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बाघिन जीनत को पकड़ लिया गया

लंबे समय से जारी लुका छिपी का खेल हुआ खत्म

  • पहले के सारे प्रयास विफल हुए थे

  • दोपहर को जंगल में बेहोश हो गयी

  • उड़ीसा के जंगल से चली आयी थी वह

राष्ट्रीय खबर

पुरुलियाः उड़ीसा के सिमलीपाल से झारखंड के चाकुलिया। वहां से पुरुलिया के राइका पहाड़ होते हुए बांकुड़ा के जंगल तक आ पहुंची थी। इस दौरान वन विभाग के साथ इस बाघिन के लुका छिपी का खेल चल रहा था। यह खेल अब जाकर खत्म हुआ है। सात दिनों तक लगातार पीछा करने के बाद उसे रविवार दोपहर बांकुड़ा जंगल में पकड़ लिया गया।

उसे काबू में करने के लिए शनिवार से ही उस पर बार-बार स्टन गन से गोलियां चलाई जा रही थीं। वनकर्मियों ने जीनत को रातभर पिंजरे में बंद रखने की कोशिश की, लेकिन वे उसे वापस लाने में असफल रहे। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार रविवार शाम करीब चार बजे वनकर्मियों ने जीनत पर फिर से ट्रैंक्विलाइजर गोलियां चलाईं। वह गोली बाघिन को लगी। इस बार का निशाना सही होने की वजह से वह बेहोश हो गयी और उसे पकड़ लिया गया।

शनिवार की सुबह जीनत ने पुरुलिया के जंगलों से बांकुड़ा के रानीबांध थाना अंतर्गत गोंसैडीह गांव से सटे जंगल में शरण ली। स्थान की पुष्टि करने के बाद वन विभाग ने ट्रैंक्विलाइजर का प्रयोग कर बाघिन को काबू में करने की तैयारी शुरू कर दी। कई गोलियां चलाई गईं। लेकिन यह काम नहीं आया। बाघिन जंगल में कहीं छिपी हुई थी। इसके बाद पूरे जंगल को घेरकर जगह-जगह आग लगाने और जीनत को पिंजरे में कैद करने की रणनीति अपनाई गई। यही रणनीति सफलता का आधार है। अंततः बाघिन वनकर्मियों के जाल में फंस गई।

गत 15 नवंबर को तीन वर्षीय जीनत को महाराष्ट्र के ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व से उड़ीसा के मयूरभंज जिले के सिमलीपाल टाइगर रिजर्व में लाया गया। कुछ दिनों तक पिंजरे में रखने और निगरानी के बाद 24 नवंबर को उसे रेडियो कॉलर पहनाकर सिमलीपाल बाघ परियोजना के जंगल में छोड़ दिया गया। इसके बाद जीनत झारखंड की ओर चल पड़ी।

झारखंड में कुछ दिन बिताने के बाद वह चाकुलिया रेंज के राजाबासा जंगल को पार कर चियाबांडी क्षेत्र से झारग्राम के बेलपहाड़ी थाना अंतर्गत कटुचुआ जंगल में प्रवेश कर गया। इसके बाद बाघिन झारग्राम से पुरुलिया के जंगलों में पहुंच गई। शनिवार की सुबह उन्होंने अपना निवास स्थान बदला और गोंसाईडीह गांव पहुंच गए।

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, ग्रामीणों ने सुबह-सुबह बाघिन की दहाड़ सुनी। क्षेत्र में उनके पैरों के निशान भी दिखाई देते हैं। इससे गांव वालों को यकीन हो गया कि वह गांव से कुछ सौ मीटर की दूरी पर जंगल में छिपा हुआ है। वनकर्मी बाघिन की गर्दन पर लगे रेडियो कॉलर से मिले सिग्नल को ट्रैक करके मौके पर पहुंचे।

उन्हें पता चला कि जीनत गांव से ज्यादा दूर मुकुटमणिपुर जलाशय के पास एक छोटे से जंगल में है। इसके तुरंत बाद, पूरे जंगल को नायलॉन की रस्सी से घेर दिया गया। ग्रामीणों पर बाघिन के हमलों को रोकने के लिए गांव की सड़कों को भी जाल से घेर दिया गया था। जंगल में कई पिंजरों के अलावा, चारे के रूप में दो भैंसे भी रखी गईं थी।

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