किसी अधिकारी को अगर संसद को लोक लेखा समिति ने बुला लिया तो किसी राजनीतिक दल को इससे क्या परेशानी हो सकती है, यह आम जनता की समझ से बाहर की बात है। दरअसल हम बात कर रहे हैं अनेक किस्म के विवादों से घिरी सेबी की प्रमुख माधवी पुरी बुच की। भाजपा सांसदों ने लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के.सी. वेणुगोपाल पर एकतरफा और राजनीति से प्रेरित कार्य करने का आरोप लगाया, क्योंकि कांग्रेस सांसद ने सेबी प्रमुख माधबी पुरी-बुच की सुनवाई के लिए नई तारीख तय करने का फैसला किया, जो गुरुवार को सदन की समिति के समक्ष पेश होने में विफल रहीं।
भाजपा पुरी-बुच को मूल समन के खिलाफ रही है, क्योंकि उसे डर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले अडानी समूह के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की बाजार नियामक की जांच में कथित हितों के टकराव पर उनसे पूछताछ की जाएगी। विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पलटवार करते हुए पूछा कि सेबी प्रमुख बैठक में क्यों नहीं आईं और कौन उन्हें बचाने की कोशिश कर रहा था।
सदन की समिति में एनडीए के सदस्यों ने पत्रकारों के सामने वेणुगोपाल पर हमला किया और फिर उनके खिलाफ शिकायत करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के पास पहुंचे। यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है। उनके (वेणुगोपाल के) शब्द स्वप्रेरित निर्णय थे… उनका पूरा आचरण (पीएसी बैठक स्थगित करना) और हमें बोलने की अनुमति न देना असंसदीय है… और यह दर्शाता है कि उनके पास बाहरी राजनीतिक विचार हैं,पैनल में सत्तारूढ़ गठबंधन के अन्य सदस्यों के साथ भाजपा सदस्य रविशंकर प्रसाद ने संवाददाताओं से कहा। पीएसी का काम सीएजी रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करना है। हमारे पास विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी है कि सीएजी रिपोर्ट में सेबी पर कोई पैराग्राफ नहीं है, उन्होंने वेणुगोपाल द्वारा बुच को बुलाने पर जोर देने पर सवाल उठाया।
सूत्रों ने कहा कि जब वेणुगोपाल ने बैठक स्थगित की तो एनडीए और विपक्षी सांसदों के बीच कहासुनी हो गई, जिससे पुरी-बुच को किसी अन्य दिन पेश होना पड़ा। पूर्व कानून मंत्री प्रसाद ने संवाददाताओं से कहा कि नियामक निकायों के प्रदर्शन की समीक्षा के लिए कई अन्य संसदीय पैनल मौजूद हैं। उन्होंने वित्त पर समिति का उदाहरण दिया जो सेबी और भारतीय रिजर्व बैंक के काम की जांच करती है। उन्होंने (वेणुगोपाल) अन्य सदस्यों से परामर्श किए बिना विषयों का स्वप्रेरणा से चयन कैसे किया?
प्रसाद ने कहा, किसी को भी तैयार की गई सूची के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
पीएसी के भाजपा सदस्य निशिकांत दुबे ने पिछले महीने बिरला को पत्र लिखकर वेणुगोपाल पर केंद्र सरकार को बदनाम करने और अस्तित्वहीन मुद्दों को उठाकर देश की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने का आरोप लगाया था।
उन्होंने लिखा कि पैनल के अध्यक्ष का आचरण राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित था, उन्होंने तर्क दिया कि हिंडनबर्ग जैसी विदेशी फर्म (पुरी-बुच और अडानी समूह के खिलाफ) द्वारा लगाए गए आरोप असत्यापित थे और भारत को बदनाम करने की एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा थे।
हाल के वर्षों में संसदीय पैनल में सत्तारूढ़ और विपक्षी सदस्यों के बीच तीखी राजनीतिक झड़पें देखी गई हैं। विवादास्पद वक्फ संशोधन विधेयक की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति में हाल ही में हंगामा देखने को मिला।
राहुल ने एक्स पर दो सवाल पोस्ट किए: पहला कि माधबी बुच संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के समक्ष सवालों का जवाब देने में अनिच्छुक क्यों हैं? दूसरा कि उन्हें पीएसी के प्रति जवाबदेह होने से बचाने की योजना के पीछे कौन है?
भाजपा की तरफ से इतनी अधिक रूचि लेने का समझने लायक आधार समझ से परे है। आम सोच तो यही बनती है कि अगर आरोप लगे हैं और उससे संबंधित कुछ दस्तावेज भी सार्वजनिक हुए हैं तो जनता के पैसे से संचालित हर संस्था के प्रमुख को इस बारे में स्पष्टीकरण देना होगा। निर्वाचित राजनीतिज्ञ होने का यह अर्थ कतई नहीं होता कि वे सभी जनता के प्रति अपनी जवाबदेही से मुक्त हो गये। आखिर देश के पैसे का सवाल है और जनता के पैसे से ही सब कुछ संचालित हो रहा है। यह कोई निजी कंपनी नहीं है, जिसके बारे में किसी दूसरे पक्ष को जानने का हक नहीं है। वैसे भी भारत से पूंजी के विदेश जाने और वहां से गलत रास्ते से वापस भारत में पूंजी निवेश के तौर पर आने से जनता का हक मारा जा रहा है, इस सवाल का उत्तर आज नहीं तो कल देना ही पड़ेगा। मुद्दे को अडाणी और सेबी प्रमुख के साथ साथ हिंडनबर्ग तक ही सीमित किये जाने का कोई औचित्य ही नहीं है। जनता के पैसे को किस तरीके से खर्च किया जा रहा है, उसके बारे में किसी न किसी की जवाबदेही तो बनती है।