भारत का सबसे पसंदीदा पर्यटन का इलाका जम्मू कश्मीर है। इनदिनों वहां के हालत कुछ ऐसे बदले हुए हैं कि सिर्फ सरकार को ही वहां से बुलावा आ रहा है। हर दिन किसी ने किसी स्थान पर घुसपैठ और फायरिंग की सूचनाएं आ रही है।
अचानक से यह क्या हो गया है, इस बारे में यकीन से कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे इस बात साफ हो गया है कि आतंकवादियों के पास आधुनिक हथियार हैं। ऐसी गोलियां हैं, जो बुलेट प्रूफ जैकेट को भी भेद देती हैं। सुरक्षा बलों को अब तक हुए नुकसान से स्थिति की गंभीरता का पता चल जाता है।
लेकिन असली सवाल यह है कि चुनाव का एलान होने के बाद से ही यह माहौल क्यों अचानक से बदल गया। इसके अलावा आतंकी घुसपैठ का इलाका भी बदला है और कश्मीर के बदले अब जम्मू के इलाके में अधिक गड़बड़ी होने लगी है।
कहीं चुनाव के साथ इसका कोई कनेक्शन है अथवा नहीं, यह जांच का विषय है। अपने प्रधानमंत्री कारगिल हो आये हैं और द्रास की जनसभा में पाकिस्तान को चेतावनी भी दे आये हैं। फिर भी यह पाकिस्तान है कि मानता नहीं।
अब वायनॉड की दुखद घटना की बात करें तो हमें यह तय करना है कि दरअसल हमारा विकास किस रास्ते जा रहा है। दरअसल यह सवाल बड़े भूस्खलनों के लेकर खड़ा हुआ है। वैज्ञानिक परिभाषा में भूस्खलन को चट्टान, मलबे या धरती के द्रव्यमान के ढलान से नीचे की ओर खिसकने के रूप में परिभाषित किया जाता है। भूस्खलन एक प्रकार का व्यापक नुकसान है, जो गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव में मिट्टी और चट्टान के किसी भी ढलान से नीचे की ओर खिसकने को दर्शाता है।
लगभग हर भूस्खलन के कई कारण होते हैं। ढलान की गति तब होती है जब ढलान से नीचे की ओर कार्य करने वाले बल (मुख्य रूप से गुरुत्वाकर्षण के कारण) ढलान को बनाने वाली पृथ्वी की सामग्री की ताकत से अधिक हो जाते हैं।
कारणों में ऐसे कारक शामिल हैं जो ढलान से नीचे की ओर बलों के प्रभाव को बढ़ाते हैं और ऐसे कारक जो कम या कम ताकत में योगदान करते हैं।
भूस्खलन की शुरुआत पहले से ही ढलानों पर वर्षा, बर्फ पिघलने, जल स्तर में परिवर्तन, जलधारा के कटाव, भूजल में परिवर्तन, भूकंप, ज्वालामुखी गतिविधि, मानवीय गतिविधियों द्वारा व्यवधान या इनमें से किसी भी कारक के संयोजन से हो सकती है। अब वायनाड के अत्यधिक पर्यटन के साथ साथ केदारनाथ हादसे को जोड़कर देखने की जरूरत है।
दोनों स्थानों पर पर्यटकों की भीड़ की वजह से पर्यटन आधारित व्यापार भी पनपा था। प्रकृति ने एक ही झटके में सब कुछ खत्म कर दिया। इसी बात पर एक फिल्मी गीत याद आ रहा है।
वर्ष 1963 में बनी ब्लैक एंड ह्वाइट फिल्म आज और कल के लिए इस गीत को लिखा था साहिर लुधियानवी ने और इसे सुर में ढाला था रवि ने। इसे मोहम्मद रफी ने अपना स्वर दिया था। इस गीत को सुनील दत्त और नंदा पर फिल्माया गया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
ये वादियाँ, ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
खामोशियों की सदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
ये वादियाँ, ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
खामोशियों की सदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
ये वादियाँ, ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
तुम्हारी ज़ुल्फों से ख़ुश्बू की भीख लेने को
झुकी-झुकी सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें
तुम्हारी ज़ुल्फों से ख़ुश्बू की भीख लेने को
झुकी-झुकी सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें
ये वादियाँ, ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
हसीन चम्पई पैरों को जब से देखा है
नदी की मस्त अदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
हसीन चम्पई पैरों को जब से देखा है
नदी की मस्त अदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
ये वादियाँ, ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
मेरा कहा न सुनो, दिल की बात तो सुन लो
मेरा कहा न सुनो, दिल की बात तो सुन लो
हर एक दिल की दुआएँ बुला रही हैं तुम्हें
हर एक दिल की दुआएँ बुला रही हैं तुम्हें
ये वादियाँ, ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें।
अब चलते चले झारखंड की भी बात कर लें। तमाम नेताओं को भी अपने अपने इलाके की वादियां और फिजाएं बुलाने लगी है।
चुनाव करीब आ रहा है। इस बीच कौन कहां चला जाएगा, यह बड़ा सवाल है क्योंकि आखिर सारा जद्दोजहद तो इसी टिकट को लेकर है। अफसरों की पोस्टिंग भी बड़ा मसला है। सब मिलाकर ही चुनावी रणनीति बनती है और हर दावेदार को अपनी जीत पक्की करने का अवसर है। इसलिए गांव देहात की धूल फांकने के लिए तैयार हो जाइये। तकलीफ भी हो तो क्या कीजिएगा। आखिर ये वादियां ये फिजाएं वोट के लिए बुला रही है, जाना तो पड़ेगा।