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भाजपा की समीक्षा बैठक में असली वजह पर सभी चुप

जयराम के उभार के दूसरे कारण पर चर्चा नहीं

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल से बढ़ी थी नाराजगी

  • जयराम ने इस मौके का सही लाभ लिया

  • विद्युत वरण महतो की वरीयता दरकिनार

राष्ट्रीय खबर

 

रांचीः भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेताओं ने झारखंड के विधानसभा चुनाव में पराजय के विषय पर चर्चा की। दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में निरंतर सक्रिय रहने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं के जरिए जो विषय इस बैठक तक पहुंचाया था, उस पर किसी ने बात नहीं की। यह जगजाहिर है कि जयराम महतो की सक्रियता की वजह से भाजपा और आजसू को जबर्दस्त नुकसान हुआ है।

लेकिन इस उभार की वजह क्या थी, इस पर भाजपा के लोग भी खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं। दरअसल यह नाराजगी सिर्फ स्थानीयता अथवा रोजगार को लेकर नहीं उपजी।

लोकसभा चुनाव तक राज्य का कुर्मी मतदाता भाजपा के खिलाफ नहीं था। दरअसल झारखंड में महतो और बिहार में कुर्मी दोनों ही जातिवर्ग की विशेषता है कि वे समाज में बेहतर तौर पर स्थापित है।

खेती में तरक्की करने के अलावा पढ़ाई में भी यह वर्ग काफी आगे निकल चुका है। शिक्षक के पेशे, चाहे वह स्कूल हो अथवा कॉलेज इस जातिवर्ग के शिक्षकों की मौजूदगी अहम है। चिकित्सा और वकालत के क्षेत्र में भी वह बेहतर तरीके से स्थापित है। इन तथ्यों को जानते समझते हुए भी उस मूल कारण को खुले तौर पर बताने से हिचकते रहे।

अंदर की बात करें तो यह नाराजगी केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन के वक्त उपजी थी। इस बार के नरेंद्र मोदी की सरकार में जब झारखंड से रांची के सांसद संजय सेठ को केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री बनाया गया तो महतो वर्ग नाराज हो गया। उनकी सोच में जमशेपुर के सांसद विद्युत वरण महतो वरीयताक्रम में बेहतर सम्मान पाने के हकदार थे।

दऱअसल अपने जमान के दबंग आईपीएस अफसर के तौर पर ख्यातिप्राप्त अजय कुमार को वर्ष 2014 में उन्होंने परास्त किया था। इससे पहले वह बहरागोड़ा सीट पर बतौर विधायक चुनाव जीत चुके थे। तब से लगातार भाजपा के सांसद रहने के बाद भी उनके नाम पर विचार नहीं होने से  राज्य के महतो वोटरों में से प्रवुद्ध लोग अंदर ही अंदर नाराज होते चले गये।

इस नाराजगी को दूर करने की दिशा में कोई ठोस प्रयास भी नहीं हुआ। इसकी वजह से भाजपा और महतो वोटरों के बीच एक खाई पैदा होती गयी। अब विधानसभा चुनाव में जयराम महतो की वजह से दो दर्जन से अधिक सीटों पर पराजय की दलील देने वाले इस बात को खुलकर नहीं कह पा रहे हैं कि दरअसल विद्युत वरण महतो के बदले संजय सेठ को मंत्री बनाया जाना, महतो वर्ग को नागवार गुजरा है।

धारा के विपरीत बोलते हुए जयराम महतो ने इस नाराजगी को अपने पाले में करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे यह सवाल अब भी गूंज रहा है कि जयराम को इस ऊंचाई तक पहुंचाने में किन अदृश्य चेहरों का योगदान रहा है।

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