर दोबारा प्रदेश की राजनीति में लौटने वाले श्री दास को भाजपा नेतृत्व द्वारा कहीं न कहीं तो एडजस्ट किया जाना है। पहले तो उनके नये राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की चर्चा हुई थी पर समय के साथ यह चर्चा हवा में रह गयी। फिर भी यह धीरे धीरे स्पष्ट होता जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के दौरान लिये गये कई फैसलों की वजह से भाजपा के नेता अलग अलग खेमों में बंट गये हैं और वर्तमान संगठन महामंत्री इस दूरी को पाट नहीं पा रहे हैं।

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