नये साल के अगले दिन किसी भी पर्यटन स्थल को देख लीजिए। एक जनवरी का दिन अक्सर ही पर्यटन स्थलों के लिए भारी भीड़ वाली होता है। उसके एक दिन बाद वहां का नजारा देखकर सतर्क होना चाहिए। अगले दिन के बिखरे हुए बचे हुए खाने, जले हुए दीयों और सूखी हुई मालाओं को देखकर हमारा मन ऊब जाता है।
इस वर्ष क्रिसमस और नये साल के दिन ऐसे इलाकों को देखकर लोगों को परेशानी जरूर महसूस होगी। इन तमाम इलाकों में स्टायरोफोम की प्लेटें और कटोरे, कप, प्लास्टिक बोतलें, गुटखा और चिप्स के पैकेट और बहुत कुछ हर जगह बिखरा हुआ था।
उन्होंने जो कचरा छोड़ा उसकी मात्रा इतनी अधिक थी कि अगले दिन स्थानीय लोगों को सरकारी कर्मचारियों को उसे साफ करने में कई दिन लग जाते हैं। प्रयास के बाद भी ऐसे इलाकों का अधिकांश हिस्सा अछूता छोड़ दिया था तथा कचरे से भर गया था।
जो भी अपना काम करता है उसे सच बोलना चाहिए। लेकिन अगर उत्सव मनाने वाली भीड़ यह सोचकर कचरा फेंक रही है कि चूंकि इसे साफ करने की जिम्मेदारी किसी और की है तो तो यह कहना होगा कि वे जो भी हैं, कम से कम अच्छे तो नहीं हैं -स्वभाव से समझदार और समझदार नागरिक बनें।
उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि सिर्फ इसलिए कि आयोजन स्थल एक दूसरों के लिए भी पर्यटन स्थल है। उनकी स्व-हस्ताक्षरित अयोग्यता संबंधी छूट लागू नहीं होती। जिस तरह प्रशासन का काम उत्सव का माहौल और जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, उसी तरह नागरिकों के भी कुछ कर्तव्य हैं; इनमें सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण है जिम्मेदाराना व्यवहार।
दुर्गा पूजा देखने के लिए एकत्र होने वाली भीड़ कभी भी मंडप की सजावट को नुकसान नहीं पहुंचाती, भले ही भीड़ बहुत अधिक हो, तो फिर वही भीड़ मैदान में आनंदपूर्वक समय बिताने के बाद कचरे का ढेर क्यों छोड़ जाती है? ऐसा नहीं है कि पर्यावरण के बारे में किसी को जानकारी नहीं है, न ही लोग इसके खतरों से अब अनजान है।
दूसरा सवाल हर ऐसे आयोजन के मौके पर पुलिस की मौजूदगी क्यों चाहिए। इसका असली कारण हमलोगों को स्वअनुशासित नहीं होना है। सिर्फ नये साल का जश्न ही नहीं सड़कों पर चलने वाले वाहनों को देखकर भी इसे महसूस किया जा सकता है। जहां पर पुलिस मौजूद है, वहां पर लोग कतारों में वाहन चलाते हैं पर जहां नहीं है, वहां आगे निकलने की होड़ से ट्राफिक जाम हो जाता है।
खास तौर पर रांची के कुछ इलाकों में इसे हर रोज देखा जा सकता है पर कोई यह नहीं सोचता कि उसकी अपनी जल्दबाजी से जो जाम लग रहा है वह कई सौ वाहनों का प्रदूषित धुआं छोड़ रही है तथा सामूहिक तौर पर ईंधन के खर्च को कई सौ गुणा बढ़ा रही है।
चौक पर चाय बेचने वाले भी शिकायत कर रहे हैं कि यह भीड़ उनके लिए कुछ अजनबी सी है, उन्होंने पहले कभी ऐसा अंधाधुंध व्यवहार नहीं देखा – ऐसी स्थिति में सरकार को निश्चित रूप से सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
राज्य सरकार को यह निर्णय लेना होगा कि यह कैसे होगा। हाल के दिनों में, पर्यावरण के महत्व के बारे में पर्यावरणविदों और शहरी योजनाकारों के शब्दों का इस्तेमाल अभियान में एक उपकरण के रूप में किया गया था, और हाल ही में, समाज के प्रमुख व्यक्तियों की टिप्पणियों का इस्तेमाल किया गया है।
इसलिए उत्सव का माहौल होने के बाद भी अगले दिन की चिंता भी एक सामाजिक दायित्व बनता है। यह कौन सा आचरण है कि अपने जश्न के लिए हम पूरे इलाके को ही गंदा करें और खास तौर पर जलाशयों और जंगलों तक प्लास्टिक का प्रदूषण और आगे तक फैलने के लिए छोड़ आये।
हिमालय के कई इलाकों में अब कचड़ा फेंकने पर पूर्ण प्रतिबंध है। इन इलाकों में आगे जाने वालों को यह साइनबोर्ड भी दिख जाता है कि प्लास्टिक का इस्तेमाल वर्जित है।
नेपाल के पर्यटन विभाग को माउंट एवरेस्ट का कचड़ा साफ करने में महीनों लग रहे हैं पर कचड़ा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। लिहाजा अब यह सामुदायिक जिम्मेदारी बनती जा रही है कि दिख रहे खतरों की वजह से हम अपने आस पास के लोगों को भी कचड़े का सही निष्पादन करने के लिए प्रेरित करें।
नये साल का जश्न जितना जरूरी है उससे कहीं अधिक आवश्यक अब पर्यावरण को बचाना भी है। पूरी दुनिया में इस पर्यावरण के बिगड़ने का बुरा परिणाम साफ साफ दिख रहा है।
ऐसे में अगर आम लोग समझदारी नहीं दिखाते हैं तो उन्हें जबरन इसके लिए बाध्य किया जाना चाहिए ताकि तमाम पर्यटनस्थलों को आने वाले वर्षों के लिए भी साफ सुथरा रखा जा सके और पर्यावरण की रक्षा हो। नये साल के जश्न का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि हम आने वाले दिनों के लिए और अधिक कचड़ा वहां डालकर चुपचाप चले आयें।