धरती के इतिहास के वैज्ञानिक शोध पर प्रयास जारी
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उस दौर के हवा के बुलबले भी बर्फ में कैद हैं
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1.2 मिलियन वर्षों तक फैला हुआ है इतिहास
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प्राचीन हिमयुग के इतिहास का पता चला
राष्ट्रीय खबर
रांचीः पृथ्वी के अतीत के पहेली टुकड़ों को इकट्ठा करने का सबसे अच्छा तरीका इसकी सफेद ध्रुवीय चादरों के नीचे छिपा हुआ है, वह है बर्फ की परतें। ये जमे हुए समय कैप्सूल हजारों साल पहले के हवा के बुलबुले को संरक्षित करते हैं, जो उस समय की जलवायु और पर्यावरणीय स्थितियों की तस्वीर पेश करते हैं और बताते हैं कि हमारा ग्रह कितना बदल गया है।
बर्फ की परतें दिखा सकती हैं कि सुदूर अतीत में तापमान में कैसे उतार-चढ़ाव हुआ है और यह पूर्वावलोकन कर सकती हैं कि अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण होने वाली गर्मी पर अंकुश नहीं लगाया गया तो भविष्य में समुद्र का स्तर कितनी तेज़ी से बढ़ सकता है।
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परतें जितनी गहरी होंगी, उनमें उतना ही अधिक इतिहास होगा – और बर्फीली परतें पृथ्वी के 4.5 बिलियन वर्ष के रहस्यमय युगों के बारे में कुछ सबसे बड़े सवालों को भी हल कर सकती हैं।
एक शोध दल ने पृथ्वी पर सबसे पुराने बर्फ के नमूनों में से एक को एकत्र किया है। 12 यूरोपीय वैज्ञानिक संस्थानों के सदस्यों वाली टीम ने अंटार्कटिक बर्फ की चादर से 9,186-फुट लंबी (2,800-मीटर) बर्फ की परतें खोदी और निकाली।
नमूना इतना गहरा था कि वैज्ञानिक इसके नीचे की चट्टान तक पहुँच गए। यह बर्फ का कोर पृथ्वी के जलवायु इतिहास के कम से कम 1.2 मिलियन वर्षों तक फैला हुआ है।
बर्फ के अंदर फंसे हवा के बुलबुले और कण यह भी बता सकते हैं कि लगभग 1 मिलियन वर्ष पहले ग्रह के हिमयुग अचानक लंबे और अधिक तीव्र क्यों हो गए, जिसके कारण प्राचीन मानव आबादी में भारी गिरावट आई होगी।
दरअसल हाल के दिनों में पूरी धरती के मौसम में नजर आ रहे बदलावों की बीच यह सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण बनता जा रहा है। कैलिफोर्निया में लगी आग, सऊदी अरब के रेगिस्तानों में बर्फबारी और अफ्रीका के कई इलाकों में सूखे की वजह से यह सवाल अधिक जरूरी है।
कई बार ऐसा कहा जाता है कि हमारी दुनिया पहले भी इस किस्म के उथल पुथल के दौर से गुजर चुकी है।
दरअसल प्राचीन बर्फ के बारे में यह भी मान्यता है कि उल्कापिंडों के गिरने के बाद बदले माहौल में इस धरती पर शीतकाल की वापसी हुई थी।
उन उल्कापिंडों के गिरने की वजह से ही उस दौर के सबसे ताकतवर प्राणी डायनासोर जलकर खत्म हो गये थे। प्रारंभिक आकलन है कि पूरी दुनिया में उसके बाद शीतकाल आया था। लिहाजा उस दौर के बर्फ के ऊपर बाद के काल के बर्फखंड जमते चले गये हैं।
बर्फ के इन तमाम स्तरों में अपने अपने काल के कुछ न कुछ विवरण दर्ज हैं, जो वर्तमान विज्ञान से तब की स्थिति के बारे में रोशनी डाल सकते हैं।
वैसे यह खतरा भी है कि प्राचीन बर्फखंडों में और अत्यंत गहराई में दबे इन रहस्यों में अनजान वायरस भी हैं जो बर्फ में दबे होने की वजह से सुप्तावस्था में हैं और सूर्य के संपर्क में आने पर दोबारा जागृत हो सकते हैं। बर्फ को काफी गहराई तक खोदने तथा उनके गहन विश्लेषण से प्राचीन धरती कैसी थी और विभिन्न कालखंड में किन किन उतारचढ़ावों से गुजरी, इसकी जानकारी मिल सकती है।