पुरानी कहावत है कि जब शेर अकेला पड़ जाता है तो झूंड के भेड़िए भी उस पर हमला कर देते हैं। अभी इंडियन पॉलिटिक्स का कुछ वैसा ही हाल है। नरेंद्र मोदी का ग्राफ पिछले लोकसभा चुनाव में थोड़ा गिर गया तो सारे के सारे अब दांत दिखाने लगे हैं। ऊपर से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव का मसला अतिरिक्त परेशानी पैदा कर रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी मौके की नजाकत को भांपते हुए पहले संजय जोशी का नाम आगे कर दिया, जिसे आज के दौर में नरेंद्र मोदी का सबसे प्रवल विरोधी माना जाता है। इसके बीच ही मोदी सरकार एक देश एक चुनाव की सोच पर आगे बढ़ना चाहती है। कहा गया है कि सत्तावन साल बाद, 2029 में फिर होगा
एक देश, एक चुनाव: केंद्र सरकार का अगला लक्ष्य। या, प्रख्यात वकील कपिल सिब्बल के शब्दों में, अगला जुमला। लोकसभा, विधानसभा, पंचायत, नगर पालिका, सभी वोट फिर एक साथ होंगे, भले ही एक वोट से नहीं। इस लिहाज़ से इसकी पहले ही अनुशंसा की जा चुकी है, अगले चरण में प्रस्ताव को पारित करने का समय आ गया है। इसी बात पर एक पुरानी फिल्म का गीत याद आ रहा है।
एन इवनिंग इन पेरिस नामक फिल्म के इस गीत को लिखा था हसरत जयपुरी ने और संगीत में शंकर जयकिशन ने इसे मोहम्मद रफी ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल इस तरह हैं
अकेले अकेले , अकेले अकेले
कहाँ जा रहे हो कहाँ जा रहे हो
अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो
हमें साथ ले लो जहाँ जा रहे हो
अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो
हमें साथ ले लो जहाँ जा रहे हो
अकेले अकेले…, कहाँ जा रहे हो
कोई मिट रहा है, तुम्हे कुछ पता है कोई मिट रहा है, तुम्हे कुछ पता है
तुम्हारा हुआ है, तुम्हे कुछ पता है तुम्हारा हुआ है, तुम्हे कुछ पता है
ये क्या माज़रा है, तुम्हे कुछ पता है
अकेले अकेले …
तड़पता ना छोड़ो, मेरी जान हो तुम तड़पता ना छोड़ो, मेरी जान हो तुम
ये मुखड़ा ना मोड़ो, मेरी जान हो तुम ये मुखड़ा ना मोड़ो, मेरी जान हो तुम
मेरा दिल ना तोड़ो, मेरी जान हो तुम
अकेले अकेले …
कोई रोक लेगा, तो फिर क्या करोगे कोई रोक लेगा, तो फिर क्या करोगे
कदम थाम लेगा, तो फिर क्या करोगे कदम थाम लेगा, तो फिर क्या करोगे
खुशामद करेगा, तो फिर क्या करोगे
अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो
हमें साथ ले लो जहाँ जा रहे हो
अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो
हमें साथ ले लो जहाँ जा रहे हो
अकेले अकेले…, कहाँ जा रहे हो अकेले अकेले… अकेले अकेले…
कहाँ जा रहे हो, रहे हो , रहे हो..
अकेले अकेले… अकेले अकेले… कहाँ जा रहे हो, रहे हो , रहे हो…
विपक्ष के कई अन्य आरोप काफी गंभीर और प्रतिशोधात्मक हैं। उदाहरण के लिए, अखिल भारतीय कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी सोचती है कि ये सुधार प्रयास लोकतंत्र विरोधी हैं। यदि इस तर्क का एक पक्ष लोकतांत्रिक रूप से गठित सरकारों को खत्म करने का है, तो दूसरा पक्ष चुनावों के प्रत्येक स्तर को उचित और अलग महत्व देने का है।
इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि एक साथ कई वोटों के महत्व को कम कर दिया गया है, या इस सुधार का उद्देश्य उस महत्व को कम करना है। प्रांतीय पार्टियों को अप्रासंगिक बनाकर और प्रांतीय वोटों के महत्व को नष्ट करके भाजपा जो करने की कोशिश कर रही है वह संघीय प्रणाली के विचार के साथ एक केंद्रीकृत एकदलीय निरंकुशता की ओर बढ़ना है।
सरकार किसी भी दिशा में चलने या चलने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है, एक देश एक वोट के संदेश में वह इच्छा उज्ज्वल और स्पष्ट है। हालाँकि, भाजपा को शायद पता है कि आगे की राह आख़िर में ऊबड़-खाबड़ और कांटों भरी होने वाली है। यदि पचास प्रतिशत राज्य इस प्रस्ताव को पारित करने में विफल रहते हैं तो इतना गंभीर संवैधानिक संशोधन संभव नहीं है।
इसके अलावा, प्रस्ताव पारित करने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत का वोट भी आवश्यक है। फिलहाल लोकसभा में यह कोई आसान काम नहीं है। लेकिन साथ ही यह भी सच है कि चूंकि संविधान संबंधी विधेयक एक-एक करके पेश किये जायेंगे, इसलिए विपक्ष उन्हें तब तक नहीं रोक पायेगा जब तक कि वे सरकार की पूरी मंशा के प्रति जागरूक और सतर्क नहीं होंगे।
इसके लिए निरंतर राजनीतिक अभियान और दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। लेकिन असली कंफ्यूजन इस बात को लेकर है कि हरियाणा और कश्मीर के चुनाव परिणाम अगर अच्छे नहीं हुए तो आगे क्या होगा। भाई लोग तो पहले से ही लंगड़ी मारने को तैयार बैठे है।