भ्रमजाल बुनने का रामबाण टोटका
चुनावी वैतरणी पार करने की तिलस्मी पूंछ
प्रकाश सहाय
हिंदी व्याकरण के भविष्यत काल का गा, गे, गी अलादीन का जादुई चिराग है…रामबाण टोटका है …रेडिमेड जादू की छड़ी है …थोड़ा रगड़ा या घुमाया फिर बन जाता है तिलस्मी भ्रमजाल…कभी ना टूटने वाला ..
चुनावी दंगल में जादू का खिलौना हैं गा, गे, गी
सात दशकों से नेता मंत्री हुजूर हाकिम लोग इसी तिलस्मी
” गा, गे, गी ” की पूंछ पकड़ कर चुनावी वैतरणी पार करते रहे हैं ..आज भी इसका रंग चोखा है …
युवाओं की रोजगार मिले ” गा ”
बिजली पानी अनाज मुफ्त मिले ‘ गा ‘
बुजुर्गों को पेंशन इलाज मुफ्त हो “गा ”
विकास की लहर दौड़े ‘ गी ‘
सूरज की किरणों से सोना बरसे ‘ गा ‘
खुशियां भी आपका घर ढूंढे ‘ गी ‘
फलनवा ढ़ेकनवा बनायें ” गे ”
गा, गे , गी की तासीर इतनी जबरदस्त है कि लोग ताज महल भी मांगेगे तो वो भी मिलेगा जहां भी जब जी चाहे ..
सबसे हाहाकारी खूंखार सच तो यह है कि हर दल का हर नेता इस खेल का सिकंदर है ..कोई किसी से रत्ती भर कम नहीं … ( एक प्रतिशत अपवाद को छोड़ कर )
देश की आजादी के दिन से ही यह ” गा गे गी ” का ” सौंदर्य श्रृंगार ” नेता मंत्री हुजूर हाकिम के मुखारविंद पर चिपक गया था ..फेविकोल और अंबुजा सीमेंट के जोड़ से लाख गुना गहरा मजबूत ..हिंदी व्याकरण के इसी ” गा गे गी ” के रेशमी धागों से भ्रमजाल बुनने की ” इंडियन ” परंपरा शुरू हुई ..जो आज तक अनवरत सरपट दौड़ रही है …
इस भ्रमजाल में सदियों से मासूम अनपढ़ भोले भारतीय फंसे हुए हैं …
15 अगस्त 1947 की भोर में देश के सुनहरे सपने के साथ जो लोग जागे…उनके लिए ना धरती बदली थी ना ही आकाश ! उनके झोपड़े में वहीं मकड़जाल था और थाली में थी वही सुखी रोटी ! जीवन में स्याह अंधेरा था ..फिर लोगों में जो उमंग रही वह संभावनाओं के कारण ही .. नयी सरकार बनते ही मंत्रियों ,राजनेताओं की स्वप्निल घोषणाओं ने लोगों की उमंग के रंग को और गहरा बना दिया ..
साल दर साल ..दशक दर दशक घोषणाओं का भ्रमजाल टूटने लगा ..गरीबी भुखमरी हटाओ का भ्रमजाल तब भी और आज भी ज्यों का त्यों है …
क्योंकि ” गा,गे,गी ” की तिलस्मी फरेब इतना असरदार रहा कि इस भ्रमजाल से लोग आज तक बाहर निकल नहीं पाए हैं …क्योंकि यह फुलप्रूफ शर्तिया फार्मूला है अनपढ़ लोकतंत्र का …
आज के दौर के चुनावी दंगल में बस एक प्रतियोगिता चल रही है ..कौन कितना लुभावने अंदाज में इस
” गा गे गी ” अपने होठों पर नचा सकता है …
लोगों को ख्वाबों ख्यालों की सतरंगी दुनिया की सैर करा सकता है ..
हिंदी व्याकरण के इस जुमले से मुफ्त बांटने की होड़ लगी है …सब के सब महादानी कर्ण बने हुए हैं ..जान प्राण लुटाने पर आमादा हैं …
हिंदी व्याकरण के इस जुमले के निरंतर प्रयोग से राजनेताओं मंत्रियों और सरकारों ने ” भिखमंगावाद ” प्रवृति को सरकारी रूप से स्थापित कर दिया है …
चुनाव खत्म होते यह हिंदी व्याकरण भी 5 साल के लिए विश्राम गृह में चला जाएगा ..
फिर जनता 5 साल तक यही गीत गुनगुनाती रहेगी :
” हम आस लगाए बैईठे हैं
तुम वादा करके भूल गए ”
लेकिन सच्चाई यह है कि दिल जलता रहेगा जैसे सदियों से जलता रहा है …